अच्छे दिन : नफरत फैलाना, हिंसा भड़काना अब नहीं है अपराध!

Guest writer
01 Jan 2022
अच्छे दिन : नफरत फैलाना, हिंसा भड़काना अब नहीं है अपराध! अच्छे दिन : नफरत फैलाना, हिंसा भड़काना अब नहीं है अपराध!

Ram Puniyani was a professor in biomedical engineering at the Indian Institute of Technology Bombay and took voluntary retirement in December 2004 to work full time for communal harmony in India. He is involved in human rights activities for the last three decades. He is associated with various secular and democratic initiatives like All India Secular Forum, Center for Study of Society and Secularism and ANHAD

Achhe Din: Spreading hatred, inciting violence is no longer a crime!

सूरजपाल अमु ने अत्यंत घटिया और नफरत फैलाने वाला भाषण दिया. उसके बाद उन्हें भाजपा की राज्य इकाई का प्रवक्ता बना दिया गया. गौरक्षा-बीफ के मुद्दे पर अखलाक की हत्या के आरोपियों में से एक की मौत हुई. एक तत्कालीन केंद्रीय मंत्री (महेश शर्मा) ने उसे श्रद्धांजलि दी और उसके शव को तिरंगे में लपेटा. लिंचिंग के 8 आरोपियों को जमानत पर रिहा किया गया. एक अन्य केंद्रीय मंत्री (जयंत सिन्हा) ने जेल से छूटने पर फूलमालाओं से उनका स्वागत किया.

इन घटनाओं की पृष्ठभूमि में, जो लोग इन दिनों नफरत फैला रहे हैं और हिंसा भड़का रहे हैं उनके खिलाफ कोई कार्यवाही न होने से हमें चकित नहीं होना चाहिए. अभी ज्यादा समय नहीं गुज़रा जब आन्दोलनकारियों को 'गोली मारने' का आव्हान करने वाले राज्य मंत्री को कैबिनेट में पद्दोन्नत किया गया था. हम सबको याद है कि हमारे प्रधानमंत्री, जो अपने मन की बात से हमें जब चाहे अवगत कराते रहते हैं, जुनैद और रोहित वेम्युला की मौत के बाद या तो चुप्पी साधे रहे या बहुत दिन बाद कुछ बोले.

आज जनवरी 2022 की 1 तारीख है. और आज तक हमारे प्रधानमंत्री ने पांच दिन पहले घटित दो विचलित और चिंतित करने वाले घटनाओं के सम्बन्ध में अपने विचारों से हमें अवगत नहीं करवाया है. इनमें से एक घटना 19 दिसम्बर को हुई थी. इस दिन सुदर्शन टीवी के मुख्य संपादक सुरेश चाव्हानके ने युवा लड़कों और लड़कियों को शपथ दिलवाई. कार्यक्रम का आयोजन हिन्दू वाहिनी द्वारा किया गया था. इस संगठन के संस्थापक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरखनाथ पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ हैं. शपथ इस प्रकार थी: "हम सब शपथ लेते हैं, अपना वचन देते हैं, संकल्प करते हैं कि हम भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाएंगे, अपनी अंतिम सांस तक इसे एक हिंदू राष्ट्र रखेंगे. हम लड़ेंगे और मरेंगे. अगर जरूरत पड़ी तो हम मार भी डालेंगे."

हरिद्वार में एक अन्य आयोजन में सैकड़ों भगवाधारी साधु और साध्वियां "इस्लामिक आतंकवाद और हमारी जिम्मेदारियां" विषय पर मंथन के लिए एकत्रित हुए. यह एक 'धर्म संसद' थी, जिसका आयोजन गाज़ियाबाद मंदिर के मुख्य पुजारी यति नरसिम्हानंद ने किया था. उन्होंने आयोजन की दिशा निर्धारित करते हुए अपने भाषण में कहा, "(मुसलमानों के) आर्थिक बहिष्कार से काम नहीं चलेगा...हथियार उठाए बिना कोई समुदाय अपने अस्तित्व की रक्षा नहीं कर सकता...तलवारें किसी काम की नहीं है, वे केवल मंच पर अच्छी लगती हैं. आपको अपने हथियारों को बेहतर बनाना होगा...अधिक से अधिक बच्चे और बेहतर हथियार ही आपकी रक्षा कर सकते हैं." मुसलमानों के खिलाफ हथियारबंद हिंसा का आव्हान करते हुए उन्होंने 'शस्त्रमेव जयते' का नारा दिया. एक अन्य वीडियो में, नरसिम्हानंद हिन्दू युवकों को (लिट्टे नेता) 'प्रभाकरण' और 'भिंडरावाले' बनने का आव्हान करते हुए दिखलाई देते हैं. वे 'प्रभाकरण' जैसा बनने वाले हिन्दुओं के लिए एक करोड़ रुपये के पुरस्कार की घोषणा भी करते हैं.

हिन्दू महासभा की महासचिव अन्नपूर्णा माँ (जो पूर्व में पूनम शकुन पांडे कहलाती थीं) ने कहा कि हमें 100 सिपाहियों की ज़रुरत हैं जो उनके (मुसलमानों) 20 लाख लोगों को मार सकें. उन्होंने आगे कहा, "मातृ शक्ति के शेर के पंजे हैं. फाड़ कर रख देंगे". ये वही महिला हैं जिन्होंने कुछ वर्ष पहले मेरठ में गांधीजी की हत्या के दृश्य का पुनःसृजन किया था और उसके बाद मिठाई बांटी थी.

बिहार से पधारे धरम दास महाराज ने फरमाया, "जब संसद में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि मुसलमानों का देश के संसाधनों पर पहले हक है उस समय यदि मैं संसद में मौजूद होता तो नाथूराम गोडसे की तरह, मनमोहन सिंह के शरीर में रिवाल्वर से छह गोलियां उतार देता."

ये धर्म संसद की कार्यवाही की कुछ अंश हैं. इन आयोजनों की शुरुआत विश्व हिन्दू परिषद् ने बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद की थी. आश्चर्यजनक यह है कि इन वीडियो के सोशल मीडिया पर आसानी से उपलब्ध होने के बाद भी पुलिस ने इस मामले में अब तक कोई कार्यवाही नहीं की है.

जो इस तरह की बातें कह रहे हैं वे कानून की दृष्टि से निश्चय ही अपराधी हैं. परन्तु उन्हें पता है कि उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं होगी. उन्हें पता है कि मन ही मन सत्ताधारी उनके इस तरह की भाषणों की सराहना करते हैं. यह भी हो सकता है कि इस तरह की बातें, इस तरह की भड़काऊ बातें, चुनाव की तैयारी का हिस्सा हों. मज़े की बात यह है कि यह सब तब हो रहा है जब मुन्नवर फारुकी को ऐसे चुटकुले के लिए गिरफ्तार किया गया था जो उसने सुनाया ही नहीं था. और तबसे उसके अनेक शो रद्द किये जा चुके हैं.  

इस तरह की बातों का अल्पसंख्यकों पर क्या असर पड़ेगा? वे इस देश के समान नागरिक हैं. क्या उनके मन में डर का भाव उत्पन्न नहीं होगा? क्या उनके आर्थिक बहिष्कार और उनकी जान लेने की धमकियों से उनमें अपने मोहल्लों में सिमटने की प्रवृत्ति और नहीं बढ़ेगी?

परेशान और चिंतित जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिन्द के महमूद मदनी ने केंद्रीय गृह मंत्री को इस मामले में एक पत्र लिखा है. क्या अल्पसंख्यक आयोग इन अत्यंत आपत्तिजनक भाषणों का संज्ञान लेकर कार्यवाही करेगा? क्या पुलिस जितेन्द्र त्यागी (पूर्व में वसीम रिज़वी) के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से आगे कोई कार्यवाही नहीं करेगी? क्या सुप्रीम कोर्ट इस मसले का स्वतः संज्ञान नहीं लेगा?

खुलेआम और इस स्तर की हिंसा के लिए भड़काने और नफरत फैलाने के इस तमाशे से पूरी दुनिया स्तंभित है. देश किस ओर जा रहा है इसका अनुमान विश्व मीडिया को कुछ हद तक पहले से ही था. डेली गार्जियन में 2020 में प्रकाशित एक लेख में कहा गया था, "चूँकि जनता के समग्र हितों के लिए काम करना कठिन है इसलिए सत्ताधारी दल की कमियों, जिनका धर्म से कोई सम्बन्ध हो या न हो, की ओर ध्यान दिलाने के लिए अनवरत नफरत फैलाने वाली बातों का सिलसिला सन 1990 के दशक के प्रारंभ से ही शुरू हो गया था और यह दूसरी सहस्त्राब्दी के शुरूआती वर्षों में भी जारी रहा. नफरत फैलाने वाली बातें भारतीय प्रजातंत्र का हिस्सा बनतीं गईं."  

अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत का भाव चरम पर पहुँच गया है. अविभाजित भारत में हिन्दुओं और मुसलमानों को एक दूसरे का शत्रु बनाने की जो सांप्रदायिक राजनीति शुरू हुई थी, वह अब केवल मुसलमानों पर केन्द्रित हो गई है. हर मौके का इस्तेमाल मुसलमानों के दानवीकरण के लिए किया जा रहा है. पिछले सात सालों में बीजेपी सरकार के शासनकाल में यह प्रवृत्ति और बढ़ी है. अमरीकी मीडिया द्वारा इस्लामिक आतंकवाद जैसे शब्दों को गढ़ कर, इस समुदाय के ज़ख्मों पर नमक छिड़का जा रहा है.

आज ज़रुरत इस बात की है कि नागरिक समाज इस स्थिति के बारे में कुछ करे. देर-सवेर, 'दूसरों' के खिलाफ हिंसा और नफरत, उसी समुदाय के लिए भस्मासुर बन जाती है जो उसे हवा देता है. सभी गैर-भाजपा पार्टियों को एक मंच पर आकर नफरत के सौदागरों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करनी चाहिए.

परस्पर प्रेम को बढ़ावा देने और नफरत से किनारा करने के लिए एक सामाजिक आन्दोलन की ज़रुरत है. हमें भक्ति और सूफी संतों और महात्मा गाँधी व मौलाना आजाद की दिखाई राह पर चलना होगा. तभी देश और समाज में शांति और सद्भाव का वातावरण बन सकेगा.

  • डॉ राम पुनियानी

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

(लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन्  2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

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