/hastakshep-prod/media/post_banners/VJbL3uCuDNVqFBwz9wzZ.jpg)
Justice Markandey Katju
काटजू का तर्क है कि ठाकुर ने भारतीय राजनीति को उच्च विषैले, विषाक्त स्तर पर पहुंचाया है
Anurag Thakur speech will open Nazi era in Indian politics
Katju argues Anurag Thakur has taken Indian politics to a higher virulent, toxic level
नई दिल्ली, 28 जनवरी 2020. सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने कहा है कि केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर का “देश के गद्दारों को” विवादित भाषण भारतीय राजनीति में नाजी युग को खोलेगा। उनका मानना है कि ठाकुर भारतीय राजनीति को उच्च विषैले, विषाक्त स्तर पर ले गए हैं।
एक अंग्रेज़ी वेबसाइट पर लिखे अपने लेख जिसका लिंक श्री काटजू ने अपने सत्यापित फेसबुक पेज पर शेयर किया है में कहा है कि ठाकुर को भारतीय राजनीति को पहले से कहीं अधिक उच्च और विषैले स्तर तक ले जाने के लिए श्रेय दिया जाना चाहिए।
जस्टिस काटजू ने कहा है कि सभी जानते हैं कि भारत में चुनाव गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और अच्छी शिक्षा जैसे वास्तविक मुद्दों पर नहीं, बल्कि भावनात्मक मुद्दों पर लड़े जाते हैं। इन भावनात्मक मुद्दों में तथाकथित राम जन्मभूमि पर राम मंदिर बनाने का अभियान शामिल है (जिसने 1984 में लोकसभा में भाजपा की सीट की गिनती 2 से बढ़ाकर 1999 में 183 कर दी), गौ रक्षा और पाकिस्तान को शैतान को कोसने (बालाकोट) हमले से बीजेपी को बहुत मदद मिली, जिसे 2019 के चुनावों में 'चौकीदारों' की पार्टी के रूप में पेश किया गया, जिसने उसे 303 सीटें दीं)।
जस्टिस काटजू कहते हैं कि अनुराग ठाकुर के नारे का सरासर पागलपन वास्तव में कठोर है। और इसकी सुंदरता यह है कि इसे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 123 (3A) के तहत चुनावी भ्रष्ट आचरण नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह अस्पष्ट है।
देश के गददार कौन हैं, 'कौन गोली मारने लायक हैं'? अभिव्यक्ति का कोई भी अर्थ हो सकता है। इसका मतलब मुस्लिम और ईसाई जैसे अल्पसंख्यक हो सकते हैं, जिन्हें आतंकवादी और देशद्रोही माना जाता है। इसका मतलब उन सभी से हो सकता है जो भाजपा विरोधी हैं। इसका अर्थ उदार हो सकता है। इसका मतलब जेएनयू, एएमयू और जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र (टुकड़े- टुकड़े गैंग) हो सकते हैं। यह कई अन्य चीजों का मतलब हो सकता है।
जस्टिस काटजू लिखते हैं कि, यदि भाजपा आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतती है (और मुझे लगता है कि यह होगा), तो इसका प्राथमिक श्रेय अनुराग ठाकुर को जाना चाहिए, गृह मंत्री अमित शाह से बहुत अधिक। शाह ने केवल शाहीन बाग में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शन कर रही भीड़ को तितर-बितर करने के लिए ईवीएम का बटन दबाने की बात कही, जबकि दूसरी तरफ दूसरे यानी ठाकुर ने अपरिभाषित देशद्रोहियों के विरुद्ध एक जहरीली पिच पर विषवमन किया, अब रक्तपिपासु भीड़ उन्हें (देश के गद्दारों को) फांसी देने के लिए खोजेगी।
जस्टिस काटजू के मुताबिक हिंसा की वकालत करके, अनुराग ठाकुर ने भारतीय राजनीति में एक नया आयाम खोला है, जो जर्मनी में बीमार गणराज्य के पिछले वर्षों के समान होगा जब एसए और एसएस जैसे मजबूत-हथियारबंद ठग बर्लिन, म्यूनिख और अन्य शहरों की सड़कों पर घूमते थे, तर्क जीतते थे लेकिन शब्दों से नहीं बल्कि खोपड़ियों को तोड़कर।
1862 में महान जर्मन नेता बिस्मार्क ने प्रशिया लैंडटैग को दिए अपने भाषण में कहा, “दिन के बड़े मुद्दों को वोटों और बयानबाजी से नहीं बल्कि रक्त और लोहे (ब्लुट अन्ड ईसेन) द्वारा तय किया जाएगा।” कमोबेश भारतीय राजनीति भी उसी दिशा में आगे बढ़ती दिख रही है।