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योगी सरकार को फिर तगड़ा झटका, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी पुलिस को सीएए विरोधी आंदोलनकारियों के सभी पोस्टरों को हटाने का आदेश, 16 मार्च को अनुपालन रिपोर्ट पेश करने का आदेश

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hastakshep
09 Mar 2020
पुलिस स्टेट बनाने के खिलाफ जाग उठा भाजपा विधायकों का जमीर, उप्र विधानसभा में हंगामा, कार्यवाही बुधवार तक स्थगित

Allahabad HC Orders Removal Of All Posters Of UP Police Naming Anti-CAA Protesters Accused Of Violence

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नई दिल्ली, 09 मार्च 2020. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार को एक बार फिर तगड़ा झटका देते हुए, इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने सोमवार को लखनऊ में यूपी पुलिस द्वारा लगाए गए उन सभी पोस्टरों और बैनरों को हटाने का आदेश दिया, जिनमें नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में हिंसा के कथित आरोपी व्यक्तियों के नाम और फोटो प्रकाशित किए गए थे।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक न्यायालय ने जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस आयुक्त को आगामी 16 मार्च तक उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया।

बता दें विगत वर्ष 19 दिसंबर, 2019 को सीएए के विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा में शामिल होने के लिए लगभग 60 लोगों को वसूली नोटिस जारी किए गए हैं, जिनके विवरण के साथ लखनऊ प्रशासन ने शहर में प्रमुख क्रॉस-सेक्शन पर होर्डिंग्स लगाए थे।

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सूत्रों के मुताबिक राजधानी लखनऊ के हजरतगंज क्षेत्र में मुख्य चौराहे और विधानसभा भवन के सामने सहित महत्वपूर्ण चौराहों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर आंदोलनकारियों के पोस्टर लगाए गए हैं।

प्रसिद्ध मानवाधिकार वकील मोहम्मद शोएब, कार्यकर्ता और पूर्व आईपीएस अधिकारी एस आर दारापुरी, व सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता सदफ जाफ़र, आदि के चित्र भी एक बैनर में लगाए गए थे।

मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए, उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच ने कल (रविवार) सुबह 10 बजे एक विशेष अदालत आयोजित करने का फैसला किया।

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अदालत ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि दोपहर तीन बजे से पहले ये होर्डिंग्स को हटा देना चाहिए और इस बारे में अदालत को 3 बजे अवगत कराना चाहिए।’

लेकिन सरकार अपनी कारस्तानी से बाज नहीं आई। अपराह्न 3 बजे, एजी ने एचसी के अधिकार क्षेत्र को यह कहते हुए विवादित बताया कि होर्डिंग्स लखनऊ में लगाए गए थे और इसलिए एचसी की प्रमुख सीट के मामले में कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था। उन्होंने यह भी कहा था कि कानून तोड़ने वालों की सुरक्षा के लिए जनहित याचिकाएं पंजीकृत नहीं होनी चाहिए।

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) की राज्य इकाई ने सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ गत 19 दिसंबर के राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद में भाग लेने के कारण सदफ जफर, एसआर दारापुरी, मो0 शोएब, दीपक कबीर जैसे लखनऊ के प्रतिष्ठित सामाजिक-सांस्कृतिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की अपराधियों की तरह राजधानी के चौराहे पर फोटो लगवा कर वसूली की नोटिसें चिपकाने की उत्तर प्रदेश सरकार की कार्रवाई की कड़ी निंदा की थी।

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लखनऊ के सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलनकारियों की तस्वीरों (Pictures of anti-CAA-NRC agitators of Lucknow) को सरकार द्वारा चौराहों पर लगाए जाने को ग़ैर क़ानूनी बताते हुए कांग्रेस ने इसे अपने विरोधियों के चरित्र हनन की आपराधिक और षड्यंत्रकारी राजनीति बताया था।

कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश चेयरमैन शाहनवाज़ आलम ने जारी बयान में कहा था कि जिन कथित आरोपियों की जमानत पर सुनवाई के समय अदालत ने योगी सरकार और पुलिस को ही कटघरे में खड़ा किया, जिनके ख़िलाफ़ सरकार कोई कमज़ोर सुबूत भी नहीं दे पाई उन लोगों के नाम का पोस्टर किसी अपराधी की तरह शहर में चस्पा करा कर सरकार ने ख़ुद अदालत की अवमानना की है जिसे अदालत को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए।

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