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air pollution,
Air pollution also has side effects on pollination pests.
According to the World Health Organization (WHO), nine of the world's ten most polluted cities are in India.
नई दिल्ली, 04 अक्तूबर: यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि हवा पूरे पारिस्थितिक तंत्र को हर समय घेरे रहती है। फिर भी, मनुष्य को छोड़कर पेड़-पौधों और पशुओं से जुड़ी प्रणालियों पर वायु प्रदूषण के प्रभाव (Effects of air pollution) के बारे में जानकारी बहुत कम ही है। भारतीय शोधकर्ताओं के एक नवीनतम अध्ययन में वायु प्रदूषण के कारण पौधों और जीव-जंतुओं पर पड़ने वाले भौतिक एवं आणविक प्रभावों (Physical and molecular effects on plants and animals due to air pollution) की ओर ध्यान दिया गया है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि मधुमक्खी जैसे परागण करने वाले कीट, जिन पर हम अपने अस्तित्व के लिए सबसे अधिक भरोसा करते हैं, पर वायु प्रदूषण के कारण विनाशकारी प्रभाव पड़ रहा है। बता दें विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार दुनिया के दस सबसे प्रदूषित शहरों में से नौ शहर भारत में ही हैं।
बेंगलूरू स्थित नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (एनसीबीएस) में नेचरलिस्ट इन्स्पायर्ड केमिकल इकोलॉजी (एनआईसीई) प्रयोगशाला के वैज्ञानिक लंबे समय से कीटों पर अध्ययन कर रहे हैं, जिसमें परागण करने वाले कीट मुख्य रूप से शामिल हैं। बेंगलूरू के अलग-अलग क्षेत्रों में जाइंट एशियन मधुमक्खी (Apis dorsata) पर विभिन्न वायु प्रदूषण स्तरों के प्रभाव का आकलन किया गया है। स्थानीय स्तर पर किए गए शुरुआती अवलोकन में पाया गया कि शहर में परागणकारी कीटों की आबादी कम हो रही है। लेकिन, यह स्पष्ट नहीं था कि इसका कारण क्या है। पानी की कमी या फिर छाया का नहीं होना?
इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए शहरीकरण के कारण पौधों और पशुओं पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने के लिए शोधकर्ताओं ने बेंगलूरू शहर को चुना।
शोधकर्ताओं ने बताया कि अध्ययन में शामिल जाइंट एशियन मधुमक्खी (Honey Bee) को भारतीय शहरी परिवेश में आमतौर पर पाया जाता है। यह मधुमक्खी देश की खाद्य सुरक्षा से संबंधित पारिस्थितिक तंत्र के लिए भी महत्वपूर्ण है। देश में उत्पादित 80 प्रतिशत से अधिक शहद मधुमक्खी की इसी प्रजाति से मिलता है। सिर्फ कर्नाटक राज्य में ही यह मधुमक्खी 687 किस्म के पौधों में परागण करने के लिए जानी जाती है।
एनसीबीएस की शोधकर्ता डॉ. गीता जी.टी. ने बताया कि
“अध्ययन में खुले पर्यावरण में पायी जाने वाली मधुमक्खियों और प्रयोगशाला में पाली गई फल मक्खी (Drosophila) पर वायु प्रदूषण के प्रभाव का आकलन किया गया है। प्रदूषण के कारण इन कीटों के जीवनकाल, व्यवहार, हृदय गति, रक्त कोशिकाओं की संख्या और तनाव, प्रतिरक्षा व चयापचय से संबंधित जीन्स की अभिव्यक्ति में अंतर पाया गया है। हमने हवा में मौजूद सूक्ष्म प्रदूषण कणों में वृद्धि और मधुमक्खियों के जीवनकाल में संबंध का पता लगाया है। प्रयोगशाला में पाली गई ड्रोसोफिला को प्रदूषण के संपर्क में रखने पर उनमें इसी तरह के भौतिक एवं आणविक बदलाव देखे गए हैं।”
खुले वातावरण में पायी जाने वाली 1800 मधुमक्खियों पर किए गए अध्ययन के बाद शोधकर्ता अपने निष्कर्ष पर पहुँचे हैं।
अध्ययन में शामिल मधुमक्खियों को भारत में सजावटी पौधे के रूप में प्रचलित टेकोमा स्टान्स (Techoma stans) के फूलों पर भोजन खोजने के दौरान एकत्रित किया गया है। शोधकर्ताओं ने इन कीटों के शरीर के हिस्सों पर सूक्ष्म प्रदूषण कणों के जमाव का भी आकलन किया है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरह के अध्ययन व्यापक स्तर पर किए जाएं तो वायु प्रदूषण के कारण पशुओं, पेड़-पौधों एवं कीट-पतंगों पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने में मदद मिल सकती है। इन अध्ययनों के आधार पर वायु प्रदूषण से पारिस्थितिक तंत्र को सुरक्षित रखने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश विकसित किए जा सकते हैं।
काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरमेंट ऐंड वाटर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरुणाभ घोष ने इस समस्या के बारे में कहा है कि
“भारत में इस तरह के अधिकतर अध्ययन प्रदूषण स्रोतों या फिर मनुष्य पर पड़ने वाले प्रभावों और कुछ हद तक आर्थिक उत्पादकता पर आधारित होते हैं। इस नये अध्ययन में परागण करने वाले कीटों की ओर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो भारतीय कृषि में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इससे पता चलता है कि नीतिगत तौर पर हमें कृषि क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता की निगरानी करने की जरूरत है। इसके साथ ही, विभिन्न कृषि क्षेत्रों के अनुसार अध्ययन किए जाने की जरूरत है, जिससे यह पता चल सकता है कि किस प्रकार हवा की गुणवत्ता पौधों और परागण करने वाले कीटों को प्रभावित कर सकती है।”
यह अध्ययन शोध पत्रिका प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडेमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित किया गया है। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के साइंस ऐंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (एसईआरबी) की पोस्ट डॉक्टोरल फेलो डॉ. गीता जी.टी. ने यह अध्ययन एनसीबीएस की वैज्ञानिक डॉ शैनन ओल्सन के निर्देशन में पूरा किया है।
(इंडिया साइंस वायर)