अंजना ओम कश्यप की शाहीन बाग की रिपोर्ट पर
Anjana Om kashyap’s Shaheen Bagh report
रचना में व्यक्त यथार्थ कैसे लेखक के विचारों का अतिक्रमण करके अपने स्वतंत्र सत्य को प्रेषित करने लगता है, अंजना ओम कश्यप की शाहीन बाग की रिपोर्टिंग (Anjana Om Kashyap’s reporting of Shaheen Bagh) से फिर एक बार यह सच सामने आया।
वैसे रचना और लेखक के बीच के द्वंद्वात्मक रिश्तों की समझ के अनुसार मामला यथार्थ की स्वतंत्र शक्ति की अभिव्यक्ति तक ही सीमित नहीं रहता है, इस उपक्रम में यथार्थ पाठकों के साथ ही रचनाकार को स्वयं को भी प्रभावित और परिवर्तित करता जाता है, उसे जगह-जगह से काटता, छीलता, अर्थात् तराशता जाता है।

अंजना ओम कश्यप के मामले में देखने की बात यही रहेगी कि आगे वे अपनी रिपोर्टिंग में सत्य को इसी प्रकार स्वतंत्र रूप में बोलने देती रहेगी और उसी क्रम में खुद भी कुछ सीखेंगी, अथवा अपनी पत्रकारिता पर राजनीतिक प्रतिबद्धता को तरजीह देकर अपने को तराशने और विकसित करने के इस कठिन रास्ते को छोड़ कर संघ के प्रचार के सत्ता द्वारा संरक्षित आरामदेह काम में लौट जायेंगी।
अरुण माहेश्वरी
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