मज़दूर दिवस पर सभी मज़दूरों को समर्पित एक रचना।
A poem dedicated to all workers on Labor Day
बंद करो बकवास,
श्रम से चूता पसीना,
मोती नहीं है।
बहुत दिल बहलाये,
क्या पाए ?
पेट की भूख और सूद की संज्ञा,
हमें ख़ूबसूरत नाम नहीं,
खुरदुरी हक़ीक़त चहिये,
सदियों से घटतौले,
पसीने की क़ीमत चाहिए
ख्वाबों से भूख शांत होती नहीं है
बंद करो बकवास,
श्रम....,,,,,
नग्नता का स्वाद हम बहुत चख चुके हैं,
तपेंद्र प्रसाद, लेखक अवकाश प्राप्त आईएएस अधिकारी व पूर्व कैबिनेट मंत्री हैं। वह सम्यक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं।
दरसन संतोष का हम बहुत गुन चुके हैं।
इस सूखी, जर्जर कंकाल मात्र काया को,
अब और रोमांटिक न बनाओ ।
इस पर झूठे तारीफ़ का मुलम्मा न चढ़ाओ,
इससे दधीचि की नहीं, मेरी अपनी बताओ ।
गाओ गाओ गाओ
कुछ मेरे अंदर का भी दर्द गाओ।
हम भी हैं मानव,
हमें मानव बनाओ।
बातों से भूख शांत होती नहीं है।
बंद करो बकवास..,,,
तपेन्द्र प्रसाद