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10% of GDP in the US is a relief package to the poor and in India the capitalists are being repeatedly looted the treasury for relief and exemption.
कल रात विख्यात अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ से प्रख्यात पत्रकार प्रांजय गुहा ठाकुरता की बातचीत (Eminent journalist Pranjay Guha Thakurta talks to noted economist Jean Dreze) न्यूज क्लिक पर देखी। हम इन्हीं मुद्दों पर लगातार आपका ध्यान खींचने की कोशिश कर रहे हैं। यह वीडियो कल ही मैंने शेयर की है। इस पर चर्चा करते हैं।
सबसे जरूरी बात यह है कि हमारे मित्र हमारी सेहत के लिए चिंता न करें। हम बसंतीपुर में सकुशल हैं। सविता और मैं, हम दोनों चूंकि 60 पार हैं और मधुमेह के मरीज़ हैं, मेडिकल चेकअप, खून की नियमित जांच और दवाएं हमारे लिए जीवन की शर्त है। गांवों में मेडिकल चेक अप की सुविधा जाहिर है कि नहीं है। लॉक डाउन में खून की जांच (Blood test in lock down) भी नहीं कर सकते। बसंतीपुर में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जरूर है लेकिन न डॉकटर है और न दवाएं। प्राथमिक चिकित्सा तक नहीं हो सकती। रक्तचाप भी नहीं जान सकते। दिनेशपुर के अग्रवाल मेडिकल स्टोर से पुरानी पर्ची से दवा मंगाकर जी रहे हैं। बाकी छोटी मोटी तकलीफ के लिए डॉ. बबलू हैं।
कोई दूसरी गम्भीर बीमारी नहीं है।
लेकिन गांवों में लोग गम्भीर बीमारियों से पीड़ित हैं और उनकी चिकित्सा का वही हाल है, जैसे कल सावित्री भाभी के प्रयाण पर कल मैंने लिखा है।
द्रेज़ ने कल बुजुर्गों की खास चर्चा की है। कोरोना से इन्हें ही सबसे ज्यादा खतरा है। सरकारी नौकरी में जो लोग थे, उनके अलावा किसी को कोई पेंशन नहीं है। रोज़गार के साधन भी नहीं है। न कोई सामाजिक सुरक्षा है। इनमें से ज्यादातर लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है और हैं तो एपीएल कार्ड। इन्हें इस लॉक आउट से कहीं कोई राहत नहीं है और न सरकार इनके लिए कुछ कर रही है।
रूपेश आज सुबह ही आ गए हैं हम लोग मास्साब की जीवनी पर काम कर रहे हैं।
रूपेश और मैं काम शुरू ही कर पाए थे कि दुर्गापुर से इस इलाके के सबसे बुजुर्ग सामाजिक कार्यकर्ता बिरिंची बाबू, लक्ष्मीपुर से उनके और हमारे बुजुर्ग साथी पीयूष दा और रामबाग से असितजी और सुदामा मण्डल हमारी सेहत की खबर लेने गांव-गांव होकर आ पहुंचे।
बिरिंची बाबू पिताजी के साथी रहे हैं तो पीयूष दा और असितजी और सुदामाजी मास्टर प्रताप सिंह के आंदोलन के साथी। भाई पद्दोलोचन भी माससाब के मित्र और साथी रहे हैं। पड़ोसी विवेक दास भी मास्साब को जानते रहे हैं। मास्साब के आंदोलनों और उनके संस्थागत कार्य शैली, उनके संगठन और विचारों पर अच्छी खासी चर्चा हो गयी।
इसी सिलसिले में लॉक डाउन, बन्द कल कारखानों, दिहाड़ी मजदूरों, किसानों और कारोबार से जुड़े आर्थीक संकट, अर्थ व्यवस्था, बेरोज़गारी और भुखमरी की भी चर्चा हुई।
द्रेज़ के इंटरव्यू पर विस्तार से बात हुई।
बुजुर्ग सामाजिक कार्यकर्ताओं को इलाक़े के पढ़े लिखे शहरी लोगों से खास शिकायत है कि उन्हें गांव और किसान की कोई परवाह नहीं है।
अमेरिका में जीडीपी का दस प्रतिशत ग़रीबों को राहत पैकेज है। भारत में जीडीपी का आधा प्रतिशत ही राहत है। इस राहत में भी आधा से ज्यादा प्रावधान बजट के हैं। जबकि पूंजीपतियों को बार-बार राहत और छूट के लिए खजाना लुटाया जा रहा है।
द्रेज़ ने इस पर सिलसिलेवार बात की है
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जन्म 18 मई 1958
एम ए अंग्रेजी साहित्य, डीएसबी कालेज नैनीताल, कुमाऊं विश्वविद्यालय
दैनिक आवाज, प्रभात खबर, अमर उजाला, जागरण के बाद जनसत्ता में 1991 से 2016 तक सम्पादकीय में सेवारत रहने के उपरांत रिटायर होकर उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर में अपने गांव में बस गए और फिलहाल मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रेरणा अंशु के कार्यकारी संपादक।
द्रेज़ का कहना है कि कोरोना से होने वाली मौतों के नज़रिए से आम जनता की तकलीफ, बेरोज़गारी, भुखमरी और अर्थ व्यवस्था के संकट को सिरे से खारिज कर देना सरासर गलत है।
उन्होंने कहा कि अकेले झारखण्ड में 60 लाख परिवारों के पास राशन कार्ड नहीं है, जबकि उन्होंने अप्लीकेशन दी है। सूची भी तैयार है। लेकिन कार्ड नहीं मिला। उन्होंने कहा कि प्रवासी मजदूरों के राशन कार्ड नहीं है। इन सभी को मुफ्त राशन देना चाहिए।
द्रेज़ ने कहा कि लॉक डाउन से रोजी रोटी काम धंधे बन्द है। सिर्फ बीपीएल क्यों, एपीएल वालों को भी राशन चाहिए।
जैसा कि उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस में अपने लेख में कहा कि एफसीआई के गोदामों में जमा तीन गुना अनाज आम जनता में बांट दिया जाना चाहिए।
पलाश विश्वास