नोटबंदी (Demonetization) के खिलाफ राजनीतिक मोर्चाबंदी (Political barricade) का चेहरा ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का रहा है। नोटबंदी के खिलाफ शुरू से उनके जिहादी तेवर हैं। हम शुरू से चिटफंड परिदृश्य (Chitfund scenario) में दीदी मोदी युगलबंदी (Didi Modi Jugalbandi) के तहत 2011 से बंगाल में तेजी से वाम कांग्रेस के सफाये के साथ आम जनता के हिंदुत्वकरण के परिप्रेक्ष्य में चेताते रहे हैं कि संघ परिवार के दोनों हाथों में लड्डू हैं। हिंदुत्व के कारपोरेट एजंडा के लिए सत्ता पक्ष का नेतृत्व संघी है तो विपक्ष का चेहरा भी नख से शिख तक केसरिया है। केसरिया देशभक्ति (Patriotism of saffron), भ्रष्टाचार विरोधी नोटबंदी (Anti corruption Note Ban) के जरिये डिजिटल कैशलेस इंडिया (Digital cashless india) में कंपनी कारपोरेट राज का सफाया है तो नोटबंदी के खिलाफ यह फर्जी जिहाद भी संगीन की नसबंदी है।
यूपी वालों, चाहो तो देश बचा लो! दंगाबाजों को सत्ता से बाहर धकेलो…
दीदी ने आखिरकार
साबित कर दिया कि उन्हें तकलीफ सिर्फ संघ परिवार की सरकार के मौजूदा मुखिया से है, संघ परिवार या उसके हिंदुत्व एजंडे का
वे किसी भी स्तर पर विरोध नहीं करतीं। उनने कारपोरेट वकील अरुण जेटली या संघ के
संगठन सिपाहसालार राजनाथ सिंह या राममंदिर आंदोलन के महाप्रभु लौहपुरुष लालकृष्ण
आडवाणी को प्रधानमत्री बनाने की पेशकश की है।
अमित शाह को शिकायत
हो सकती है कि दीदी ने उनका नाम क्यों नहीं लिया।
इसी तरह अरविंद
केजरीवाल भी मोदी के बजाय खुद प्रधानमंत्री या अमित शाह के बजाय खुद संघ परिवार की
राजनीति का चेहरा बन जायें तो हिंदुत्व के एजंडे से उऩके आरक्षण विरोधी
मुक्तबाजारी राजनीति को कोई परहेज नहीं है।
नीतीश कुमार, बीजू पटनायक या चंद्रबाबू नायडु के मौसम
चक्र का जलवायु समझना बहुत मुश्किल है और वे अपनी-अपनी राजनीतिक मजबूरियों के बावजूद संघ परिवार से नत्थी हैं।
सिर्फ लालू प्रसाद
यादव का संघ परिवार से कभी कोई तालमेल नहीं है।
मुलायम सिंह यादव और
अखिलेश यादव ने संघ परिवार के हर फैसले को यूपी में संघ परिवार के सूबों की
सरकारों से ज्यादा मुस्तैदी से लागू किया है।
समाजवादी पार्टी
(अखिलेश) की सर्वोच्च प्राथमिकता यूपी की सत्ता पर काबिज होना है। चुनाव से पहले
गठबंधन हुआ नहीं है, लेकिन
जरुरत पड़ी तो उन्हें संघ परिवार की मदद से सरकार बनाने में कोई हिचक नहीं होगी।
हम बार-बार लिख रहे
हैं कि राजनीति आम जनता के खिलाफ लामबंद है और राजनीति में आम जनता के हकहकूक की
लड़ाई की कोई गुंजाइश नहीं है। न आम जनता की निरंकुश सत्ता और फासिज्म के राजकाज
के खिलाफ अपनी कोई राजनीतिक मोर्चाबंदी है। सर्वदलीय सहयोग और सहमति से नरसंहार
संस्कृति का यह वैश्विक मुक्तबाजार है। इस पर तुर्रा यह कि बहुजन पढ़े लिखे लोगों
को इस कारपोरेट हिंदुत्व के नरसंहार कार्यक्रम से कोई ऐतराज नहीं है। वे जैसे
मुक्तबाजार के खिलाफ खामोश रहे हैं, वैसे ही वे नोटंबदी के खिलाफ भी खामोश हैं।गौरतलब है कि यूपी
के किसानों ने भारत के महामहिम राष्ट्रपति से मौत की भीख मांगी है। किसानों को अब
इस देश में मौत ही मिलने वाली है। तो कारोबारियों को भी मौत के अलावा कुछ सुनहला
नहीं मिलने वाला है।
हमने पहले ही लिखा
हैः नोटबंदी का नतीजा अगर
डिजिटल कैसलैस इंडिया है तो समझ लीजिये अब काले अछूतों, पिछड़ों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों का अब कोई देश नहीं है। वे आजीविका, उत्पादन प्रणाली और बाजार से सीधे बेदखल
हैं और यह कैशलेस या लेस कैश इंडिया नस्ली गोरों का देश है यानी ऐसा हिंदू राष्ट्र
है जहां सारे के सारे बहुजन अर्थव्यवस्था से बाहर सीधे गैस चैंबर में धकेल दिये
गये हैं।
इधर यूपी के विभिन्न
हिस्सों से रोजाना पाठकों के फोन आने लगे हैं। समाजवादी महाभारत के बावजूद पिछले
दिनों हमें यूपी के मित्रों ने आश्वस्त किया है कि पहले जो हुआ सो हुआ, अब यूपी की जमीन पर हिंदुत्व का एजेंडा
कामयाब होने वाला नहीं है। उनके मुताबिक मीडिया के सर्वेक्षण में भले ही निरंकुश
सत्ता की बढ़त दीख रही हो, दरअसल
जमीन के चप्पे-चप्पे पर तानाशाह को हराने की पूरी तैयारी है और आम जनता यूपी की
सरजमीं पर नोटबंदी नरसंहार का मुंहतोड़ जवाब देगी।
गोरखपुर के एके पांडे
ने कल बाकायदा चुनौती दी कि अगर छप्पन इंच का सीना है तो यूपी का चुनाव नोटबंदी के
मुद्दे पर लड़कर देख लें तो डिजिटल इंडिया का हाल मालूम हो जायेगा। इतना बड़ा कलेजा है तो एक लाख
स्वयंसेवकों को उतारकर गाय भैंसों को आधार नंबर काहे बांट रहे हैं, यूपी वाले सवाल कर रहे हैं। फर्क बस यही है कि ढोर डंगरों के वोट
नहीं होते और मनुष्यों के सींग नहीं होते। गायभैंसों के आधार नंबर से हिंदुत्व के
वोट नहीं बड़ने वाले हैं और गनीमत है कि सींग नहीं हैं तो आम जनता के धारदार सींग
से राजनेताओं के लहूलुहान हो जाने की भी आशंका नहीं है।
यूपी से मिले फोन पर
आशंका यही जताई जा रही है कि अगले चुनाव में बहुमत किसी को नहीं मिलने वाला है।
ऐसे में समाजवादी और बहुजन पार्टी में जिसे भी सीटें ज्यादा मिलेंगी, उसे समर्थन देकर यूपी पर इनडायरेक्ट राज
करेगा संघ परिवार। हम
सबसे यही कह रहे हैंः यूपी
वालों चाहो तो देश बचा लो! कांग्रेस और भाजपा के सत्ता से बाहर हो जाने से यूपी में
राममंदिर और हिंदुत्व की राजनीति की हवा निकल गयी है। दंगा कराने में सियासत को
कामयाबी नहीं मिल रही है।
हम यूपी वालों से कह
रहे हैंःदंगाबाजों को सत्ता से बाहर धकेलो।
मैं उत्तराखंडवासी
हूं लेकिन जन्मजात मैं भी यूपी वाला हूं। यूपी बोर्ड से हमने हाईस्कूल और इंटर की
परीक्षाएं पास की हैं। हमारे कोलकाता चले आने के बाद उत्तराखंड अलग बना है। यूपी
की राजनीतिक ताकत सबसे बड़ी है।
यूपी का दिल भी सबसे
बड़ा है। हम
अपने अनुभव से ऐसा कह रहे हैं। यह कोई हवा हवाई बात नहीं है। नैनीताल और पीलीभीत, रामपुर, बरेली, बहराइच, लखीमपुर खीरी, बिजनौर, मेरठ, बदायूं, कानपुर जैसे यूपी के जिलों में
दंडकारण्य के बाद सबसे ज्यादा विभाजन पीड़ित बंगालियों कहीं भी यूपी में को बसाया
गया है। कहीं भी यूपी में बंगाली शरणार्थियों से भेदभाव की शिकायत नहीं मिली है।
बल्कि उत्तराखंड बनने के बाद वहां पहली बार सत्ता में आते ही भाजपा की सरकार ने
बंगाली शरणार्थियों को भारत का नागरिक मानने से इंकार कर दिया था। वहां भी
उत्तराखंड की जनता ने शरणार्थियों का कदम कदम पर साथ दिया है।यूपी में ही सामाजिक
बदलाव की दिशा बनी है।
यूपी ने ही बदलाव के
लिए बाकी देश का नेतृत्व किया है तो अब यूपी के हवाले है देश।
देश का दस दिगंत
सर्वनाश करने के लिए सिर्प यूपी जीतने की गरज से अर्थव्यवस्था के साथ साध करोड़ों
लोगों को बेमौत मारने का जो चाकचौबंद इंतजाम किया है संघ परिवार ने, उसके हिंदुत्व एजंडे का प्रतिरोध यूपी
से ही होना चाहिेए।यूपी वालों के पास ऐतिहासिक मौका है प्रतिरोध का। यूपी वालों, देश आपके हवाले हैं।
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