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36 Farmhouse Movie Review, मूवी रिव्यू : 36 फार्महाउस
किसी भी फ़िल्म को देखने से पहले आप क्या देखते हैं? उसकी कहानी? उसके एक्टर्स? उसमें उनकी की गई एक्टिंग? कोई जॉनर? डायरेक्टर? या कुछ और? सिनेमैटोग्राफी, बैकग्राउंड स्कोर, गीत-संगीत, कैमरा आदि के बारे तो सामान्य दर्शक कहाँ देखते-सोचते हैं?
36 फ़ार्म हाउस की कहानी : कॉमेडी मिक्स मर्डर मिस्ट्री
'36 फ़ार्म हाउस' देश के किसी कोने में बना यह आलीशान बंगला और उसकी 300 एकड़ जमीन। इस सब की एक बूढ़ी, विधवा मालिकन। जिसने अपने एक बेटे के नाम यह सब लिख दिया। उस बेटे के दो और भाई हैं जो यह सब अपने नाम करवाना चाहते हैं। इसी बीच एक मर्डर, थोड़ा सा रोमांस, थोड़ी सी कॉमेडी, कुछ गाने बस तैयार हो गई कॉमेडी मिक्स मर्डर मिस्ट्री (comedy mix murder mystery)।
लेकिन इस फ़िल्म 36 फ़ार्म हाउस को क्यों नहीं देखा जाए?
इस सवाल को ऐसे भी पूछा जा सकता है कि इस फ़िल्म को ही क्यों देखा जाए?
'राम रमेश शर्मा' एक अच्छे निर्देशक के रूप में पहचान रखते हैं। इससे पहले 'काफ़िरों की नमाज़' नाम से उन्होंने जिस फ़िल्म का निर्देशन किया था वह इस बार वाली फिल्म के काफी ऊचें स्तर का निर्देशन था। लेकिन इस बार लगता है जैसे वे 'सुभाष घई' जैसे निर्देशक की कहानी को फिल्माने भर के लिए इस अवसर का लाभ लेना चाहते थे।
'सुभाष घई' ने काफी समय से फिल्में बनाना बन्द सा कर रखा है बल्कि अब वे फिल्में और उनके लिए गाने लिखने लगे हैं। साथ ही नए निर्देशकों को मौका देने का अच्छा काम कर रहे हैं। पर अफ़सोस की इस बार 'राम रमेश शर्मा' के हाथों से यह फ़िल्म छलनी में से चाय की तरह छन कर बाहर आ जाती है। साथ ही बाहर आती है उसकी कई कमजोरियां जिन्हें आप टूटी हुई छलनी से जैसे चायपत्ती साथ आकर मुंह के स्वाद को खराब करती है वैसा समझ सकते हैं।
'ज़ी5' के ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आई '36 फार्महाउस' में कलाकार तो काफ़ी आला दर्ज़े वाले हैं मसलन 'संजय मिश्रा', 'विजय राज', 'अश्विनी कलसेकर', 'माधुरी भाटिया', 'अमोल पाराशर' और 'बरखा सिंह' आदि। लेकिन 'अमोल पाराशर' को छोड़ कोई भी संज़ीदगी से अपना काम करता नज़र नहीं आता। 'संजय मिश्रा' कॉमेडी जरूर करते हैं लेकिन उससे वे उस तरह हंसा नहीं पाते, न ही ठीक से पूरा मनोरंजन कर पाते हैं। 'विजय राज' हर समय अक्खड़पन का शिकार नज़र आते हैं। इसी अक्खड़पन के कारण वे कमजोर कड़ी बन जाते हैं। बाकी 'अश्विनी कलसेकर' , ' माधुरी भाटिया' आदि भी ठीक-ठाक ही एक्टिंग करते हैं। लेकिन इतनी नहीं कि तारीफें की जा सकें।
फ़िल्म की कमजोर कड़ी कहानी के साथ-साथ इसकी स्क्रिप्टिंग, सिनेमैटोग्राफी, कैमरा, डबिंग, गीत-संगीत, डायलॉग्स आदि रहे हैं। 'सुभाष घई' और शरद त्रिपाठी की लिखी इस फ़िल्म पर थोड़ी और मेहनत की जाती, थोड़ा बजट और बढ़ाया जाता, थोड़ी एक्टिंग, डबिंग आदि को मांजा जाता तो यह हैरान भी करती। लेकिन फिर से अफ़सोस की यह हैरान करने के चक्कर में परेशान ही ज़्यादा करती नज़र आती है। 'ज़ी5' के ओटीटी प्लेटफार्म पर इसे आज से देखा जा सकता है। यह रिव्यू आपको फ़िल्म देखने के बाद या उससे पहले कैसा लगा बताइएगा जरूर।
अपनी रेटिंग - 2 स्टार
तेजस पूनियां