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हिंदी पत्रकारिता दिवस पर पत्रकारिता के छात्रों के लिए एक सन्देश

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Guest writer
31 May 2022
जानिए स्वाधीनता संघर्ष में पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका क्या है

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A message for journalism students on Hindi Journalism Day

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पण्डित युगुल किशोर शुक्ल ने 30 मई 1826 में प्रथम हिन्दी समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन (Publication of first Hindi newspaper Udant Martand) आरम्भ किया था. यह अखबार एक साल से ज्यादा नहीं चला पर हिंदी पत्रकारिता के ऐसे बीज बो गया कि हिंदी पत्रकारिता समय के साथ और भी मजबूत होती चली गई.

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कोरोना काल में पत्रकारिता

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आज से दो साल पहले मई माह में ही मैंने कोरोना काल के दौरान स्वतंत्र पत्रकारिता शुरू की. नैनीताल समाचार के संपादक राजीव लोचन साह (Editor of Nainital Samachar Rajeev Lochan Sah) के मार्गदर्शन में मैं सामाजिक विषयों पर लिखने लगा.

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एक स्वतंत्र पत्रकार क्या चाहता है?

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एक स्वतंत्र पत्रकार यह चाहता है कि उसका लिखा ज्यादा लोगों तक पहुंचे इसलिए मैं भी कई जगह लिखा भेजने लगा. बहुत से अनुभवी पत्रकारों से सम्पर्क बने और उनसे बहुत कुछ सीखने के लिए मिला.

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पत्रकारिता के संस्थानों में शायद कोई छात्र वह सब न सीख सके जो जमीन पर कार्य कर चुके इन अनुभवी पत्रकारों ने अपनी कुछ पंक्तियों से ही मुझे सिखा दिया. इन अनुभवी और महत्वपूर्ण पत्रकारिता संस्थानों में काम कर चुके या कर रहे पत्रकारों के साथ मेरे संवाद हिंदी पत्रकारिता में शामिल होने जा रहे पत्रकारिता के छात्रों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं.

रामदत्त त्रिपाठी का सन्देश क्या है? डिजिटल पत्रकारिता के महत्वपूर्ण नियम | डिजिटल मीडिया को समझें | न्यूज पोर्टल के लिए समाचार या लेख कैसे लिखें ?

बीबीसी में वर्षों काम कर चुके और अब मीडिया स्वराज नामक पोर्टल चला रहे रामदत्त त्रिपाठी का सन्देश सबसे महत्वपूर्ण है.

वह लिखते हैं समाचार संकलन/ विश्लेषण एवं लेखन के मार्गदर्शक सिद्धांत/ नियम.

आप अपने आसपास की सामाजिक ,राजनीतिक, आर्थिक, आध्यात्मिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, खेल कूद की संक्षिप्त रपट भेज सकते हैं.

इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि विषय सम-सामयिक और तात्कालिक महत्व का हो. निबंध में लम्बी भूमिका के बाद सबसे महत्वपूर्ण बात उपसंहार में लिखते हैं.

समाचार पोर्टल में उसका उल्टा है, सबसे पहले हेडलाइन लिखते हैं. फिर नई और महत्वपूर्ण बात सबसे पहले लिखी जाती है और फिर उसी क्रम में, ताकि कोई अगर केवल दो चार पैरा पढ़ना चाहता है तो उसे मुख्य बात पता चल जाए, महत्वपूर्ण बात से वह वंचित न हो.

न्यूज रिपोर्ट तीन चार 400 से छह 600 सौ शब्दों के बीच और फीचर/ लेख अधिकतम 1000 हजार शब्दों तक होना चाहिए. विषय के साथ न्याय के लिए ज्यादा बड़ा लिखना आवश्यक है तो पहले सम्पादक से परामर्श कर लें.

रामदत्त त्रिपाठी Focus Key Phrase की महत्ता समझाते हुए लिखते हैं.

कृपया लेखन प्रारम्भ करने के पहले अधिकतम चार शब्दों का की फ्रेज / थीम चुनें , जिसके आधार पर सर्च इंजिन पहचाने.

फिर इसी की फ्रेज को केंद्र में रखकर हेडलाइन लिखें जो आकर्षक हो.

पहले पैरा में की फ्रेज जरूर शामिल करें और लेख के बीच में भी कई बार इसका प्रयोग करें.

न्यूज रिपोर्ट अनिवार्य रूप से तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए और जिसने तथ्य बताए हैं उसको उद्धृत करें.

किसी कारण से कोई नाम न देना चाहे तो भी उसकी पहचान बताए बिना पाठक को संकेत मिलना चाहिए ताकि वह तथ्यों की प्रामाणिकता के बारे में आश्वस्त हो. खबरों में निजी राय न लिखें, जानकार, टीकाकार या विशेषज्ञ का उल्लेख करें.

कृपया वही विषय चुनें जिसके आप विशेषज्ञ हैं अथवा कार्य अनुभव है.

कृपया इस बात का विशेष ध्यान लगभग पिच्यानबे फीसदी लोग स्मार्टफोन पर ही देखते , सुनते और पढ़ते हैं. इनमें बड़ी संख्या युवा लोगों की है इसलिए सामग्री उसके अनुकूल होनी चाहिए.

भाषा एवं लेखन शैली

भाषा ऐसी हो कि नई पीढ़ी के लोग समझ सकें यानि आसान बोलचाल की हो. संस्कृत, हिंदी, अंग्रेज़ी, फारसी और उर्दू के कठिन शब्द न हों. मजबूरी में उद्धरण देना पड़े तो कृपया सरल अनुवाद कर दें.

भाषा संतुलित ,विधि सम्मत एवं मर्यादित हो, न भड़काने वाली हो न अपमानजनक.

वेबसाइट दुनिया भर में कहीं भी पढ़ी जा सकती है, इसलिए ऐसे लोकल शब्द या मुहावरे इस्तेमाल बिल्कुल न करें जो दूसरी जगह के लोग न समझें या अर्थ का अनर्थ हो जाए.

हर नया आइडिया नया पैरा में लिखे, दो लाइनों के बीच डबल स्पेस रखें.

आजकल स्मार्ट फोन पर हिंदी लिखना बहुत आसान है. लैपटॉप या डेस्क्टॉप पर GoogleIndic के जरिए रोमन में लिखकर हिंदी परिवर्तित कर सकते हैं, बोलकर भी लिख सकते हैं।

जन्म तिथि, पुण्य तिथि अथवा पर्व के कारण निश्चित दिन तारीख वाले लेख कृपया एक सप्ताह पहले भेजें.

यदि कोई लेख कई जगह भेज रहें हैं तो तीन दिन का एम्बार्गो लगा दें, एक जगह छप जाने के बाद दूसरी जगह प्रकाशन में हिचक होती है.

स्वयं संपादन

बेहतर होगा कि हड़बड़ी में न भेजें ,लेख/ फीचर लिखने के बाद एक दो दिन के लिए भूल जायें और फिर उसे इस तरह संपादित करें जैसे किसी और ने लिखा है. प्रूफ रीडिंग ठीक से करें, बोलकर पढ़ेंगे तो त्रुटि आसानी से पकड़ में आ जाएगी.

सबसे पहले एक आकर्षक शीर्षक सोचें और फिर पहला पैरा. शीर्षक और पहला पैर देखकर हाई पाठक आगे बढ़ता है.

अमर उजाला के सारंग उपाध्याय एक आलेख भेजने पर बेहद ही महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए लिखते हैं कि विकीपीडिया सोर्स नहीं हो सकता. आधिकारिक साइट का हवाला देते तो और अच्छा होता. इसके अतिरिक्त एक लेख की पृष्ठभूमि बेहद अलग होती है, विचार और कही जाने वाली बात का मूल्य होता है.

किसी दृष्टिकोण को सापेक्ष रखते तो और बेहतर होता.

हिंदी क्विंट के संतोष कुमार तात्कालिक महत्व के विषय पर ही लिखने पर जोर देते हैं.

इन सब सीखों से सबसे पहला काम जो मैंने किया वो ये कि अब मैं पहले की तरह दस जगह लिखा नही भेजता, दस जगह भेजने से सबसे पहली समस्या यह है कि उससे समाचार पोर्टल की गरिमा को नुकसान पहुंचता है कि वह कहीं और का छपा हुआ छापते हैं फिर दूसरी समस्या यह कि उस समाचार का लिंक गूगल में भी कॉपी माना जाएगा और गूगल रिजल्ट्स में पीछे के पन्नों में चला जाएगा.

जनता के मुद्दे उठाने वाले लोकप्रिय समाचार वेब पोर्टल 'जनज्वार' के सम्पादक अजय प्रकाश भी मुझे लिखने के लिए प्रोत्साहित करते गूगल में सर्च रिजल्ट वाली बात याद रखने के लिए कहते हैं.

अब मैं सम्पादकों के सम्पर्क में रहते आलेख पूरे करता हूं. एक स्वतंत्र पत्रकार को इतनी स्वतंत्रता तो होती ही है कि वह अपने मन मुताबिक विषयों पर लिख सकता है.

लेकिन एक जगह ही आलेख भेजने में एक समस्या यह है कि कई बार मेहनत करके लिखा हुआ छपेगा या नहीं इस पर सम्पादक की तरफ से कोई उत्तर नही मिलता, फिर इंतजार में वह लिखा बासी हो जाता है.

इन सीखों का क्या लाभ?

वरिष्ठ पत्रकारों से मिली सीखों का पालन करते मुझे अपने लिखे पर अपने-अपने क्षेत्रों में पहुंचे हुए लोगों की टिप्पणी मिली. बॉलीवुड के जाने माने अभिनेता मनोज बाजपेयी ने उनकी जीवनी पर मेरी समीक्षा के ट्वीट को रीट्वीट किया. निर्देशक शैफाली भूषण ने अपनी वेब सीरीज 'गिल्टी माइंड्स' पर मेरी लिखी समीक्षा तो लेखक विनोद कापड़ी और अशोक कुमार पाण्डे ने उनकी किताबों पर मेरी लिखी समीक्षाओं को अपने फेसबुक पोस्ट में जगह दी.

उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश के चुनावों पर लिखी एक रिपोर्ट पर पत्रकार साक्षी जोशी ने भी फेसबुक के 'जन विचार संवाद पेज' पर सकारात्मक टिप्पणी दी.

यहां पर मैं पत्रकारों के लिए सम्पर्क बनाने की आवश्यकता पर भी जोर देना चाहूंगा. सोशल मीडिया के विभिन्न मंच से किसी पत्रकार को उसके जैसे विचार रखने वाले लोगों को समझने का मौका मिलता है.

स्वतंत्र पत्रकारों का पारिश्रमिक बड़ा मुद्दा

Press Freedom

स्वतंत्र पत्रकारों के पारिश्रमिक पर भी इन दिनों खूब चर्चा है. मैं स्वतंत्र पत्रकारिता को पारिश्रमिक पाने का जरिया नहीं समझता, यदि आपके अंदर समाज बदलने का कीड़ा है तो उसके लिए पैसे की इच्छा रखना गलत है. अगर आप लिखे का पैसा लेने लगे तो आपको संस्था के अनुसार लिखना होगा.

याद रखें महात्मा गांधी, भगत सिंह भी विभिन्न अखबारों के लिए लिखते थे और उनके लिखने की वज़ह पैसा नहीं बल्कि समाजसुधार था.

यदि आप स्वतंत्र रूप से काम करते पैसा ही कमाना चाहते हैं तो अपने विचारों का विस्तार करते जाइए, व्यक्तित्व विकास करिए. एक साल पहले मैं इंटरनेट रेडियो प्लेटफॉर्म 'रेडियो प्लेबैक इंडिया (आरपीआई)' के साथ फिल्म समीक्षक के तौर पर जुड़ा और बोलने में की गई गलतियों से सीखते आज मैं आरपीआई का महत्वपूर्ण सदस्य हूं. इससे मेहनताने मिलने के द्वार भी खुलने लगे हैं.

एक फिल्म समीक्षक के तौर पर मैं पहली बार किसी वीडियो में भी दिखा. 'कस्तूरी' ग्रुप के फेसबुक पेज में मुझे प्रो चन्द्रकला त्रिपाठी के साथ मंच साझा करने का मौका मिला.

वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा स्वतंत्र पत्रकारिता पर अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं.

स्वतंत्रता एक कठोर विनिमय है , यहां करेंसी नोट स्वीकार नहीं किये जाते

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कल मेरी एक पोस्ट पर बहुत वाजिब सवाल उठाया गया कि स्वतंत्र रह कर एक पत्रकार बेदाग ,बे बाक और बेलौस अवश्य रह सकता है, पर जीविकोपार्जन कैसे हो ? बहुत जेनुइन प्रश्न है.

और इसका जेनुइन उत्तर भी यही है कि पत्रकारिता को मिशन बनाओ , और किसी अन्य कारोबार को प्रोफेशन.

अपनी हैसियत और परिस्थिति के अनुरूप रोजी रोटी के लिए ढाबा खोलो ,फैक्ट्री चलाओ, ट्रांसपोर्ट का धंधा करो ,जूते गांठो, घरों में झाड़ू पोछा करो , खेती करो अथवा ज़मीनों की दलाली करो.

कबीर ने कविता को धंधा नहीं बनाया। रोटी के लिए वह लोई - कम्बल बुनते थे , बकरी पालते थे.

गांधी भी सूत कात कर और बकरी पाल कर अपनी रसोई चलाते थे, भाषण देने के पैसे नहीं लेते थे.

तुलसी दास अपने जीवन काल में ही मोरारी बापू की टक्कर के पॉपुलर कथा वाचक हो गए थे , पर राम कथा बाँचने की कभी किसी से फीस न ली.

तुम भी ऐसा ही करो, कुछ नहीं बन पड़ता तो भोजन गुरुद्वारे में करो.

 लेकिन रहो स्वतंत्र.

हिमांशु जोशी

himanshu joshi jouranalism हिमांशु जोशी, पत्रकारिता शोध छात्र, उत्तराखंड।

himanshu joshi jouranalism हिमांशु जोशी, पत्रकारिता शोध छात्र, उत्तराखंड।

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