एक स्त्री के मन की यात्रा करने जैसा है सीमा सक्सेना असीम का उपन्यास “अडिग प्रेम” पढ़ना
सीमा सक्सेना “असीम” का उपन्यास “अडिग प्रेम” पढ़ना एक स्त्री के मन की यात्रा करने जैसा है। एक लड़की जो अपने अध्यापक के प्रति आसक्त होती है और परिस्थिति वश उसके साथ एकाकार भी होती है और संपूर्णता के साथ समर्पित भी। सच्चे और अडिग प्रेम का प्रतीक तथा तन से परे होकर भी मन तक पहुंचा जा सकता है इसका दस्तावेज है यह उपन्यास “अडिग प्रेम”
लेखिका सीमा अपनी बात में कहती भी हैं कि
“.. मैंने महसूस किया है कि मन में प्रेम का होना स्वाभाविक है किंतु अगर यह दोनों मन में समान रूप से है तो एक शक्ति भी है..”
उपन्यास का आरंभ उस बालिका के द्वारा एक रेल यात्रा से होता है जिसमें रेल यात्रा और साथी यात्रियों का जीवंत चित्रण करते हुए उपन्यास स्वयं एक यात्री सा आगे बढ़ता जाता है। इस अंश को पढ़ते हुए पाठक को ऐसा लगता है जैसे वह स्वयं यात्रा कर रहा है।
… और रेल यात्रा पूरी होने पर नायिका का पहाड़ की वादियों में पहुंचना फिर पहाड़ को पूरे आत्मबोध के साथ जीना इस उपन्यास की विशेषता है।
पहाड़ की नीरवता और विशालता को एक साथ शब्दों में बांधना भी इस उपन्यास की विशेषता कही जा सकती है
लेखिका कहती हैं
“… यह पहाड़ रात की तन्हाई में बदलते होंगे जब सारा जग सो जाता है तभी अपनी कठोरता पर रोते होंगे। कठोरता जो सिर्फ दिखाने की होती है। क्योंकि पहाड़ कठोर नहीं होते इनका दिल मोम की तरह मुलायम होता है कभी इनको प्यार से सहला कर देखो, निहार कर देखो, पता चल जाएगा। कितने कष्ट सहते हैं। फिर भी अडिग खड़े रहते हैं … इनसे सीखो अडिग रहना..”
… पहाड़ के इस विमर्श के दौरान पहाड़ पर सैलानियों के वेश में पहुंचने वाले छिछोरे युवकों से युक्ति पूर्वक बच निकलने का प्रसंग सुनाती राशि यानी इस उपन्यास की नायिका बिल्कुल सहज और वास्तविक लगती है।
उसकी परिस्थितियां कई बार पढ़ने वालों को उद्वेलित भी करती है और कोफ्त भी देती हैं।
उपन्यास के उत्तरार्द्ध में इसी यात्रा के दौरान राशि का रवि से अलगाव सामान्य पुरुष मानसिकता (Men’s mentality) को प्रस्तुत करने का उपक्रम जान पड़ता है।
“…यह पति लोग एक साल तो ऐसे निसार होते हैं कि पूछो मत हर बात में बस तेरी ही तारीफ..”
विद्यमान समाज में प्रचलित सामान्य नियमों की रूपरेखा पर रचा बसा यह उपन्यास दर्द और प्रेम की समान अनुभूतियों के साथ अपनी गति से आगे बढ़ता है।
रवि का राशि से दूर हो जाना पीड़ा देता है लेकिन राशि के मन में रवि के अलावा और कुछ भी नहीं होना प्रकृति के प्रति नारी के विश्वास को रेखांकित करता है। इसी बिछोह के दौरान उसे इस तथ्य की अनुभूति होना कि रवि के प्रति उसके समर्पण की परिणति उसके गर्भ में आकार लेने लगी है, रोचकता और संशय दोनों समान रूप से उत्पन्न करता है।
“….. सच है लड़कियां एक बहते दरिया के समान होती हैं जिधर बहा दो उधर ही अपनी लय में बहने लगेंगी और एकदम कोरे कागज के समान जिस पर जैसी चाहे इबादत लिख दो..”
कुल मिलाकर “अडिग प्रेम” सच्चे प्रेम, दर्द और एक ऐसी रात की कहानी है जिसका रोमांच कोई नारी शरीर ताउम्र नहीं भूल सकता।
उस रात की कहानी जब किसी भी स्त्री का प्रेम उसके कोख में अपना अधिकार बना कर पूरे विश्वास के साथ आकार लेने लगता है।
उपन्यास के अंत में नायिका राशि को उसका नायक रवि मिला या नहीं मिला….. यह तो उपन्यास पढ़ कर ही जाना जा सकता है लेकिन नाटकीयता के साथ उपन्यास की समाप्ति पर उपन्यास संतोष देता है।
लेखिका के शब्दों को चुराकर ही कहना हो तो यह कहा जा सकता है कि इसकी समाप्ति पर पाठक को ऐसा लगता है जैसे आसमान में काले बादलों के बीच चमकती तेज बिजली कहीं से आ गई हो और रिश्ते पर गिरी तपिश पिघलने लगी हो या भीतर ही भीतर और ज्यादा तपाने लगी हो।
सीमा सक्सेना का उपन्यास “अडिग प्रेम” प्रकृति के साथ साथ एक नारी के मन के भीतर भी चलता है और सच कहें तो नारी के तन से होकर मन की पगडंडियों पर चलता हुआ प्रकृति की यात्रा का चित्रण है ” अडिग प्रेम”।
सच्चे प्रेम और त्याग का प्रतीक यह उपन्यास “अडिग” सच्चाई विश्वास और समर्पित प्रेम की कहानी है जो हर मन को छूने में कामयाब होगी निर संदेह प्रेम एक ऐसी भावना है जो हर मन में होती है किन्तु लोग ज़िंदगी की आपाधापी में प्रेम को भी सिर्फ ऊपरी दिखावा समझ लेते हैं किन्तु इस उपन्यास को पढ़कर अपने प्रेम के प्रति सच्ची भावना अवश्य जागेगी ! इतने सुन्दर उपन्यास को लिखने के लिए सीमा असीम को बहुत बधाई व् उनके उज्जवल भविष्य की कामना सहित , , ,
समीक्षा : अशोक कुमार शुक्ला
पुस्तक का नाम – अडिग प्रेम
लेखिका – सीमा सक्सेना असीम
प्रकाशक – आर के पब्लिकेशन मुंबई
पृष्ठ – 240
मूल्य – 350