A large section is doing pandemic politics and also business
इतनी बुरी खबरें चारों दिशाओं से आ रही हैं कि हिम्मत टूट रही है। इसी बीच कुछ बेहतर खबरें भी आ रही हैं।
हमारे अग्रज सहयोद्धा कौशल किशोर जी और महेंद्र नेह जी, दोनों कोरोना को हराकर सकुशल घर लौटे हैं और पहले की तरह सक्रिय हो गए हैं। प्रेरणा अंशु के मई अंक में कौशल किशोर जी की आपबीती छाप रहे हैं। जून अंक में महेंद्र नेह जी और दूसरे साथियों की कोरोना डायरी छापने की योजना है।
जिस तेजी से हमारी और मृत्यु हमारे दिलोदिमाग पर छा रही है, उससे बचने के लिए कोरोना से जूझ रही जनता को हिम्मत देने के लिए कृपया ऐसी सकारात्मक खबरें भी शेयर करें तो बेहतर।
आज शाम नागपुर से मशहूर लेखिका इंदिरा किसलय जी से फोन पर करीब घण्टे भर बात हुई। इसमें कोई शक नहीं है कि मीडिया और विभिन्न निहित स्वार्थ जो कोरोना की दहशत पैदा करके हर घटना को बहुत बड़ा बनाकर पेश करते हुए आपदा को अवसर बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जनता को उससे भी बचाने की जरूरत है।
यह विडंबना है कि एक बड़ा वर्ग महामारी की राजनीति (Epidemic politics) कर रहा है और बिजनेस भी। यह मानवीय महाआपदा उनके लिए सिर्फ राजनीति और बिजनेस है। जरूरी चीजों और सेवाओं के महंगे होने की वजह यही है।
दवा और वैक्सीन बेचने वाली कम्पनियों की ओर से भी मौके का पूरा वाणिज्यीकरण हो रहा है। दुनिया का सारा बाज़ार 130 करोड़ भारतीय जनता को गिनीपिग बनाने पर तुल गया है। हर साल वैक्सीन लगाने की योजनाएं बन रही हैं। सोवियत संघ और ऐसे दूसरे देश जहां नागरिकों की जैविकी संरचना हमसे एकदम अलग है, जलवायु और मौसम अलग है, पर्यावरण और परिस्थिति अलग है, वे कोराना की आड़ में भारतीय बाजार पर कब्जा करना चाहती हैं। इससे कैसे बचा जाए?
कम से कम हम जाने अनजाने उनकी मदद तो न करें।
सरकार ने हमें बाजार के हवाले कर दिया। उत्तराखण्ड जैसे राज्य में इलाज का कोई बंदोबस्त नहीं है। बुनियादी चिकित्सा ढांचा ध्वस्त हैं। अस्पतालों में डॉक्टर नहीं है। दवाएं नहीं हैं। वेंटिलेटर नहीं है। ऑक्सीजन नहीं है। दूसरी गम्भीर बीमारियों का इलाज सिरे से बन्द है। दुर्घटना और आपात सेवाएं बन्द है। निजी अस्पतालों में लूट मची है।
कोरोना काल में एनजीओ क्या कर रहे हैं ? | What are NGOs doing during the Corona era?
ऐसे में सामाजिक संस्थाओं, नगर पालिकाओं, निगमों और पंचायतों को आगे आना होगा। एनजीओ क्या कर रहे हैं ? जो काम सिख संगत कर रही है, दूसरी संस्थाएं मसलन धार्मिक और जाति संगठन समाज को बचाने के लिए करें, तो हम कोरोना को यक़ीनन हरा सकते हैं।
कोरोना काल में नागरिक कर्तव्य | Civil duties in the Corona era
कम से कम अपनी सेहत का तो ख्याल रखें। भीड़ से बचें। शारीरिक दूरी बनाए रखें। पाखण्ड और आडम्बर से बचें। यह तो नागरिक कर्तव्य है। कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं। विडम्बना यह है पढ़े लिखे स्त्री पुरुष ज्यादा लापरवाह और गैर जिम्मेदार हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से अंध हैं।
पलाश विश्वास

जन्म 18 मई 1958
एम ए अंग्रेजी साहित्य, डीएसबी कालेज नैनीताल, कुमाऊं विश्वविद्यालय
दैनिक आवाज, प्रभात खबर, अमर उजाला, जागरण के बाद जनसत्ता में 1991 से 2016 तक सम्पादकीय में सेवारत रहने के उपरांत रिटायर होकर उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर में अपने गांव में बस गए और फिलहाल मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रेरणा अंशु के कार्यकारी संपादक।
उपन्यास अमेरिका से सावधान
कहानी संग्रह- अंडे सेंते लोग, ईश्वर की गलती।
सम्पादन- अनसुनी आवाज – मास्टर प्रताप सिंह
चाहे तो परिचय में यह भी जोड़ सकते हैं-
फीचर फिल्मों वसीयत और इमेजिनरी लाइन के लिए संवाद लेखन
मणिपुर डायरी और लालगढ़ डायरी
हिन्दी के अलावा अंग्रेजी औऱ बंगला में भी नियमित लेखन
अंग्रेजी में विश्वभर के अखबारों में लेख प्रकाशित।
2003 से तीनों भाषाओं में ब्लॉग
हमें गूगल न्यूज पर फॉलो करें. ट्विटर पर फॉलो करें. वाट्सएप पर संदेश पाएं. हस्तक्षेप की आर्थिक मदद करें