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अमित शाह के गुरु जैसे अमर सिंह को इतिहास अच्छे रूप में नहीं सफल रूप में याद करेगा... कई बार चाणक्यों का स्थान चन्द्र गुप्त से अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है

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hastakshep
02 Aug 2020
अमित शाह के गुरु जैसे अमर सिंह को इतिहास अच्छे रूप में नहीं सफल रूप में याद करेगा... कई बार चाणक्यों का स्थान चन्द्र गुप्त से अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है

मेरी यादों में अमर सिंह | Amar singh in my memories

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अगर भारतीय राजनीति के पंडित कुछ सबक सीखने की इच्छा रखते हों तो उन्हें अमर सिंह के जीवन का अध्ययन (Study of life of amar singh) करना चाहिए जिन्होंने हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के हर स्तम्भ की कमजोरियों को सरे आम उजागर किया। दुर्भाग्य यह है कि यह खुला उल्लंघन उन्होंने नियमों को बदलने की ताकत रखने वाले लोगों और दलों के पक्ष में किया इसलिए किसी ने उन नियमों में सुधार करने की जरूरत नहीं समझी।

मैंने कुछ वर्षों पहले उनके गम्भीर रूप से बीमार होने पर लिखा था कि अगर अमर सिंह अपनी आत्मकथा लिखने का साहस कर सकें और उसमें सब कुछ सच सच लिख दें तो भारतीय लोकतंत्र की कलई खुल सकती है।

जब मैंने नौकरी छोड़ कर स्वतंत्र और नियमित लेखन प्रारम्भ किया तो उसमें निरंतर समाचारों में रहने वाले अमर सिंह मेरे चुनिन्दा पात्रों में से थे। मैंने उन पर अनेक व्यंग्य और आलोचनात्मक लेख लिखे जो उस समय के प्रमुख समाचार पत्रों में छपे। दो एक व्यंग्य कविताएं भी लिखीं जिनमें से एक की पहली पंक्ति थी- उनको मलाल है, दलाल क्यों कहा गया। एक दूसरी कविता की पंक्ति थी – अमर सिंह जी दूध बेचते, भैंस मुलायम की

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सच तो यह है कि अमर सिंह जैसे लोगों ने व्यंग्य की सम्भावनाएं ही कम कर दी थीं, क्योंकि व्यंग्य मूलतः दोहरे चरित्रों को उजागर कर के पैदा किया जाता रहा है। अमर सिंह जैसे लोगों ने उसे नंगे रूप में अपना कर उसके प्राण ही हर लिये। लोग मानने लगे कि यही राजनीति है और उसका सम्बन्ध पुराण कथाओं से जोड़ कर उसकी वैधता बताने लगे। इतिहास में तो नायकों के साथ-साथ सहयोगी भी जाते हैं और कई बार चाणक्यों का स्थान चन्द्र गुप्त से अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।

एक बार मुझे समाजवादी पार्टी के एक सौम्य और वरिष्ठ नेता के साथ पूरा एक दिन गुजारने का मौका मिला। सुबह मैंने लंच के समय उनसे पूछा कि ये अमर सिंह आपकी पार्टी में क्या हैं? उन्होंने बात टाल दी। मुझे अपने सवाल पर दुख हुआ कि क्यों ऐसा सवाल पूछ लिया। रंग जी की पंक्तियां याद आयीं –

बहुत से प्रश्न ऐसे हैं जो दुहराये नहीं जाते

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मगर उत्तर भी ऐसे हैं जो बतलाये नहीं जाते

किंतु शाम को जब डिनर के पहले बैठे तो उन्होंने कहा कि सुबह तुम पूछ रहे थे कि ये अमर सिंह मेरी पार्टी में क्या हैं, तो एक कहानी सुनो। एक व्यक्ति के चार बेटे थे, एक किसान था, एक डाक्टर, एक इंजीनियर, और चौथा कुछ स्पष्ट सम्मानित काम नहीं करता था पर घर में उसका सम्मान सबसे अधिक था क्योंकि घर वही चला रहा था। अमर सिंह वही चौथे बेटे हैं।

समाजवादी मुलायम सिंह यादव को मंडल कमीशन के प्रभाव में यादव मुलायम सिंह बनाने, और उस जाति समर्थन को सत्ता प्राप्ति का चारा बनाने का गुरु मंत्र देने वाले अमर सिंह ही थे। उन्होंने सत्ता प्राप्ति के लिए चुनावों में पूंजी ‘निवेश’ करने वाले पूंजीपतियों और जातिवादी जन नेता के बीच समन्वय बैठाने की भूमिका निभायी। उन्होंने ही बताया कि बहुदलीय नेतृत्व में अल्पमत की निष्पक्षता कितनी कीमती होती है।

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ये अमर सिंह ही थे जिन्होंने समाजवादी मुलायम को खुला गठबन्धन करने वाला मुलायम बनाया और विचारधारा मुक्त बना कर सन्देश दिया कि उनके हर समर्थन की खुली नीलामी होगी। ऐसा करने से विचारधारा वाले लोग भी सत्ता के लिए उनके द्वारे आयेंगे। ऐसा हुआ भी। मुलायम सिंह की सरकार बनवाने के लिए भाजपा ने अपने बारह विधायकों को दल से निकाल दिया और इस तरह उन्होंने दल बदल कानून से बाहर होकर समर्थन दे दिया।

परमाणु संधि पर रातों रात मुलायम सिंह से उनका पक्ष पलटवा कर अमेरिका और कांग्रेस से लाभ दिलवाया। उन्हें जेल जाना पड़ा तो वे जेल भी गये। उन्होंने वामपंथियों के कम संख्या का हमेशा लाभ उठाया। राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा- कांग्रेस के साथ कलाम के पक्ष में वोट करा दिया और वामपंथियों के उम्मीदवार का विरोध करवा दिया।

सोनिया गाँधी के डिनर में कामरेड हरकिशन सिंह सुरजीत के साथ बिन बुलाये चले गये। सुरजीत का कद इतना बड़ा था कि उन्हें महाभारत का भीष्मपितामह कहा जा सकता है, वे उन्हें ले भी गये। बाद में अमर सिंह ने सुरजीत के खिलाफ भी बयान दे दिया।
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मुलायम सिंह सरल व्यक्ति रहे थे, वे ना तो अच्छे व्यापारी थे, ना वक्ता और ना ही बयानवीर। उनकी इस कमी को अमर सिंह ने पूरा किया व अन्धे-लंगड़े के सहकार की कहानी को चरितार्थ किया।

जब मुस्लिम समर्थन लेने के लिए उन्हें समाजवादी पार्टी से बाहर कर दिया गया तब उन्होंने आजम खान को विश्वास दिलाने के लिए मुलायम सिंह को एक दो वर्ष तक खूब गालियां दीं किंतु सरकार बनने के बाद मुलायम सिंह ने फिर उन्हें गले लगा कर राज्य सभा में भिजवा दिया।

व्यापार और बोफोर्स मामले में अमिताभ बच्चन बर्बाद और निराश हो चुके थे, उन्हें उनकी लोकप्रियता का बल याद दिला कर पुनर्जीवित करने का काम अमर सिंह ने ही किया। अमर सिंह की सलाह के बाद ही अमिताभ ने विज्ञापन करना शुरू किये और आज वे व उनका परिवार विज्ञापनों से कमाई करने में सबसे आगे है। अमिताभ की लोकप्रियता का लाभ उन्होंने खुद भी उठाया और मुलायम सिंह की पार्टी को भी दिलवाया। बदले में जया बच्चन को राज्य सभा की सीट दिलवा कर उनका राजनीतिक बल भी बना कर रखा।

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Virendra Jain वीरेन्द्र जैन स्वतंत्र पत्रकार, व्यंग्य लेखक, कवि, एक्टविस्ट, सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी हैं। Virendra Jain वीरेन्द्र जैन स्वतंत्र पत्रकार, व्यंग्य लेखक, कवि, एक्टविस्ट, सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी हैं।

जब अमिताभ को आयकर के नोटिस मिलने शुरू हुये तो इलाहाबाद के आयकर कार्यालय पर हमला करा के तोड़फोड़ कराने के पीछे भी अमर सिंह का हाथ बताया गया।

जब एक फिल्म समारोह में अमिताभ को शाहरुख से पीछे की लाइन में बैठा दिया गया तो कार्यक्रम स्थल पर खुला विद्रोह करने वाले भी अमर सिंह ही थे।
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लोकप्रियता का महत्व समझने वाले अमर सिंह कुछ वर्षों तक अमिताभ के साथ इतने नत्थी रहे कि मैंने अपने एक व्यंग्य में रूपक बनाया था कि उनके बैड के नीचे कोई छुपा हुआ था, सन्देह होने पर अमिताभ ने बाहर निकाला तो अमर सिंह निकले। इस पर अमिताभ ने कहा कि भाई मुझे यहां तो कम से कम अकेला रहने दो।

एक प्रकरण में विपक्षी को हराने के लिए उन्होंने देश के सारे बड़े वकीलों को अनुबन्धित कर लिया जिससे विपक्ष को कोई बड़ा वकील नहीं मिला। परिणाम यह हुआ कि उनका विपक्ष मुकदमा हार गया। पुलिस अधिकारियों और नौकरशाहों से वे काम लेना जानते थे व मुलायम सिंह को रक्षामंत्री बनवा कर सेना में भी दखल बना सके थे।

अमर सिंह को इतिहास अच्छे रूप में नहीं सफल रूप में याद करेगा। किसी भी तरह से सफल होकर दिखाने वाले अमर सिंह अमित शाह के गुरु जैसे लगते हैं।

वीरेन्द्र जैन

 

 

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