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पुलिस के साये में मनाया गया संस्कृतिकर्मी सुंदर मरांडी का 5वां शहादत दिवस

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hastakshep
01 Mar 2020
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पुलिस के साये में मनाया गया संस्कृतिकर्मी सुंदर मरांडी का 5वां शहादत दिवस

5th Martyr's Day of Culture worker Sundar Marandi celebrated under the shadow of police

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झारखंड के गिरिडीह जिला के पीरटांड प्रखंड के खुखरा थानान्तर्गत चतरो गांव ( Pirtand (also spelled Pirtanr), a village in Pirtand CD Block in Dumri subdivision of Giridih district in the Indian state of Jharkhand) में 28 फरवरी 2020 को सांस्कृतिक संगठन ‘झारखंड एभेन’ के संस्थापक कामरेड सुंदर मरांडी (Comrade Sundar Marandi) का 5वां शहादत दिवस समारोह, शहीद मेला व करम पर्व को बहुत ही उत्साहपूर्वक व जोश-खरोश के साथ मनाया गया। इसका आयोजन शहीद सुंदर मरांडी स्मारक समिति (चतरो, गिरिडीह) के बैनर तले किया गया था।

कार्यक्रम में शामिल होने वालों में भय का माहौल पैदा करने के लिए कार्यक्रम स्थल से मात्र 200 मीटर की दूरी पर अर्द्धसैनिक बल सीआरपीएफ की एक कम्पनी (70-80 जवान) कार्यक्रम शुरु होने के तुरंत बाद ही तैनात हो गई थी।

वैसे तो कार्यक्रम के आयोजकों का कहना था कि कुछ दिन पहले से ही पूरे इलाके में थाना के दलालों के जरिये यह खबर प्रचारित कर दिया गया था कि इस बार के कार्यक्रम में कुछ नक्सली भी आने वाले हैं, इसलिए पुलिस इसमें शामिल होने वाले तमाम लोगों पर मुकदमा कर सकती है और कार्यक्रम स्थल से भी कुछ लोगों की गिरफ्तारी हो सकती है।

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इलाके में इस प्रकार के दुष्प्रचार हो जाने से कार्यक्रम में शुरुआत में काफी कम लोग शामिल थे, लेकिन जब कार्यक्रम अपने पूरे तेवर के साथ प्रारंभ हो गया और मांदल, नगाड़े व बांसुरी की तान पर संस्कृतिकर्मियों के साथ-साथ उपस्थित जन-समुदाय भी नृत्य करने लगे, तब आस-पास के गांवों के हजारों महिला, पुरुष, वृद्ध, बच्चे कार्यक्रमस्थल की ओर चल पड़े।

जिन गांवों तक लाउड-स्पीकर के माध्यम से आवाज नहीं पहुंच पा रही थी, वहां पर उनके रिश्तेदारों ने मोबाइल के माध्यम से सूचना दी, जिसका परिणाम यह निकला कि शाम होते-होते लगभग 5 हजार संथाल आदिवासी वहां जमा हो गये और सीआरपीएफ भी अंधेरा होने के पहले ही वहां से निकल गये।

कार्यक्रम में इलाके की 10 सांस्कृतिक टीमों ने हिस्सा लिया और रात के 2 बजे तक सभी टीमों ने अपनी-अपनी प्रस्तुति दी, जिसके बाद सभी टीमों को एक-एक जोड़ा करताल देकर सम्मानित किया गया। फिर सभी टीम के संस्कृतिकर्मी व वहां उपस्थित सभी लोग 4 बजे सुबह तक सामूहिक नृत्य करते रहे और एकबार फिर गीत और नृत्य ने सीआरपीएफ की बंदूक को खामोश कर दिया।

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Martyrdom Day of Comrade Sundar Marandi

आयोजकों ने बाद में बताया कि गांव से बाहर गांव घुसने के रास्ते पर ही सीआरपीएफ की एक कम्पनी तैनात हो जाने के कारण लोगों में डर तो व्याप्त हो ही गया था, लेकिन प्रत्येक साल संस्कृतिकर्मी कामरेड सुंदर मरांडी का शहादत दिवस मनाया जाता है और प्रत्येक साल ही सीआरपीएफ आती है। पिछले साल तो सीआरपीएफ की कई टुकडि़यां कार्यक्रम स्थल के चारों तरफ जंगलों में तैनात थी, एक टुकड़ी तो कार्यक्रम का वीडियो भी बना रही थी और तस्वीरें भी ले रही थी। इसलिए इस बार भी सीआरपीएफ का आना रूटीन मात्र ही था, ताकि लोग डरकर कार्यक्रम में ना आ पाये।

Many women and men of this village have been booked for being Maoists.
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मालूम हो कि कार्यक्रम स्थल (चतरो, गिरिडीह) पारसनाथ पहाड़ की तराई में स्थित है, इसलिए इस गांव के ग्रामीणों का सीआरपीएफ से रोज-ब-रोज पाला पड़ता ही रहता है।

इस गांव के कई महिला-पुरुषों पर माओवादी होने का मुकदमा दर्ज है। दर्जनों ग्रामीण माओवादी होने के आरोप में जेल गये हैं, जिसमें कई जमानत पर छूटे हैं, तो कई अभी भी जेल में बंद हैं। इस गांव में पुलिस का आना 70 के दशक से ही प्रारंभ हो चुका था, जब से इस इलाके में तत्कालीन माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) ने अपनी पैठ बनानी शुरू की थी।

इसी गांव में एक बहुत ही गरीब संथाल आदिवासी परिवार में कामरेड सुंदर मरांडी का जन्म 08 मई 1965 को हुआ था। इन्होंने ही अपने दो साथियों के साथ मिलकर 30-31 अक्टूबर 1989 ई. में सांस्कृतिक संगठन ‘झारखंड एभेन’ का निर्माण किया था, जिसमें से एक सदस्य अभी भी सांस्कृकित रूप से इलाके के स्तर पर सक्रिय है, क्योंकि कुछ साल पहले ही झारखंड सरकार ने ‘झारखंड एभेन’ को भाकपा (माओवादी) का सांस्कृतिक संगठन बताकर उसे प्रतिबंधित कर दिया है। इसलिए ‘झारखंड एभेन’ के तमाम संस्कृतिकर्मी वर्तमान समय में पुलिस से छिपकर ग्रामीणों के बीच गीत, नृत्य व नाटक के जरिए जनवादी संस्कृति के साथ-साथ डायन-बिसाही, दहेज प्रथा, नशा, सोखा-ओझा, अंधविश्वास के खिलाफ, महिला अधिकार व आदिवासियों के परम्परागत सभ्यता-संस्कृति व जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए जनवादी चेतना का प्रचार-प्रसार करते हैं।

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Who was Comrade Sundar Marandi

‘झारखंड एभेन’ के अगुवा होने व एक शानदार गायक, बांसुरीवादक, गीत रचयिता व कई भाषाओं (खोरठा, संथाली, हिन्दी, बांग्ला, मुंडारी, हो) में गीत गाने के कारण कामरेड सुंदर मरांडी उत्तरी छोटा नागपुर के ग्रामीण इलाके के हरेक गांवों में एक जाना-पहचाना नाम हो गये थे। ये सिर्फ अपनी कला का गांवों में ही प्रदर्शन नहीं करते थे बल्कि जब भी इन्हें मौका मिला, इन्होंने केरल, कलकत्ता, दिल्ली, बनारस व हैदराबाद जैसे शहरों में भी जाकर झारखंड के गीत गाये।

21 मई 2014 को जंगल के रास्ते अपने गांव से दूसरे गांव जाने के क्रम में पुलिस ने इन्हें माओवादी नेता होने का आरोप लगााकर गिरफ्तार कर लिया था और इनका काफी शारीरिक व मानसिक टॉर्चर किया था। जमानत पर जेल से छूटने के बाद भी पुलिस के बर्बर उत्पीड़न ने इन्हें सर दर्द व पीठ दर्द का कभी न छूटने वाला रोग दे दिया था। जिस कारण ही 27 फरवरी 2015 को रात के 11 बजे रांची के रिम्स अस्पताल में इन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।

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28 फरवरी 2015 को इनके गांव चतरो में ही इन्हें दफनाया गया था, जब से ही प्रत्येक साल 28 फरवरी को इनका शहादत दिवस समारोह, शहीद मेला व करम पर्व एक साथ ही मनाया जाता है।

प्रत्येक साल की तरह इस साल भी इनके गांव में प्रवेश के दोनों रास्तों पर तोरणद्वार बनाया गया था, जिस पर एक बैनर लगा हुआ था, जिसके दोनों तरफ कामरेड सुंदर मरांडी की मुस्कुराती हुई तस्वीर लगी हुई थी और उसपर लिखा हुआ था ‘सुंदर मरांडी की शहादत समारोह एवं मोरा करम पर्व में स्मारक समिति आप तमामों का हार्दिक अभिनंदन करता है‘।

स्मारक स्थल को कागज के पताके से सजाया गया गया था और उसके ठीक बगल में ही एक भव्य मंच बनाया गया था। मंच के सामने मैदान को भी कागज के पताके से बहुत ही अच्छी तरह से सजाया गया था।

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कार्यक्रम की शुरुआत कामरेड सुंदर मरांडी के घर से निकले जुलुस से हुई, जिसमें सबसे आगे ‘शहीद सुंदर मरांडी स्मारक समिति’ की सांस्कृतिक टीम नृत्य करते व गीत गाते चल रही थी और उसके पीछे चल रहे कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए कई जगहों की जनता।

जुलूस के स्मारक स्थल पर पहुंचने के बाद कामरेड सुंदर मरांडी के स्मारक पर बारी-बारी से सभी लोगों ने ‘झारखंड एभेन के संस्थापक कामरेड सुंदर मरांडी अमर रहे‘, ‘कामरेड सुंदर मरांडी को लाल सलाम’, ‘कामरेड सुंदर दा को हूल जोहार’ जैसे गरजते नारों के बीच माल्यार्पण किया, जिसकी शुरुआत की उनकी पत्नी व दोनों बेटों ने।

उसके बाद दो शहीद गीत (एक संथाली व एक हिन्दी) गाये गये। उसके बाद सभी लोग कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे, मंच पर अतिथियों को बुलाने के बाद फिर सुंदर मरांडी रचित दो गीत गाये गये।

पहला गीत था, ‘हमर झारखंड रे भइया, सबसे सुंदर रे, आके देखो रे, हम मेहनतकश दिलवाले आदिवासी रे, हम झारखंडी रे, हम आदिवासी रे.......’ और दूसरा गीत ‘शोषण जुलुम बढ़े लागल मजदूर-किसान जागे, छात्र-नौजवान-बुद्धिजीवी जागे......’

मंचीय कार्यक्रम की शुरुआत कामरेड सुंदर मरांडी के सहयोगी व शहीद सुंदर मरांडी स्मारक समिति के अध्यक्ष भैया मुर्मू के स्वागत भाषण से हुई।

उद्घाटन वक्तव्य स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह ने दिया, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के केन्द्रीय अध्यक्ष बच्चा सिंह ने।

वक्ताओं में शामिल थे मेहनतकश महिला संघर्ष समिति की सुमित्रा देवी, झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के बोकारो थर्मल शाखा सचिव रज्जाक अंसारी, कई गांवों के मांझी हड़ाम (ग्राम प्रधान), पराणीक, जोग मांझी व कई संस्कृतिककर्मी आदि।

वक्ताओं ने कामरेड सुंदर मरांडी के जीवन व व्यवहार के बारे में विस्तार से बातें रखी। साथ ही एनआरसी, सीएए व एनपीआर के खिलाफ चल रहे आंदोलन के बारे में, दिल्ली में आरएसएस व भाजपा के नेतृत्व में किये जा रहे अल्पसंख्यकों पर हमले के बारे में एवं जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए उठ खड़े होने का आह्वान भी सभी वक्ताओं ने किया।

इस कार्यक्रम में सभी ने एक स्वर में कहा कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को शहीद कामरेड सुंदर मरांडी द्वारा गठित सांस्कृतिक संगठन ‘झारखंड एभेन’ पर से प्रतिबंध हटाना चाहिए क्योंकि प्रत्येक वर्ष झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता भी कामरेड सुंदर मरांडी के शहादत समारोह में शामिल होकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते रहे हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘झारखंड एभेन’ साम्राज्यवादी-पूंजीवादी संस्कृति के खिलाफ जनवादी संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते हैं और एक शोषणहीन समाज निर्माण के लिए ग्रामीणों को अपने गीत, नृत्य व नाटक के जरिये गोलबंद करते हैं।

रूपेश कुमार सिंह

स्वतंत्र पत्रकार

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