लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी। आदर्शवादी व्यक्तित्व के धनी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को क़रीब से जानने वाले जानते हैं कि आम जनता में जो उनकी छवि है वह उससे बिलकुल अलग है। राहुल गांधी एक ऐसी शख़्सियत हैं जो दबे कुचले समाज के प्रति बहुत ज़्यादा लगाव रखते हैं। सियासत में इस तरह की सोच वाला कोई दूसरा नाम दिखाई नहीं देता है। पहली बात तो इस तरह की सोच वाले लोगों की संख्या न के बराबर है और अगर कोई है तो आज के समाज को ऐसी शख़्सियतों की ज़रूरत नहीं, ये एक कड़वी सच्चाई है, चाहे कोई माने या न माने।
राहुल गांधी अपने दिल में दलितों के लिए ख़ास जगह रखते हैं, वह बराबरी की बात करते हैं, ग़ैर सियासी लोगों को सियासत में आगे लाने पर ज़ोर देते हैं। सियासत में आज जिन लोगों की भरमार है जिन्होंने सियासत को अपनी रोज़ी रोटी का ज़रिया बनाया हुआ है। राहुल गांधी ऐसे लोगों के खिलाफ हैं।
आज की सियासत में झूठ ही बुनियाद है, राहुल उसके भी सख़्त खिलाफ हैं। उनका मानना है कि झूठ की बुनियाद पर महल खड़ा करने से अच्छा है झोपड़ी में ही रहकर अपनी सही बात लोगों तक पहुँचाते रहो, सत्ता की चकाचौंध पाने के लिए झूठ का सहारा नही लेना चाहिए। राहुल गांधी जनता द्वारा दी गई ज़िम्मेदारी को दिल से निभाने के हामी हैं।
वैसे तो गांधी परिवार त्याग और बलिदान की पहचान माना जाता है, लेकिन आज के उन्मादी माहौल ने सब कुछ पीछे छोड दिया है। जिस परिवार पर आज के स्वयंभू कामदार तरह-तरह के आरोप लगाते हैं कि नामदार ऐसे हैं, नामदार वैसे हैं, उस परिवार की सदस्य ने प्रधानमंत्री बनने की बात को नकार सिख समुदाय के क़ाबिल होनहार डाक्टर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवाया और मनमोहन सिंह ने देश को प्रगति तरफ़ ले जाने में काफ़ी कुछ किया, जिसको पूरी दुनिया ने माना यह सच है।
राहुल गांधी जैसी शख़्सियत को वंशवाद जैसी बीमारी से सख़्त नफ़रत है, वे ग़रीब को आगे बढ़ाना चाहते हैं, जवाबदेही चाहते हैं, पार्टी में मठाधीशी नही लोकतंत्र के हामी हैं। एनएसयूआई और युवक कांग्रेस जैसे संगठनों में आमूलचूल परिवर्तन कराते हैं। दोनों संगठनों में चुनाव के ज़रिए पदाधिकारियों के चयन को प्राथमिकता देते हैं। 2014 के आम चुनाव में टिकट को लेकर प्रत्याशियों के बीच चुनाव कराने का पायलट प्रोजेक्ट लाते हैं। ये सब मामलात ऐसे हैं जो आज की सियासत करने वालों में दूर-दूर तक दिखाई नहीं देते हैं। लेकिन इतनी ख़ूबियों के मालिक होने के बाद भी राहुल गांधी असफल क्यों है ? जबकि सही मायने में देश को ऐसी ही शख़्सियत की सख़्त ज़रूरत है।
ये भी सच है असल में राहुल गांधी को अपने घर कांग्रेस में भी अपने इन आदर्शों का ही ख़मियाज़ा भुगतना पड़ रहा है। कांग्रेस के अंदर नागपुरिया सोच के लोगों की भरमार है, वही लोग राहुल गांधी के आदर्शों के खिलाफ हैं।
सियासी ज़मीन पर राहुल गांधी के प्रोग्राम क्यों नहीं चल पाते ? आखिर क्यों आदर्शवाद ज़मीनी हक़ीक़त के सामने दम तोड़ देता है ? वही आदर्शवादी राहुल गांधी हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने पर अड गए। न माँ सोनिया गांधी और न बहन प्रियंका गांधी सहित पूरी कांग्रेस आदर्शवादी राहुल गांधी को अपने अध्यक्ष पद छोड़ने के फ़ैसले को वापिस लेने को नहीं मना सकी। ये बात वो सभी लोग जानते थे जो राहुल गांधी को क़रीब से जानते हैं, उनमें उनकी माँ व बहन भी शामिल थी कि राहुल गांधी जब कोई फैसला कर लेते हैं तो उससे पीछे नही हटते, हालाँकि माँ और बहन ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के कहने पर राहुल को अपने फ़ैसले पर विचार करने के लिए प्रयास किए, वो सब लोग नाकाम रहे और आख़िरकार नए अध्यक्ष की तलाश शुरू हो गई है।
दस जनपथ ने कांग्रेस के वफ़ादारों की सूची बनानी शुरू कर दी है, जिसमें हिन्दी भाषी को प्राथमिकता दिए जाने की संभावना है। सूत्रों का कहना है कि पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी का नाम अध्यक्ष पद दावेदारों की सूची से हटाया गया है, क्योंकि एंटनी सही तरह से हिन्दी नही बोल सकते हैं अन्यथा ए के एंटनी अध्यक्ष पद के सबसे सशक्त दावेदारों में शामिल थे।
इसके बाद अब नए अध्यक्ष पद के नामों में ज्योतिरादित्य सिंधिया, कांग्रेस के संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, और प्रमोद तिवारी का नाम चर्चा में चल रहा है।
इन सभी दावेदारों में सिंधिया और तिवारी का नाम सबसे ऊपर चल रहा है। दोनों ही दस जनपथ के काफ़ी क़रीब हैं। देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए दस जनपथ प्रमोद तिवारी को प्राथमिकता दे सकता है, जिससे यूपी में कांग्रेस को फिर से खड़ा किया जा सके और ये सही भी है इससे यूपी में कांग्रेस को संजीवनी मिल सकती है।
माना जा रहा है कि संसद के सत्र शुरू होने से पहले नए अध्यक्ष का चयन हो जाएगा। इस वर्ष कई राज्यों में होने वाले विधानसभा के चुनावों को ध्यान में रखते पार्टी जल्द से जल्द नए अध्यक्ष का चयन कर लेना चाहती है, जिससे संगठन में फेरबदल कर चुनावों की तैयारी की जा सके। इसके साथ ही कांग्रेस ने ये रणनीति बनाई है जिसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ-साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए जाएंगे। इस देश की चार पहचान हैं हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई। इन चारों समुदायों में से नए कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाएंगे, जिसमें सभी वर्गों की हिस्सेदारी हो सके।
सूत्रों के मुताबिक हिन्दू-मुसलमान-सिख व ईसाई से जुडे कांग्रेस नेताओं को पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष की कमान सौंपी जाएगी। जिन चार नेताओं का नाम कार्यकारी अध्यक्ष पद के लिए लिया जा रहा है उनमें अगर प्रमोद तिवारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, जिसकी संभावना अधिक है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम कार्यकारी अध्यक्ष में शामिल किया जा सकता है। दूसरे कार्यकारी में मुसलमान का नाम आएगा जिसमें गुलाम नबी आजाद के नाम पर मोहर लग सकती है। ईसाई समुदाय में से ए के एंटनी का कांग्रेस में ऐसा नाम है जो अपने आप में बहुत भारी है। अगर उन्हें हिन्दी बोलनी आती तो राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के सबसे मजबूत दावेदार थे, इस लिए कार्यकारी अध्यक्ष में उनका नाम पक्का माना जा रहा है। इसके बाद सिख समुदाय से गांधी परिवार के सबसे नजदीक माने जा रहे मोदी की भाजपा से कांग्रेस में आए नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं।