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air pollution,
प्रदूषण के बारे में आम धारणा
भारतीय समाज में एक आम धारणा व्याप्त है कि वायु, जल, ध्वनि आदि के प्रदूषण से और मोबाइल टावरों से निकलने वाली इलेक्ट्रो मैग्नेटिक किरणों (Electro magnetic rays emanating from mobile towers) से जिसे हम आम बोलचाल की भाषा में रेडिएशन कह देते हैं, से केवल तमाम तरह के परिंदों और वन्यजीवों पर ही दुष्प्रभाव पड़ता है, हम मनुष्य इससे बिल्कुल निरापद हैं। लेकिन यह सोच बिल्कुल भ्रामक और सच से बहुत दूर है।
वायु प्रदूषण से हर वर्ष असमय मर जाते हैं 70 लाख लोग
सच्चाई यह है कि दुनिया के सभी लोगों का हितचिंतक विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भी इस दुनिया में वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष लगभग 70 लाख लोगों की असमय ही मौत हो जाती है, जिसमें 6 लाख बच्चे भी शामिल हैं।
हर पांचवें हृदयरोगी की मौत प्रदूषित वायु के कारण
कितने दुख की बात है कि हृदय संबन्धित बीमारियों से पीड़ित रोगियों की कुल मौतों में हर पांचवें व्यक्ति की मौत प्रदूषित वायु के कारण होती है।
रिपोर्ट में स्पष्ट है कि दिल की बीमारियों से पीड़ित मरीजों की जिंदगी दवाइयों और इस क्षेत्र में हो रहे शोध के अनुसार इस बात पर भी निर्भर करती है कि उनमें सांस के द्वारा उनके फेफड़ों में कैसी हवा अंदर जा रही है ?
स्पेन के मैड्रिड में यूरोपियन सोसाइटी ऑफ कार्डियोलॉजी की साइंस कांग्रेस या Science Congress of the European Society of Cardiology में पेश एक शोध के अनुसार पीएम 2.5 कणों का प्रदूषण पूरे सप्ताह औसत से एक ग्राम /घनमीटर अधिक रहने पर भी वेंट्रिकुलर एरिथीमिया या Ventricular arrhythmia मतलब असामान्य दिल की धड़कन की समस्या 2.4 प्रतिशत, वहीं पूरे सप्ताह पीएम 10 कणों का प्रदूषण एक ग्राम /घन मीटर अधिक होने पर वेंट्रिकुलर एरिथीमिय का खतरा 2.1 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
हकीकत यह है कि पर्यावरण प्रदूषण सिर्फ जलवायु परिवर्तन के लिए ही खतरा का विषय नहीं है, बल्कि आम लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी यह बेहद खतरनाक है।
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट या Energy Policy Institute at the University of Chicago ने अपनी रिपोर्ट में भारत खतरनाक ढंग से बढ़ रहे प्रदूषण के संबंध में स्पष्ट तौर पर कहा है कि अगर इसे 25 फीसदी नीचे लाने में कामयाबी मिल गई तो भारतीय लोगों के जीवन प्रत्याशा या Life Expectancyमें राष्ट्रीय स्तर पर 1.4 साल और दिल्ली में 2.6 साल तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है। भारत में अत्यधिक वायु प्रदूषण यहां के देशवासियों को स्वस्थ और लंबा जीवन देने की तमाम कोशिशों पर एक तरह से पानी फेर देने का काम करती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट ने हाल ही में जो एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स रिपोर्ट (air quality life index report) जारी की है, वह बताती है कि सिर्फ खराब हवा भारत जैसे देशों के लोगों की आयु औसतन 5 साल तक कम कर देती है।
सबसे बुरा हाल भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और एनसीआर का है। यहां तो वायु प्रदूषण लोगों की जिंदगी के 10 साल तक छीन ले रहा है।
दुनिया में प्रदूषण के मामले में भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली अव्वल
अत्यधिक वायु प्रदूषण से भारत में हो रही बीमारियों और उससे मरने वाली घटना कोई नई या चौंकाने वाली बात नहीं है। वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों की चर्चा इस देश और अंतरराष्ट्रीय मंचों से भी लंबे समय से सुनाई देती आ रही है। प्रदूषण संबंधी हर राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट इस तथ्य को रेखांकित करती है कि दिल्ली की हवा में प्रदूषण का स्तर (Delhi's air pollution level) हद दर्जे तक बढ़ा हुआ है और यह भी कि भारत के तमाम छोटे-बड़े शहरों में हवा अत्यधिक विषैली होती जा रही है।
इस रिपोर्ट में भी भारत को दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित देश बताया गया है तो भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का तो दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिनती होती रही है।
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार सिगरेट और बीड़ी पीने से मानव स्वास्थ्य को उतना नुकसान नहीं होता है, जितनी हवा की खराब क्वॉलिटी की वजह से हो रहा है।
भारत के 51 करोड़ लोग प्रदूषण से प्रभावित
भारत में विशेषकर उत्तर भारत में वायु प्रदूषण की हालत (Condition of air pollution in North India) इतनी गंभीर है कि इस देश की कुल जनसंख्या की 40 प्रतिशत आबादी मतलब लगभग 51 करोड़ लोग अपने जीवन के 7.6 साल इसकी भेंट चढ़ाने को मजबूर हैं। भारत सरकार के नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम या National Clean Air Program एनसीएपी का उद्देश्य है कि वर्ष 2024 तक हवा में पर्टिक्युलेट मैटर के स्तर को 2017 के स्तर के मुकाबले 20 से 30 फीसदी नीचे लाना है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इसे 25 फीसदी तक नीचे लाने में भी कामयाबी मिल गई तो जीवन प्रत्याशा में राष्ट्रीय स्तर पर 1.4 साल और दिल्ली में 2.6 साल तक इजाफा हो जाएगा। लेकिन यह तो भविष्य में 2024 के लिए की गई वादे की बात है। हकीकत इससे ठीक विपरीत है।
वायु प्रदूषण संबंधित जनवरी 2022 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के लागू होने के तीन वर्ष बाद भी दिल्ली की हवा में प्रदूषण का स्तर कम करने में कोई खास सफलता नहीं मिली है। पिछले दो दशकों में आर्थिक विकास, औद्योगीकरण और ईंधन की खपत में बेहिसाब बढ़ोत्तरी होने से हवा में प्रदूषण का स्तर और बढ़ गया है। मतलब केवल वायदे करने से बात नहीं बनने वाली है, इसके लिए ईमानदारी, प्रतिबद्धता और वास्तविक जमीनी धरातल पर काम करना ही होगा। कोई ऐसा रास्ता निकालना ही होगा, जिससे न्यूनतम आर्थिक नुकसान उठाकर हवा के प्रदूषण को भी कम किया जा सके।
प्रदूषण के क्या दुष्प्रभाव हैं ?
अत्यधिक वायु प्रदूषण से सांस की कई बीमारियों के साथ आंखों में जलन, हाईपरटेंशन, डिप्रेशन, डायबीटीज और हार्ट अटैक जैसी कई गंभीर बीमारियां भी हो सकतीं हैं।
हाल ही में हुए एक शोध के अनुसार, यातायात संबंधी प्रदूषण की वजह से बच्चों के दिमाग पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है और यह उनमें कई तरह के मानसिक विकारों को जन्म देता है।
एक अन्य शोध के अनुसार अत्यधिक प्रदूषण से औरतों में गर्भपात तक का भी खतरा हो जाता है।
पर्यावरण प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य के लिए कितना ख़तरनाक होता जा रहा है, इसका अनुमान हम इस प्रकार लगा सकते हैं कि वैज्ञानिकों के अनुसार आज सांस लेने वाली हवा से लेकर पानी, फल, सब्जियां, दूध, मिठाईयां, दवा आदि से लेकर बाजार में बिकने वाली रोजमर्रा की समस्त चीजें ही प्रदूषित हो गई हैं। और कई तरह की बीमारियों का कारण बन गई हैं।
प्रदूषण के कारक तत्व (factors of pollution)
वायु के प्रदूषित होने के कई कारण हैं, जिनमें मुख्य हैं फैक्टरी और कारखानों से निकलने वाला धुआं, एसपीएम यानी सस्पेंडेड पार्टिक्युलेट मैटर, सीसा और नाइट्रोजन ऑक्साइड, प्रदूषण फैलाने में कूड़ा-कचरा भी अहम भूमिका निभा रहा है।
भारत के गांवों, कस्बों और शहरों में अक्सर जगह-जगह कूड़ा जलाए जाने और फेंकने से कई हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं और स्वच्छ हवा के साथ मिलकर उसे जहरीला बना देती हैं। इसके अतिरिक्त फैक्टरियों और कारखानों से निकलने वाला अति विषाक्त, रासायनिक कचरा भारत की कथित मां कही जाने वाली नदियों में यूं ही बहा दिया जाता है। गंदे नालों से निकलने वाला पानी नदियों में मिलकर उसे प्रदूषित बना देता है। यही प्रदूषित पानी लोगों में डायरिया, टाइफॉइड, पेचिश और हैजा जैसी अनेक जानलेवा बीमारियां फैलाने में अपनी अहम भूमिका निभाता है।
खुद को प्रदूषण से कैसे बचाएं ?
पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार को तो कुछ नीतियां बनानी ही चाहिए, लेकिन इसके अलावा अपने स्तर पर भी हमें कुछ कदम उठाने चाहिएं। जैसे ऐसे सामानों का हमें इस्तेमाल करना चाहिए जो रीयूजेबल हों यानी जिन्हें दोबारा हम इस्तेमाल कर सकें।
जब भी कमरे या घर से बाहर निकलें तो सभी लाइटें और पंखे बंद कर दें। अगर आसपास ही किसी दुकान या पड़ोस में जाना हो, तो कार या पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बजाय साइकिल का इस्तेमाल करें या फिर धीरे-धीरे ही सही पैदल चलकर जाएं।
जब प्रदूषण एक सीमा से भी अधिक हो तो जितना संभव हो हृदय के रोगियों को अपने घर के अंदर ही रहना चाहिए, अगर बाहर जाना बहुत जरूरी हो तो बढ़िया क्वालिटी के मास्क पहनकर ही बाहर निकलना चाहिए।
गाड़ी, घर या अन्य चीजों की साफ-सफाई के लिए खतरनाक केमिकल आधारित उत्पादों की जगह इको-फ्रेंडली उत्पाद इस्तेमाल करें।
निर्मल कुमार शर्मा
Air and water pollution is taking the age of Indians!