मैथिलीशरण गुप्त की 133 वीं जयंती पर विचार गोष्ठी कार्यक्रम Discussion program on the 133rd birth anniversary of Maithilisharan Gupta
वर्धा, 10 अगस्त, 2019; मैथिलीशरण गुप्त ‘दद्दा जी’ मेरी स्मृतियों में हैं। उनकी रचनाओं में देशभक्ति, बंधुत्व भावना, राष्ट्रीयता, गांधीवाद, मानवता तथा नारी के प्रति करुणा और सहानुभूति के स्वर मुखर हुए हैं। इनके काव्य का मुख्य स्वर राष्ट्र-प्रेम, आजादी एवं भारतीयता है। वे भारतीय संस्कृति के उन्नायक थे। जिन्होंने खड़ी बोली हिंदी को अपनी काव्य-भाषा बनाकर उसकी क्षमता से विश्व को परिचित कराया, उनमें गुप्तजी का नाम सबसे प्रमुख है। उनकी काव्य-प्रतिभा का सम्मान करते हुए साहित्य-जगत उन्हें राष्ट्रकवि के रूप में याद करता रहा है।
उक्त उद्बोधन भोपाल के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की पौत्री डॉ. कुमकुम गुप्ता ने व्यक्त किए।
वह युगदृष्टा, राष्ट्रकवि, पद्मभूषण मैथिलीशरण गुप्त की 133 वीं जयंती के अवसर पर राष्ट्रकवि स्मृति समिति, वर्धा और विद्यार्थी परिषद, महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, सेवाग्राम के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम के दौरान बतौर मुख्य अतिथि बोल रही थीं।
महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉ. सरोजिनी नायडू भवन में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के कोषाध्यक्ष नवरतन नाहर ने की।
डॉ. कुमकुम गुप्ता ने सभा के आग्रह पर ‘मेरी स्मृतियों में दद्दा’ विषय पर दद्दा के साथ बिताए पलों को साझा किया और साथ ही उन्होंने अपनी कविताएं भी सुनाई।
अध्यक्षीय वक्तव्य में नाहर ने बताया कि गुप्तजी ने साकेत का सृजन अपने छोटे भाई सियाराम शरण गुप्त के आग्रह पर किया था जो खुद भी कवि थे।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी-बा की 150 वीं जयंती और राष्ट्रकवि गुप्त की जयंती के निमित्त ‘मैथिलीशरण गुप्त, गांधी विचार और आज का समय’ विषय पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के साहित्य विभाग के पूर्व अधिष्ठाता प्रो. सूरज पालीवाल, गांधी विचार परिषद, वर्धा के निदेशक भरत महोदय, बुंदेलखंड महाविद्यालय, झांसी की हिंदी विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. कुसुम गुप्ता और डॉ. कन्हैया लाल मिश्र (सूरत) ने विचार व्यक्त किए।
वक्ताओं ने गांधी विचार से ओत-प्रोत गुप्तजी की रचनाओं को आज के संदर्भ से जोड़ा जिसमें महिला सशक्तीकरण, समाजोद्धार, पर्यावरण संरक्षण, सांप्रदायिक सद्भाव आदि विषयों पर प्रकाश डालते हुए प्रमाणित किया कि कवि भविष्य-दृष्टा भी होता है।
इस दौरान डॉ. ओमप्रकाश गुप्त ने बापू नगरी में गुप्तजी के इक्कीसवें जयंती आयोजन पर अतिथियों का स्वागत करते हुए विचार व्यक्त किए। महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, सेवाग्राम के अधीक्षक डॉ. श्रीप्रकाश कलंत्री मंच पर उपस्थित थे।
कार्यक्रम में गत वर्ष दिवंगत हुए साहित्य विभूतियों अटल बिहारी बाजपेयी, कृष्णा सोबती, विष्णु खरे तथा नामवर सिंह को मौन श्रद्धांजलि दी गई।
शुरुआत महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्था के विद्यार्थियों और कु. तनया सेठ द्वारा प्रस्तुत गुप्तजी की रचना ‘भूलोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीलस्थल कहाँ…’ आव्हान गीत से हुआ और साथ ही पूज्य बापू, बा, डॉ. सुशीला नय्यर और गुप्तजी के छायाचित्रों पर मंचासीन अतिथियों द्वारा माल्यार्पण व दीप प्रज्ज्वलन के बाद गीता गुप्ता ने कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत की।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. अनुपमा गुप्ता ने किया।
महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के विद्यार्थियों में हिंदी के प्रति रुचि बनाए रखने के निमित्त स्वरचित हिंदी काव्य प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। प्रतियोगिता के विजेता कुमारी सोनिका, कुमारी अनुरथी व प्रद्दुत मलिक ने काव्य-पाठ किया और उन्हें पुरस्कृत भी किया गया।
अंत में डॉ. दिलीप गुप्ता ने आभार व्यक्त किया।
इस अवसर पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो.के. के. सिंह, प्रो. मनोज कुमार, डॉ. शोभा पालीवाल, डॉ. डी.एन. प्रसाद, डॉ. अनवर सिद्दीकी, डॉ. अनिल दुबे, डॉ. अनिर्बान घोष, डॉ. परिमल प्रियदर्शी, डॉ. मुन्नालाल गुप्ता, बी.एस. मिरगे, डॉ. राजेश्वर सिंह, डॉ. अमित विश्वास, महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान से डॉ. उल्हास जाजू, डॉ. नारंग, डॉ. पी. नारंग, डॉ. पूनम शिवकुमार, डॉ. रमेश एवं सुमन पांडे, डॉ. मनीषा आतराम, रेणु गुलाटी, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के डॉ. हेमचंद्र वैद्य, झांसी से पधारे कुंजबिहारी गुप्ता, ग्वालियर के कन्हैया लाल सेठ, वर्धा से अनिल नरेडी, मुरलीधर बेलखोड़े, विश्वकर्मा, अशोक नौगरीया, जगदीश बिलैया, आनंद शुक्ला, आष्टी के गणेश नीखरा सहित बड़ी संख्या में वर्धा तथा सेवाग्राम के हिंदी प्रेमी उपस्थित रहे।