कांग्रेसी जो खतरनाक खेल खेलते हैं, उन्हें बाज आना चाहिए
ऐसे कांग्रेसी कांग्रेस का भला नहीं कर रहे बल्कि उस मनोदशा को हवा दे रहे हैं जो आखिर में संघ के फेबिरेबिल होगी ही।
मधुवन दत्त चतुर्वेदी
एस सी एस टी एक्ट पर एक बात तो साफ हो रही है, कांग्रेस और बीजेपी दोनों के सवर्ण कार्यकर्ता अपनी-अपनी पार्टी लाइन के खिलाफ खड़े हैं। कांग्रेस का सेक्युलरिज्म और संघ का हिंदूवाद दोनों ही एस सी एस टी एक्ट पर अपने सवर्ण कार्यकर्ताओं को अलग राय लेने से नहीं रोक पाए।
कांग्रेसी सवर्ण भाजपाई सवर्णों को चिड़ा रहे हैं, मीडिया संघी सवर्णों को दिलासा देने के लिए न्यूज हेडलाइन्स दे रही है- 'सरकार ने सहयोगी दलित नेताओं के दवाब में लिया फैसला।'
कुल मिलाकर भारत के बहुसंख्यक हिन्दू समाज में व्याप्त जातिगत अन्याय और अपमान की स्थिति इतनी गहरी है कि दोनों बड़ी प्रतिस्पर्द्धी पूंजीवादी पार्टियां इस मामले में असफल रही हैं कि अपने राजनैतिक विचार को इसके उन्मूलन से जोड़ सकें। धर्म की राजनीति की हवा जाति का प्रश्न निकाल देगा। यह जरूरी भी है।
कांग्रेसी जो
खतरनाक खेल खेलते हैं, उन्हें बाज आना चाहिए। एस सी एस टी एक्ट पर सवर्ण भाजपाइयों को चिढ़ाना हो या फिर इस तरह का उकसावा हो कि जब कोर्ट के आदेश के बाबजूद एस सी एस टी एक्ट को इंटेक्ट रख सकते हैं तो राम मंदिर के लिए कोर्ट का आर्डर क्यों, उन कांग्रेसियों की याद दिलाता है जो कहते थे कि संघी क्या मंदिर बनाएंगे, हमने ताला खुलवाया और हम ही मंदिर बनाएंगे। मंदिर का श्रेय लेने की कोशिश ने मस्जिद वाले भी खो दिए और मंदिर चाहने वाले उनके साथ हो लिए जो ढांचा सरेआम तोड़ आये थे। ऐसे कांग्रेसी कांग्रेस का भला नहीं कर रहे बल्कि उस मनोदशा को हवा दे रहे हैं जो आखिर में संघ के फेबिरेबिल होगी ही।