कॉमरेड अबनि लाहिड़ी का शताब्दी वर्ष स्मरण
पॉस्को विरोधी आंदोलनकारियों का सफल संग्राम के लिए सम्मान
समरा इरफान एवं आकांक्षा बरुआ
दिल्ली।
कॉमरेड अबनि लाहिड़ी के जन्म शताब्दी वर्ष के मौके पर उनके सम्मान में जोशी अधिकारी इंस्टिद्यूट ऑफ सोशल स्टडीज ने 3-4 दिसंबर 2017 को नई दिल्ली के अजय भवन में एक स्मरण सभा आयोजित की। इस वर्ष को ओडिशा के पॉस्को विरोधी आंदोलन के लड़ाकों को 12 वर्षों की अनवरत लड़ाई के बाद मिली जीत के लिए भी जाना जाएगा। इसलिए कॉमरेड लाहिड़ी की विरासत को याद करने के साथ-साथ पॉस्को विरोधी आंदोलन की विरासत को भी जाना-समझा जाए, इस खयाल से इस आंदोलन के सदस्यों को भी आमंत्रित किया गया।
निदेशक प्रो. अजय पटनायक ने स्वागत भाषण दिया और इस कार्यक्रम को गरिमामय बनाने और अपने जमीनी अनुभवों को साझा करने ओडिशा से आए पॉस्को विरोधी आंदोलनकारियों का खैर-मकदम किया।
कॉमरेड अबनी लाहिड़ी को याद करते हुए कॉमरेड सुमित चक्रवर्ती, संपादक, मेनस्ट्रीम वीकली ने कहा कि कॉमरेड लाहिड़ी ने अपनी 89 साल की उम्र में बड़ा बदलावकारी जीवन जिया। कॉमरेड सुमित चक्रवर्ती ने उन्हें राष्ट्रीय क्रांतिकारी बताया और कहा कि कम उम्र में ही छात्र राजनीति से शुरुआत करने से लेकर किसान आंदोलन में पूरी ताकत से भागीदारी करने तक कॉमरेड लाहिड़ी के गौरवपूर्ण इतिहास को नये लोगों से परिचित करवानेकी जरूरत है। उन्होंने कॉमरेड लाहिड़ी की किताबों से उद्धरण देते हुए कहा कि हमारे आजादी की लड़ाई के दौर के कम्युनिस्ट आंदोलन की त्रासदी यह रही कि किसानों के सवालों और संघर्षों को इसमें प्रमुखता नहीं दी गई और वह सांप्रदायिक ताकतों द्वारा खड़ी की गई फौरी चुनौतियों से प्रभावित हो गया। कॉमरेड लाहिड़ी की जवानी छात्रों और किसानों को संगठित करते बीती। उनके बाद के साक्षात्कारों से तेभागा किसान आंदोलन की विरासत और उसके गौरव का पता चलता है। इस आंदोलन की अगली पंक्ति के लड़ाकों में कॉमरेड लाहिड़ी का नाम शामिल है।
कॉमरेड लाहिड़ी के करीबी रहे प्रो. मनोरंजन मोहंती ने उनके साथ बिताए समय को याद करते हुए तेभागा आंदोलन को खड़ा करने में उनके योगदान को रेखांकित किया। किसान आंदोलन आज जिस मुकाम पर खड़ा है, उसकी ओर ध्यान दिलाते हुए भारत के किसान आंदोलन के भटकाव की उन्होंने बारीकी से व्याख्या की। उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई के दौरान किसानों का सामना साम्राज्यवादियों से था, जबकि अब नव-उदारवादी बाजार ने उनकी जगह ले ली है। किसान संघर्ष के इतिहास में इस अंतराल के कारण तेभागा आंदोलन की विरासत और इससे जुड़े लोगों को किनारे कर दिया गया है। उन्होंने इस सवाल पर जोर दिया कि सत्ता पर काबिज हो गए उद्योगपतियों को सत्ता से बेदखल करने के लिए किसान संघर्ष को किस तरह हम फिर से केंद्रीय भूमिका में ला सकते हैं। उनकी नजर में अबनी लाहिड़ी की विरासत को आगे बढ़ाने का यह एक बेहतर तरीका है।
श्रोताओं को संबोधित करते हुए प्रो. के बी सक्सेना ने इस बात पर जोर दिया कि चाहे कोई भी जगह हो, कोई भी जमाना हो, जमीन न सिर्फ लोगों के लिए रोजी-रोटी कमाने का जरिया है, बल्कि इससे लोगों की पहचान और सुरक्षा की भावना भी जुड़ी हुई है। इसी बात को हमारे इतिहास में जमीन के लिए लड़ी गई अनेक लड़ाइयों की वजह बताते हुए प्रो. सक्सेना ने ऐसे संघर्षों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी प्रस्तुत की। उन्होंने यह भी बताया कि समय बीतने के साथ कैसे भूमि-संघर्ष की प्रकृति में भी बदलाव आया। बाहर से थोपे गए भूमि सुधारों के कारण जमीन का बड़ा हिस्सा गैर-आदिवासियों के कब्जे में चला गया और वे भूमि सुधार तथा जमीन के अन्यायपूर्ण मालिकाना हक के दस्तावेज ही भूमि संघर्षों का कारण बने। लेकिन 1990 के बाद जमीन भी बाजार में खरीद-फरोख्त करने की चीज बन गई। जैसे-जैसे सरकार के साधनों में विस्तार हुआ और विकास की परियोजनाओं की संख्या बढ़ी, किसानों की उपजाऊ जमीनों पर बड़ी संरचनाएं विकसित की जाने लगीं।
श्रोताओं को भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि चूंकि इस अधिनियम को अंग्रेजों ने बनाया था, यह राज्य सत्ता के पक्ष में था। इसमें लोगों को बाजार मूल्य पर पुनर्वास या मुआवजा उपलब्ध कराने की व्यवस्था नहीं थी। बाद में, इस अधिनियम में संशोधन किए गए और 2007 में प्रस्तावित बिल के ड्राफ्ट में पुनर्वास नीति को जोड़ा गया। बाद में आए कुछ सुझावों और सिफारिशों को शामिल करके 2009 में एक नया बिल लाया गया। लेकिन संसद में पारित न होने के कारण दोनों बिल कालातीत हो गए। एक लंबी प्रक्रिया के बाद 2013 में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुन:स्थापन अधिनियम के रूप में संशोधित कानून लाया जा सका। विस्थापित आबादी को मुआवजा देने के साथ-साथ उसका समुचित पुनर्वास करने का प्रावधान भी किया गया। लेकिन 2014 में नई सरकारके आने के साथ सरकार ने अध्यादेश के जरिये कानून को पलट दिया। कुछ श्रेणियों की परियोजनाओं को इससे छूट दे दी। अब स्थिति यह है कि भूमि का मसला केन्द्रीय अधिकारों के साथ साथ राज्य सरकारों के अधिकारों के भी अंतर्गत आता है। इस कारण एनडीए सरकार से इशारा पाकर केन्द्र के सुझावों के आधार पर राज्य सरकारें आगे और संशोधन प्रस्तावित कर सकती हैं जो कि कॉर्पोरेट के पक्ष में हों।
इस पृष्ठभूमि में प्रो. सक्सेना ने कॉमरेड अभय साहू और उनकी टीम को पॉस्को विरोधी आंदोलन का नेतृत्व करने और उसे विजय दिलाने के लिए बधाई दी। यह आंदोलन बहुत ही प्रेरणादायक है। शासन द्वारा लोगों को दबाने के लिए सभी प्रकार के प्रयासों और साधनों का इस्तेमाल किया गया, फिर भी लोगों ने एकता बनाए रखी और शांतिपूर्वक संघर्ष जारी रखा।
प्रो. सक्सेना ने जोर देकर कहा कि यह संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है, क्योंकि लोगों को उनकी जमीनें वापस नहीं मिली हैं। इस आंदोलन को उसी तीव्रता और एकता के साथ जारी रखना होगा ताकि लोगों को उनका हक दिलाया जा सके।
कॉमरेड अभय साहू ने पॉस्को विरोधी आंदोलन के अपने अनुभवों को बांटते हुए कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठाए। उन्होंने जोर दिया कि यह आंदोलन औद्योगीकरण या विकास के खिलाफ नहीं था। लेकिन यह सोचना भी जरूरी है कि विकास की आखिर कितनी कीमत चुकाई जा सकती है और वह कीमत किससे वसूली जा रही है। पॉस्को प्रोजेक्ट के लिए चुनी गई जमीन खेती की उपजाऊ जमीन थी जहां खेतिहर पान उगाते थे। उद्योग को जमीन देने से केवल जमीन का नुकसान या दुर्लभ प्रकार की खेती के विलुप्त होने का खतरा ही नहीं था, बल्कि बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार भी होने वाले थे, जिनमें जवान भी थे और बूढ़े भी। इसलिए इस आंदोलन का आधार बढ़ता गया और समाज के हर तबके के लोग इसके समर्थन में आगे आए। उन्होंने कॉमरेड ए बी बर्धन को याद किया, जिन्होंने छह बार संघर्ष क्षेत्र का दौरा किया और अपना भरपूर समर्थन देकर कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करते रहे।
पॉस्को विरोधी आंदोलन के महिला आंदोलनकारियों में प्रमुखता से भागीदारी करने वाली कॉमरेड मनोरमा भारतीय महिला फेडरेशन (NFIW) की राज्य सचिव भी हैं। उन्होंने पिछले 12 वर्षों के संघर्षमय जीवन के अनुभव की कुछ झलकियां प्रस्तुत कीं। उन्होंने बताया कि संघर्ष के मैदान में अगली पंक्ति पर पुलिस के सामने बच्चों और महिलाओं को तैनात करने की रणनीति सोच-समझकर अपनाई गई थी। स्थानीय लोग पूरे क्षेत्र को चारों ओर से द्वार लगाकर सुरक्षित बना लेते थे। प्रदर्शनकारी लगातार कष्ट सहते रहे – उन्हें गिरफ्तार किया गया, उनपर अनेक मुकदमे लादे गए, कई बम विस्फोट के शिकार हुए और सबको अपने साथी प्रदर्शनकारियों की मौत का गम झेलना पड़ा। उनपर विपत्तियों का पहाड़ तोड़ने के लिए कॉमरेड मनोरमा ने सरकार की भर्त्सना की।
कॉमरेड बिजय पंडा ने एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया कि “आगे क्या होने वाला है”। उन्होंने कहा कि आज के राजनीतिक माहौल में हर किसी को सोचना चाहिए कि क्या जनता के पक्ष में लड़ने वाली सभी ताकतें एकजुट होकर नहीं लड़ सकतीं? ओडिशा के कार्यकर्ताओं को जीत की बधाई देते हुए उन्होंने भी यही कहा कि लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। इसलिए हम सबको पूंजीपतियों और सरकार के षडयंत्रों के प्रति सावधान रहना चाहिए।
ओडिशा के शोधार्थी और कार्यकर्ता कॉमरेड संदीप पटनायक ने पॉस्को के अंतरराष्टीय सूत्रों के बारे में अपने अध्ययन के निष्कर्षों की चर्चा की। उन्होंने कोरियन ट्रेड यूनियन के नेताओं और संयुक्त राष्ट्र संघ को अपील भेजने की रणनीति पर भी बात की। उन्होंने विस्तार से बताया कि किस तरह उन्होंने पॉस्को कंपनी के हितधारकों की खोज की और उनसे मिलकर उन्हें विश्वास दिलाया कि पॉस्को भारत में मानव अधिकारों के उल्लंघन में लिप्त है। स्थानीय लोगों के निरंतर संघर्ष के साथ-साथ चलाए जा रहे इन प्रयासों का ही नतीजा है कि पॉस्को को ओडिशा से बाहर निकलना पड़ा है।
दो दिनों की बैठक में जमीन और इसके साथ जुड़े अधिकारों के व्यापक सवाल पर बड़ी सार्थक चर्चा हुई। कॉमरेड विनीत तिवारी ने संघर्ष के दृश्यों को जीवंत करने वाले कलाकारों, चित्तप्रसाद और सोमनाथ होर तथा फोटोग्राफर सुनील जाना की मार्मिक कृतियों को प्रदर्शित किया।
इस बैठक के जरिये गावों के गरीब विस्थापित समुदाय तथा इसी प्रकार के विस्थापन का दंश झेल रहे कठपुतली कॉलोनी के शहरी गरीबों के बीच बातचीत कराने की कोशिश भी की गई। वरिष्ठ महिला कॉमरेड फिलोमिना की अगुवाई में पच्चीस महिलाएं और पुरुष अपने बच्चों के साथ दूसरे दिन की बैठक में आए। नियत समय से विलंब से पहुंचने की वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि दिल्ली नगर निगम के बुलडोजर पुलिस बल के साथ फिर कठपुतली कॉलोनी आ धमके थे। महिला फेडरेशन की कॉमरेड रुशदा ने अपनी प्रस्तुति में बताया कि 60-70 वर्षों से वहां रह रहे लोक कलाकारों को सरकार ने सिर्फ इसलिए उजाड़ दिया कि प्राइवेट प्रोपर्टी डीलर रहेजाज उस जमीन पर अपना कब्जा जमा सके। स्थानीय निवासियों ने अपने ऊपर थोडे दिन पहले ही हुए पुलिस और प्रशासन के जुल्म को बयान किया कि कैसे सभी कानूनों और सभी नागरिक अधिकारों को ताक पर रखकर उनके घरों पर बुलडोजर चलाए गए और इसका विरोध कर रहे NFIW के नेताओं कॉमरेड एन्नी राजा, कॉमरेड फिलोमिना और अनेक दूसरे स्थानीय निवासियों को लाठियों और बूटों से बुरी तरह पीटा गया।
यह एक भावपूर्ण क्षण था और पॉस्को विरोधी संघर्ष के कामरेडों ने उन्हें अपनी एकजुटता का भरोसा दिलाया।
प्रो. मोहंती ने कहा और दूसरे सभी लोगों ने दुहराया कि “हम लड़ेंगे और हम जरूर जीतेंगे।”
योजना आयोग के पूर्व सदस्य एवं जोशी अधिकारी इंस्टिटद्यू्र के भूतपूर्व अध्यक्ष श्री एस पी शुक्ला ने जमीन के सवाल और इसके साथ जुड़ी राजनीति की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कॉमरेड अबनी लाहिड़ी को श्रद्धांजलि दी और कहा कि हमें कृषि क्षेत्र के भीतर के वर्ग विभाजन को भूलना नहीं चाहिए। किसानों और खेतिहरों में बड़ा फर्क है। किसानों के तुलनात्मक दृष्टि से वंचित तबकों को एकजुट करते समय समतावादी ताकतों को चाहिए कि वे खेतिहरों को संघर्ष के केन्द्र में रखें। उन्होंने कहा कि जमीन हमेशा से बहुसंख्यक जनता पर शासन करने का हथियार बना रहा है, क्योंकि वे जीने के लिए जमीन के मुहताज होते हैं। इस हालत में गरीब खेतिहरों को सहकारी समितियों के रूप में एक साथ लाकर उनकी बँटी हुई ताकत को एकजुट किया जा सकता है। इसे संभव बनाने के लिए हम सबको समावेशी और उग्र राजनीति का सहारा लेना होगा।
इस मौके पर पॉस्को विरोधी संघर्ष समिति को सम्मान स्वरूप पच्चीस हजार रुपये का एक चेक भेंट किया गया। कॉमरेड अभय साहू एवं उनके सहयोगियों को चेक भेंट करते हुए एस पी शुक्ला ने कहा कि न्यायपूर्ण संघर्ष के आंदोलनकारियों का सम्मान करते हुए वे स्वयं को सम्मानित महसूस कर रहे हैं।
डॉ जया मेहता ने श्रोताओं और अतिथि वक्ताओं को धन्यवाद दिया।
बैठक में कॉमरेड प्रमिला लुम्बा, कॉमरेड पल्लब सेनगुप्ता, प्रो. विजय सिंह, प्रो. गार्गी चर्कवर्ती, कॉमरेड सुकुमार दामले, प्रो. सुबोध मालाकार, अर्थशास्त्री शांता वेंकटरमन, प्रो. कृष्णा लाहिड़ी मजूमदार, प्रो. सदाशिव, कॉमरेड ध्रुवनारायण, प्रो. कमल मित्रा चिनॉय, प्रो. अपूर्वानंद, कॉमरेड सुनीता, कॉमरेड वली उल्लाह क़ादरी, कॉमरेड विश्वजीत कुमार, कॉमरेड चिदंबरम, कॉमरेड जनार्दन, कॉमरेड इंदिरा, डॉ एस राधा, कॉमरेड मनीष् श्रीवास्तव, कॉमरेड विनोद कोष्टी, कॉमरेड रजनीश साहिल, कॉमरेड राहिला सुम्बूल, कॉमरेड दीपशिखा, एडवोकेट अदिति गुप्ता आदि ने भागीदारी की।