(अटल बिहारी वाजपेयी ने मृत्यु-उपरांत लिखी कविता)
मैं मुक्तिगान का रचयेता,मैं मुक्तिपर्व का गायक हूँ
यह शोक-शोक यह शोक -कहर,मैं लोकलहर का द्रष्टा हूँ
मैं नहीं मरा हूँ, जिंदा हूँ,मैं जिंदा हूँ, मैं जिंदा हूँ/मैं जन के दिल में जिंदा हूँ, मैं जिंदा हूँ,मैं जिंदा हूँ।
मैं "राजधर्म" में नहीं-नहीं,मैं लोकधर्म में जिंदा हूँ
गाँव-गली हर ठाँव-छाँव,मैं जंगे-जंगल जिंदा हूँ।
मैं जुल्मो-सितम की राहों पे "अश्रुकवि" बन जिंदा हूँ।
यह "शोककर्म" यह "शोकधर्म" ,यह "राजधर्म" का सोंटा है।
मैं भारत के हर कवि-हृदय में इक आग धधकती जिंदा हूँ।
मैं कवि हूँ खेत -खलिहानों का,युवाओं के अरमानों का-
मैं लाल-किला पर नहीं-नहीं,हर लाल के दिल में जिंदा हूँ-
भारत के कवियों मत रोना,मैं कवि-रवि दिल में जिंदा हूँ।
( आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी की आत्मा ने आज सुबह मेरे कवि-हृदय से आत्मीय संवाद करते हुए यह कविता लिखी है)-
प्रस्तुतकर्ता-पुष्पराज, मूलकवि-अटल बिहारी वाजपेयी,रचना काल-सुबह 8 बजकर 50 मिनट, दिवस-17 अगस्त 2018.