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ब्राह्मणों/सवर्णों के रेडिकलाइजेशन का जो काम भाजपा हिंदुत्व के बैनर तले अरसे से कर रही है उसे अखिलेश यादव ने भी स्वीकार कर लिया है. आज वह इसी राजनीति को और मजबूत कर रहे हैं.
यह मूलतः लोकतंत्र को कमजोर करने की राजनीति है
दरअसल, ब्राह्मणों के बीच महर्षि परशुराम जी को स्थापित करना उनका फरसा प्रदर्शन करना सब उसी राजनीति का हिस्सा है. यह राजनीति मूलतः लोकतंत्र को कमजोर करने और उसे नकारने की राजनीति है. यह राजनीति मूलतः दलितों और पिछड़ों और कमजोर बनाएगी और उनके मानव होने के बुनियादी संवैधानिक अधिकारों का गम्भीर हनन करेगी.
परशुराम जी फरसा भाँजकर लोकतंत्र बचाने की लड़ाई नहीं लड़ रहे थे
दर असल, जब परशुराम जी अपने दौर में फरसा भाँज रहे थे तो वह लोकतंत्र बचाने की लड़ाई नहीं लड़ रहे थे. उनके पिता की हत्या से उनमें जो क्षोभ युक्त गुस्सा उपजा था उसने उन्हें एक खास कौम का दुश्मन बना दिया था. उनका फरसा धारण करना और क्षत्रियों का कथित संहार करना मूलतः उस क्षोभ और गुस्से का एक प्रतिफल था. यह स्वस्थ मन मस्तिष्क से समाज को मजबूत करने की दिशा में किया गया कोई काम नहीं था.
...और यह गलत था.
हिंदुत्व के सहारे अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश कर रहे हैं अखिलेश यादव
आज अखिलेश यादव लोकतंत्र बचाने के नाम पर अपनी सभाओं में जो फरसा दिखा रहे हैं वह हिंदुत्व के आतंक से नहीं लड़ रहे बल्कि हिंदुत्व के सहारे अपने अस्तित्व को उत्तर प्रदेश में बचाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि उनकी यह कोशिश भी सफल नहीं होगी. यह सब करने से केवल भाजपा मजबूत होगी. राजनीति विज्ञान के छात्रों के लिए अखिलेश यादव का फरसा प्रदर्शन सामाजिक न्याय की राजनीति का जातिगत अस्मिता की राजनीति मे बदलने और उसके हिंदुत्व समर्थक होने का एक क्लासिकल उदाहरण है.
क्या फरसा भांजकर भारत में लोकतंत्र बचाया जा सकता है?
वैसे भी, भारत में लोकतंत्र फरसा भांजने से नहीं बच सकता है. भारत में लोकतंत्र तभी बचेगा जब तंत्र मे अधिकतम उत्तरदायित्व आये और जनता के बीच लोकतांत्रिक भावनाओं को मजबूत किया जाए. जाहिर सी बात है कि परशुराम की अस्मिता का उपयोग करके फरसा प्रदर्शन करके सपा सुप्रीमो द्वारा यह तो नहीं किया जा रहा है.
धार्मिक पूजा और फरसा प्रदर्शन में क्या अंतर है?
एक बात और, धार्मिक पूजा और फरसा प्रदर्शन में बहुत अंतर होता है.
...और जिन लोगों को उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के फरसा प्रदर्शन में योगी को हराने और लोकतंत्र बचाने की राजनीति दिखाई पड़ रही है मैं उनसे सहमत नहीं हूं. उन्हें अपनी राजनीतिक लाइन पर पुनर्विचार करना चाहिए.
अन्यथा सियासी तौर पर शर्तिया अप्रासंगिक बनने के लिए खुद को तैयार रखना चाहिए.
सपा 2022 मे वापसी नहीं कर पायेगी. यह मेरा स्पष्ट आकलन है.
पं. हरे राम मिश्र
लेखक उत्तर प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं।