A minimally invasive procedure is no less a boon for patients with bone problems!
Balloon kyphoplasty and osteoporosis
खराब बोन मिनरल डेन्सिटी (बीएमडी) हड्डियों के विकार का एक प्रमुख कारण है, जो ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) नाम की समस्या के कारण हड्डियों के टिशू को कमजोर कर देता है। इस स्थिति में रीढ़, कूल्हे और कलाइयों में फ्रैक्चर होने (Fracture in spine, hip and wrists) का खतरा बढ़ जाता है। एक हालिया अध्ध्यन के अनुसार, लगभग 200 मिलियन भारतीयों की हड्डियों में कमजोरी के कारण उनमें ऑस्टियोपोरोसिस के जोखिम की संभावनाएं बढ़ गई हैं। आंकड़ों के अनुसार, कूल्हों के फ्रैक्चर के कारण हर साल प्रति 4 में से एक मरीज की मृत्यु हो जाती है।
vertebroplasty vs kyphoplasty
नई दिल्ली में साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के न्यूरोसर्जरी विभाग के हेड व निदेशक, बिपिन वालिया ने बताया कि, मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया (Minimally invasive procedure) कमजोर हड्डियों, अचानक फ्रैक्चर या हड्डी की समस्याओं वाले मरीजों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। हालिया प्रगति में बैलून काइफोप्लास्टी (balloon kyphoplasty recovery) शामिल है, जो रीढ़ की समस्याओं का इलाज करने में कारगर साबित हुई है।
उन्होंने एक विज्ञप्ति बताया कि
“बैलून काइफोप्लास्टी को पूरी सुरक्षा के साथ पूरा किया जाता है, जो मरीज को असहनीय दर्द से राहत देने में मदद करती है और अंगों के मूवमेंट में भी लचीलापन लाती है। इस प्रक्रिया के दौरान लगभग 90% मरीजों को 24 घंटों के अंतराल में दर्द से राहत मिल गया।
इस प्रक्रिया में, एक छोटे गुब्बारे को उपकरण की मदद से वर्टिब्रा में ले जाया जाता है। इसमें लगाए गए चीरे की लंबाई 1 सेंटिमीटर होती है। इस गुब्बारे को बहुत ही ध्यान से फुलाया जाता है, जिससे वर्टिब्रा की पोजीशन सही हो जाए। जब वर्टिब्रा सही पोजीशन ले लेता है तो गुब्बारे को आराम से पिचकाकर बाहर निकाल दिया जाता है।”
डॉ. वालिया ने बताया कि अध्ययनों के अनुसार, जिन मरीजों ने इस प्रक्रिया के जरिए इलाज करवाया, उनका जीवन बेहतर हो गया और उनके शरीर में एक लचीलापन भी देखने को मिला। यह एक मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया है, जो फ्रैक्चर को ठीक करके, दर्द से राहत देती है और हड्डी के आकार को भी सही करती है।
डॉक्टर बिपिन ने आगे बताया कि,
“बैलून काइफोप्लास्टी को लोकल या जेनरल एनेस्थीसिया दोनों की मदद से किया जा सकता है। सर्जन मरीज की हालत देखकर उचित विकल्प का चुनाव करता है। इस प्रक्रिया में लगभग 1 घंटा लगता है और यदि एक साथ कई फ्रेक्चरों पर काम करना है तो एक रात का समय लग सकता है। यह भी साबित हो चुका है कि अन्य सर्जिकल प्रक्रियाओं की तुलना में बैलून काइफोप्लास्टी में कम जटिलताएं होती हैं।”
(नोट – यह समाचार किसी भी मामले में चिकित्सा परामर्श नहीं है। यह एक प्रेस विज्ञप्ति है। आप इस समाचार के आधार पर कोई निर्णय नहीं ले सकते। स्वयं डॉक्टर न बनें, योग्य चिकित्सक से सलाह लें।)
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