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Alternative Political System: Challenges and Prospects
भारतीय समाज एक विविधता पूर्ण समाज है। कहने के लिए तो यह हम सभी एक भारतीय संस्कृति की पौध हैं मगर इस बात को लेकर अक्सर द्वंद्व रहता है कि कौन सी भारतीय संस्कृति? हिंदू बहुलांश वाली सनातन धर्मी भारतीय संस्कृति अथवा अलग-अलग पूजा पद्धति को मानने वाले अल्पसंख्यकों की आस्था विश्वासों को समेटे हुए मिश्रित भारतीय संस्कृति!
दरअसल आज हम जिस शिक्षा प्रणाली को ढो रहे हैं उसमें कहीं ना कहीं पश्चिमी प्रकृति हावी रही है और पश्चिम की खासियत यह है कि वहां विविधता को पसंद नहीं किया जाता जबकि जिसे हम भारतीय संस्कृति या भारतीयता करते हैं वह निश्चित तौर पर एक विविधता पूर्ण अथवा बहुल संस्कृति का वाहक रही है।
उपरोक्त के आधार पर कह सकते हैं कि भारत में विविधता के पक्ष या विरोध में एक राजनीति रही है और यह मुख्यधारा की राजनीति या तो इस विविधता को समेटे हुए होती है अथवा इसके विपरीत होती है। धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की बात हो अथवा उनकी मुख्यधारा ( हिंदुत्व) में समेटने की, दोनों बातें ही विविधता की राजनीति को समझने हेतु पर्याप्त है।
भ्रष्टाचार भारत में वैकल्पिक राजनीति का प्रिय विषय रहा है। नेहरू काल में जीप घोटाले का मुद्दा हो या राजीव काल का बोफोर्स सौदा अथवा पूर्व सीएजी विनोद राय का कल्पित हजारों करोड़ों का मनमोहन काल का घोटाला, देश की राजनीति घोटालों की राजनीति से अछूती नहीं रही है। वैसे भी यहां कहा जाता है कि भारतीय लोगों का 'मूड' हर 20 -25 साल में एक बार स्विंग जरूर करता है। और वह ठीक वैसे ही होता है जैसे किसी शांत स्थिर जल वाले तालाब में कंचा मार दिया गया हो।
इंदिरा दौर की आपातकाल वाली राजनीति हो अथवा राजीव काल की वीपी सिंह वाली बोफोर्स राजनीति अथवा मनमोहन काल के अंतिम दौर का अन्ना आंदोलन, भ्रष्टाचार के खिलाफ जनाक्रोश को सत्ता पलट करवाने में सफल रहा था।
अस्मिता की राजनीति अथवा सामाजिक न्याय आंदोलन | Identity politics or social justice movement
क्योंकि भारत एक विविधता पूर्ण समाज रहा है इसलिए लोगों की अपनी अपनी अस्मिताओं को राष्ट्रीय फलक पर दर्ज कराने की चाह स्वाभाविक ही है। आजादी के पूर्व से ही इसकी शुरुआत हो चुकी थी चाहे वह धर्म की अस्मिता की बात हो अथवा जातीय क्षेत्रीय अस्मिता की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अथवा त्रिवेणी महासंघ जैसे संगठन इसकी मिसाल है।
डॉक्टर अंबेडकर का 'दलितोस्तान' के हद तक जाकर वंचित तबके की राजनीति करना इसका प्रमाण है। कालांतर में सामाजिक न्याय की संपूर्ण राजनीति अस्मिता की राजनीति की पराकाष्ठा रही है, जिसका आज के दौर में विमर्श होना इस आंदोलन के नैतिक व दार्शनिक पक्ष को कमजोर साबित करता है।
मुख्यधारा की राजनीति बनाम वैकल्पिक राजनीति | Mainstream Politics vs. Alternative Politics
मुख्यधारा की राजनीति में विचारधारा के फैलाव होने से वैकल्पिक राजनीति की संभावना बढ़ती है और यह वैकल्पिक राजनीति अधिक टिकाऊ भी रहती है। यह काम भारत में गांधी काल से ही चला रहा है। गांधीजी की खुद ही उस राजनीति को आगे बढ़ाने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे जो सिर्फ सत्ता परिवर्तन न करके, संपूर्ण सामाजिक व आर्थिक बदलाव को प्रेरित कर सके। ऐसे बहुत सारे साम्यवादी, समाजवादी अथवा वामपंथी दलों को गांधी के समग्र राजनीति वाली श्रेणी में रख सकते हैं, जिनका एकमात्र काम सिर्फ सत्ता तक पहुंचना नहीं होता बल्कि संपूर्ण सामाजिक व आर्थिक प्रणाली को रीडिजाइन करना होता है।
जेपी व किशन पटनायक को एक नई राजनीति के पथप्रदर्शक के तौर पर देखा जा सकता है। गांधी की हत्या के बाद जो राजनीति रही है उसमें ऐसे बहुत सारे लोग रहे हैं जो उस वैकल्पिक राजनीति को आगे बढ़ाते रहे और जिनका उद्देश्य वोटों की राजनीति के बजाय विचारधारा के फैलाव पर जो रहता है, वोटों का विस्तार वैकल्पिक पार्टी को जन्म देती है। जिसका परिणाम हम असम गण परिषद अथवा वर्तमान की आम आदमी पार्टी की राजनीति के रूप में देख सकते हैं। वीपी सिंह काल की जनता दल वाली राजनीति को वोटों को पैमाना मानकर करने वाली एक राजनीति के रूप में देख सकते हैं।
वोटों के पैमाने पर देखें तो व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा व विचारधारा का अंतर्विरोध, असम गण परिषद व जनता दल को अधिक टिकाऊ नहीं रहने दी थी। यदि आम आदमी पार्टी भी अपने पुराने महारथियों को किनारे करती दिख रही है तो यह भारत में एक नये तरीके के वैकल्पिक राजनीति का गर्भपात ही कहा जाएगा (कहा भी जा रहा है)।
इस निष्कर्ष का तर्क ये है कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन की राजनीति एक समग्र फर्जीवाड़े पर टिकी थी। सीएजी विनोद राय का कल्पित घोटाला कल्पित ही सिद्ध हुआ। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के परिणाम स्वरूप उभरी राजनीति व सत्ता परिवर्तन इस बात का द्योतक है कि इस राजनीति का उद्देश्य कांग्रेस पार्टी को सत्ता से हटाना था कोई वैकल्पिक राजनीति का विकल्प नहीं खड़ा करना था। जबकि केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा प्रस्तुत किये गये कल्पित भ्रष्टाचार के आंकड़े व लोकलुभावन वादे ने इसके वोटर को ठगा हुआ सा महसूस करने पे मजबूर कर रहा है। और या राजनीति ऐसे कॉकटेल को जन्म दिया है जिसमें न तो रोगी की डायग्नोसिस ठीक से हो पा रही है और न ही उसका इलाज शुरू हो पा रहा है।
वैकल्पिक राजनीति की संभावनाएं व भविष्य | Prospects and future of alternative politics
गांधीजी ने स्वराज्य के संदर्भ में कहा था कि स्वराज का अर्थ है 'सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने के लिए सतत् प्रयत्न करना फिर वह नियंत्रण विदेशी सरकार का हो या स्वदेशी सरकार का। यदि हर छोटी बात के लिए लोग सरकार का मुंह ताकने लगेंगे तो वह स्वराज सरकार किसी काम की नहीं होगी'।
गांधी जी के कथन को आप जितना चाहे उतनी बार पढ़कर अलग-अलग मंतव्य समझते रहिये किंतु उनका कथन आज भी प्रासंगिक है। शरीर को विषमुक्त भोजन की जरूरत है। जिससे तन व मन दोनों स्वस्थ रहें। राजनीतिक संस्थाओं व सरकार को समाज पर हावी न होने दिया जाए, जिससे कि समाज अपने भौतिक व सामाजिक संसाधनों का अधिक से अधिक स्व नियमन कर सके। यही आज की वैकल्पिक राजनीति की जरूरत है, जिसमें ग्राम पंचायतों को दिल्ली से निर्देश की जरूरत ना पड़े। बल्कि गांव का उसका जल, जंगल और जमीन पर स्वराज कायम रहे। ऐसी वैकल्पिक राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों, संगठनों व नेताओं की पहचान जरूरी है।
डॉ. राम प्रताप यादव
लेखक श्री रामस्वरूप मेमोरियल यूनिवर्सिटी, लखनऊ में राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफ़ेसर हैं।
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