बहुत अच्छा लगता है,
श्रीमंत के चरणों में लोटकर,
फिर अपनों में जाकर शेखी बघारना।
बहुत अच्छा लगता है,
प्रभु वर्ग के साथ,
सत्ता प्रतिष्ठान में बैठना।
सत्ता के महाभोज में शामिल होना,
सत्ता का चमचा होना,
इनसे नज़दीकियाँ बनाकर,
अपनों में आकर ऐंठना।
बहुत अच्छा लगता है,
छोटे-छोटे स्वार्थों में,
प्रभुवर्ग की चारण वन्दना।
बहुत अच्छा लगता है।
रत्ती भर सुख के लिए,
घुटने बल रेंगना।
बहुत अच्छा लगता है,
लेकिन क्या कर रहे हैं आप ????
क्या गढ़ रहे हैं आप???!
क्या कभी ????
अपनी आने वाली नस्लों के बारे में सोचा है
तुम्हारी इसी छोटे-छोटे स्वार्थ
छोटे-छोटे मतलब के चक्करों में
चक्करघिन्नी बन जाएगी
तुम्हारी आने वाली नस्लें
क्या कभी सोचा है???
कि तुम्हारा आज छोटा सा स्वार्थ,
तुम्हारी छोटी सी ग़ुलामी
एक बड़ी और लम्बी ग़ुलामी को जनेंगी ????
क्या कभी तुमने सोचा है???
कि आज का संघर्ष
तुम्हारी आने वाली नस्लों
का मुस्तकाबिल का सूरज बनकर चमके
क्या तुमने कभी सोचा है
कि तुम्हारे बाद भी दुनिया है
बहुत बड़ी दुनिया है
पीछे आने वाली नस्लों की
बहुत बड़ी शृंखला है
उनको ग़ुलाम बनाने का
उपक्रम रचना छोड़ दो
छोड़ दो छोटे-छोटे स्वार्थ
छोड़ दो छोटी-छोटी बातें।
इतिहास कभी भी वर्तमान नहीं होता,
जब वर्तमान भूत हो जाता है,
तो इतिहास बन जाता है,
और इतिहास उस समय समीक्षा करता है,
तुम्हारे वर्तमान की समीक्षा,
उस समय न तुम होते हो,
न तुम्हारा वक़्त।
न तुम्हारी सत्ता, न आभा मंडल,
न तुम्हारा ताज तख़्त।
और तब तुम विभीषण बन जाते हो,
और कुर्सी की निष्ठा से बँधे हुए भीष्म,
जहाँ द्रोपदी नंगी हो तो हो जाए,
तो क्या फ़र्क पड़ता है!
तुम्हारी निष्ठा तो कुर्सी से है,
तुम्हारे वर्तमान का चकाचौंध,
इतिहास के पन्नों में,
एक काला धब्बा नज़र आएगा।
काला अध्याय नज़र आएगा।
सब कुछ काला काला ही होगा,
तुम्हारा सारा आभा मंडल,
वक़्त के बियाबान में बिखर जाएगा।
और साथ ही साथ तुम काला कर रहे हो,
आने वाली नस्लों का भविष्य।
थूकेगा तुम्हारे इस कृत्य पर इतिहास,
और आने वाली नस्लों की आह।
होगा तुम्हारा वर्तमान स्याह,
और इतिहास भी स्याह।
तपेन्द्र प्रसाद

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