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बिजली इंजीनियरों का आरोप - कोयले की कमी के लिए भारत सरकार जिम्मेदार

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hastakshep
15 May 2022
New Update
भारत में कोयला बिजली परियोजनाओं को मिलने वाला बैंक लोन घट रहा है

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विद्युत अभियंताओं ने राज्यों को कोयला आयात करने के लिए केंद्र सरकार के निर्देश को वापस लेने की मांग की

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यदि राज्यों को कोयला आयात करने के लिए मजबूर किया जाता है तो केंद्र सरकार को अतिरिक्त बोझ उठाना चाहिए

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एआईपीईएफ ने सभी मुख्यमंत्रियों से केंद्र सरकार के निर्देश का विरोध करने की अपील की

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लखनऊ 15 मई 2022. ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने घरेलू कोयले की कमी को पूरा करने के लिए राज्यों को कोयले का 10% आयात करने के लिए बिजली मंत्रालय के 28 अप्रैल के निर्देश को वापस लेने की मांग की है।

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केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह को भेजे गए एक पत्र में, एआईपीईएफ के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने कहा कि अगर राज्यों को कोयले का आयात करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो भारत सरकार को आयातित कोयले का अतिरिक्त बोझ उठाना चाहिए ताकि पहले से ही आर्थिक रूप से संकटग्रस्त डिस्कॉम और अंततः आम आम उपभोक्ताओं पर अधिक बोझ न पड़े।

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एआईपीईएफ ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों से इस मुद्दे को सर्वोच्च प्राथमिकता पर केंद्र सरकार के साथ उठाने की भी अपील की है।

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एआईपीईएफ के पत्र में कहा गया है कि वर्तमान संकट भारत सरकार की नीतिगत विफलता और विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय की कमी का परिणाम है। पत्र में कहा गया है कि यह स्थापित है कि वर्तमान कोयले की कमी केंद्र सरकार की कई नीतिगत त्रुटियों तथा विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय के अभाव का संयुक्त परिणाम है तथा रेलवे वैगनों की कमी के कारण यह स्थिति और भी बदतर हो गई है।

पत्र में कहा गया है कि 2016 में सीआईएल के 35000 करोड़ रुपये के संचित राजस्व को छीनने के भारत सरकार के निर्णय ने नई खदानों के विकास और मौजूदा खदानों की क्षमता में वृद्धि को पंगु बना दिया। यदि इस अधिशेष को कोयला खदान क्षेत्र में वापस निवेश कर दिया जाता, तो वर्तमान कमी नहीं होती।

कार्यकाल समाप्त होने के बाद एक वर्ष के लिए सीएमडी सीआईएल के पद को खाली रखने से पता चलता है कि कोयले की कमी के लिए भारत सरकार स्वयं जिम्मेदार थी अतः आयातित कोयले के लिए अतिरिक्त शुल्क केंद्र सरकार द्वारा देय है और नीति के रूप में राज्यों पर यह बोझ नहीं डाला जाना चाहिए क्योंकि त्रुटियां भारत सरकार की थीं।

पत्र में मांग की गई है कि अतिरिक्त आयातित कोयला राज्यों को मौजूदा सीआईएल दरों पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए, और आयातित कोयले व भारतीय कोयले का अंतर भारत सरकार द्वारा दिया जाना चाहिए ।

एआईपीईएफ की मांग है कि 28-04-2022 का विद्युत मंत्रालय का पत्र राज्यों पर कोयले के आयात का वित्तीय भार डालने का प्रयास करता है, इसे वापस लिया जाना चाहिए क्योंकि राज्यों को भारत सरकार की नीतिगत चूक के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है।

एआईपीईएफ के पत्र में आगे कहा गया है कि रेल मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि कोयले की आवाजाही के लिए वैगनों की आवश्यकता प्रति दिन 441 रेक है और उपलब्धता/स्थापन प्रति दिन केवल 405 रेक है। 2017-18 से 2021-22 की अवधि के दौरान रेलवे द्वारा वैगनों के लिए दिए गए ऑर्डर औसतन 10,400 वैगन प्रति वर्ष थे। इसके विपरीत इसी अवधि के लिए प्रति वर्ष 23592 वैगन तक लम्बित था जिसके लिए आदेश दिए गए थे लेकिन वैगनों की आपूर्ति नहीं की गई थी।

शैलेंद्र दुबे ने कहा कि अतीत में, कोयला आयात की प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और कदाचार का विषय उठता रहां है। आयातित कोयले के ओवर-इनवॉइसिंग और बंदरगाह पर कोयला परीक्षण/जीसीवी निर्धारण में हेराफेरी के कई मामले दर्ज हैं। इन मामलों को राजस्व खुफिया विभाग (डीआरआई) द्वारा उठाया गया था जो वित्त मंत्रालय के अधीन है। डीआरआई ने इन मामलों को बॉम्बे के उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उठाया। डीआरआई द्वारा उठाए गए इन मामलों को तार्किक निष्कर्ष पर ले जाया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने राज्य के उत्पादन गृहों को कोयले का आयात करने का निर्देश (Instructions to import coal to the production houses of the state) देते हुए स्पष्ट रूप से इस कारक को नजरअंदाज कर दिया है कि अधिकांश राज्यों के थर्मल स्टेशनों को कोयला आयात में कोई पूर्व अनुभव नहीं है और विशेष रूप से लोडिंग बिंदु पर कोयले की गुणवत्ता निर्धारण के लिए प्रक्रियाओं के संबंध में। इन राज्यों की थर्मल इकाइयों को इस प्रकार ओवरचार्जिंग, जीसीवी मूल्यों की धोखाधड़ी के जोखिम का कोई पिछला अनुभव नहीं होने के कारण, इन मामलों से प्रभावी ढंग से निपटने में राज्य सक्षम नहीं होंगे।

उन्होंने कहा कि ऐसे में कोयला आयत करने का निर्देश वापस लिया जाये अन्यथा अतिरिक्त बोझ का वहां केंद्र सरकार को करना चाहिए |

Web title : Allegations of power engineers - Government of India responsible for the shortage of coal

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