बीते एक साल में देश और दुनिया में काफी कुछ बदल गया है। एक अनजान से वायरस ने पूरी दुनिया को नाक-मुंह ढंकने पर मजबूर कर दिया। कई देश तालाबंदी (LockDown) की राह पर चल पड़े, ताकि बीमारी से बचा जा सके। इस दौरान अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह चौपट हो गई। दुनिया पूरी तरह उलट-पलट गई, लेकिन भारत में मानो आम जनता के लिए हालात बद से बदतर हो गए। यहां सरकार ने नाक-मुंह ढंकने के साथ आंखों पर भी पट्टी बांध ली है, ताकि आम जनता उसे नजर ही नहीं आए। अच्छे दिन तो बीते छह सालों में नहीं आए औऱ जीवन में जो थोड़ा-बहुत सुकून था, वो भी सरकार के मनमाने फैसलों के कारण धीरे-धीरे जाता रहा।
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बीते साल इन्हीं दिनों देश की राजधानी दिल्ली का शाहीन बाग एक अभूतपूर्व आंदोलन का गवाह बना था। मोदी सरकार ने नागरिकता को लेकर ऐसा कानून बनाया, जिससे लाखों लोगों को अपना औऱ भावी पीढ़ियों का भविष्य खतरे में नजर आय़ा। नतीजा ये हुआ कि जो महिलाएं अमूमन घरों में ही रहती थीं, वो इस कानून के विरोध में सड़कों पर बैठ गईं औऱ उनसे प्रेरणा लेकर देश में जगह-जगह शाहीन बाग जैसा आंदोलन ख़ड़ा हो गया। तब इन महिलाओं को भाजपा समर्थक और सरकार के अंधभक्त देश विरोधी बताने से बाज़ नहीं आए, बल्कि उनकी ईमानदारी औऱ चरित्र पर सवाल उठाए गए।
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एक साल बाद दिल्ली की सीमाओं पर फिर आंदोलन का ही नजारा है।
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इस बार नए कृषि कानूनों के कारण हजारों किसान सड़क पर बैठे हैं। लेकिन सरकार अब उन्हें ही गलत बताने पर तुली है। इधर देश में एक बार फिर भाजपा के विकल्प बनने और उसे कड़ी टक्कर देने की राजनीति भी शुरु हो गई है। सबकी निगाहें शरद पवार पर हैं।
वहीं पश्चिम बंगाल में भाजपा एक बार फिर साम-दाम-दंड-भेद अपनाती नजर आ रही है। तो आज आईने की नजर से हम समझने की कोशिश करेंगे किसानों की क्या है तकलीफ और कैसा है देश का राजनीतिक मिजाज़। शुरुआत करते हैं दो हफ्ते से जारी किसान आंदोलन से… देखिए पूरा ये वीडियो... शेयर भी करें और चैनल भी सब्सक्राइब करें