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83 की कहानी को फिर से जीने का मौका देती ये '83'

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hastakshep
25 Dec 2021
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दरारें : प्यार करना और जीना उन्हें कभी नहीं आएगा जिन्हें ज़िंदगी ने बनिया बना दिया

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Film review of '83'. फिल्म 83 की समीक्षा

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83 movie review in Hindi by Himanshu Joshi

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सिनेमा के सबसे मुख्य कार्य हैं दर्शकों का मनोरंजन (audience entertainment) करना और कोई सामाजिक संदेश देना।

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यदि आप सिनेमा को सिर्फ इतिहास समझने या कोई महत्त्वपूर्ण सीख लेने के लिए देख रहे हैं तो आप गलत जगह हैं, आपका रास्ता पुस्तकालय की ओर जाता है।

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1983 में जीता क्रिकेट वर्ल्ड कप, तब पूरे भारतवर्ष के लिए भारतीय इतिहास के कुछ गौरवशाली पलों में से एक था और कबीर खान के निर्देशन में आप उन पलों को फिर से जी सकते हैं। 'क्रिकेट' एक टीम गेम है और इस फ़िल्म की सफलता भी सिर्फ रणवीर और दीपिका की न होकर इस फ़िल्म से जुड़ी पूरी टीम की मेहनत का नतीज़ा है।

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फ़िल्म का पहला दृश्य ही आपको उस ऐतिहासिक दिन की झलक दिखाता है।

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मेकअप टीम का शानदार काम

शुरुआत में आपका ध्यान फ़िल्म के कलाकारों को पहचानने की ओर ज्यादा रहेगा, फ़िल्म की कास्ट बेहतरीन है और कलाकारों की इस पूरी टीम ने पहले से मशहूर लोकप्रिय खेल हस्तियों का चेहरा बन बड़े पर्दे पर उनकी परछाई के रूप में खुद को भी अमर कर दिया है।

मोहिंदर अमरनाथ, नीना गुप्ता का फ़िल्म से जुड़ना ऐतिहासिक है, तो रणवीर सिंह से लेकर एमी विर्क को 83 से जुड़े हर शख्सियत का परफेक्ट चेहरा बना कबीर खान ने झंडे गाड़ दिए हैं।

मेकअप टीम के बिना यह सब असम्भव था, बड़े पर्दे पर रणवीर को कपिल देव जैसा लुक देना हो या दीपिका को हूबहू रोमी देव बना देना, इस टीम का काम काबिले तारीफ रहा।

कपिल देव के रोल में रणवीर : भूमिका के साथ न्याय

अभिनय पर बात कर ली जाए तो कपिल देव का व्यवहार रणवीर वैसा ही निभाते हैं जैसे कपिल हैं, अभ्यास मैच हारने के बाद प्रेस कांफ्रेंस वाला सीन इसकी बानगी भर है।

दीपिका के पास जितना अभिनय करने के लिए था उन्होंने अच्छा किया। मान सिंह बने पंकज त्रिपाठी, गावस्कर बने ताहिर भसीन, श्रीकांत बने जीवा, संधू बने एमी विर्क सहित हर अन्य सितारों ने अपना बेहतरीन दिया है। यशपाल शर्मा बने जतिन सरना भी विशेष रूप से प्रभावित करते हैं।

फ़िल्म 83 की कहानी और सुनील गावस्कर और कपिल देव के रिश्तों की अंतर्कथा

फ़िल्म की कहानी वह सब दिखाती आगे बढ़ती है जैसा उस काल में क्रिकेट हुआ करता था, फिर चाहे वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम के रुतबे को दिखाना हो या भारतीय टीम के लिए सुविधाओं का अभाव। फ़िल्म में सुनील गावस्कर और कपिल के रिश्तों पर भी प्रकाश डाला गया है। सचिन के सचिन बनने की शुरुआत भी यहां दिखती है।

इंटरवल के बाद फ़िल्म हर क्षेत्र में बेहतरीन बन जाती है, फिर चाहे वह पटकथा के मामले में हो या संगीत के।

फ़िल्म की पटकथा खूबसूरती से यह अहसास कराती है कि अतीत के पन्नों को पर्दे पर उतार दिया गया है।

फ़िल्म में त्रुटियां खोजने पर भी नहीं मिलती, वानखेड़े की टैक्सी वाले किस्से का अधूरा न छूटना इसका सबूत है। रेडियो पर कमेंट्री सुनना, टीवी एंटीना का हिलाना, डेविड फ्रिथ का किस्सा और बॉर्डर पर गोलीबारी, सब कुछ ध्यान रख चुन-चुन कर फ़िल्म में लाया गया है।

टीम बस में बैकग्राउण्ड पर बजता गाना 'हम बने तुम बने एक दूजे के लिए' दर्शकों को 1983 में ही ले कर चले जाता है। फ़िल्म के अंतिम पलों में बैकग्राउंड संगीत ने तो कमाल ही कर दिया है।

'लहरा दो' गीत 'चक दे' वाला कमाल दोहरा सकता है।

फ़िल्म के कुछ दृश्य बेहतरीन हैं जैसे मार्शल-वेंगसरकर का आमना-सामना।

कपिल के शॉट पर ड्रेसिंग रूम का शीशा टूटने वाला दृश्य सिनेमाघर पर दर्शकों की सीटी बजवा देगा तो श्रीकांत का पार्टी में बोलना सबको भावुक कर देगा।

फ़िल्म के संवाद में अतीत के वो संवाद भी शामिल है जो मिसाल बन गए थे, अब कुछ बेहतरीन संवाद जोड़ उस याद को दिल के और करीब पहुंचा दिया गया है। जैसे कपिल का 'इंडिया में फास्ट बॉलर नही होते' और कपिल का संधू को प्रोत्साहित करने वाला पूरा संवाद।

फ़िल्म खत्म होते-होते भी कपिल की जुबानी कुछ किस्से सुना दर्शकों को उनकी सीट से बांध दिया गया है और यह साबित करता है कि '83' भारतीय फिल्म इतिहास की कुछ याद रखे जाने वाली फिल्मों के क्लब में शामिल हो चुकी है।

फ़िल्म एक महत्वपूर्ण कारण से परफेक्ट रेटिंग नही ले पाई, वह है इसका विषय।

फ़िल्म सिर्फ़ उन दर्शकों के लिए है जिन्हें क्रिकेट से लगाव है या कभी रहा होगा।

अभिनय- रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, पंकज त्रिपाठी, साकिब सलीम, जतिन सरना, निशांत दहिया, एमी विर्की

निर्देशक- कबीर खान

लेखन- सुमित अरोड़ा, वासन बाला, संजय पूरन सिंह चौहान

संवाद- कबीर खान, सुमित अरोड़ा

संगीत- प्रीतम चक्रवर्ती, जूलियस पैकियम

छायांकन- असीम मिश्रा

समीक्षक- हिमांशु जोशी

रेटिंग- 3.5/5

himanshu joshi jouranalism हिमांशु जोशी, पत्रकारिता शोध छात्र, उत्तराखंड।

himanshu joshi jouranalism हिमांशु जोशी, पत्रकारिता शोध छात्र, उत्तराखंड।

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