अरिकामेडु : भारत का एक 'सच्चा रोमन शहर' ...

Guest writer
01 Jan 2023
अरिकामेडु : भारत का एक 'सच्चा रोमन शहर' ...

ariyankuppam puducherry

● दो हजार साल पुराना बंदरगाह जहां से यूनान और रोम तक होता था समुद्री कारोबार

अतीत के आईने में ! यात्रा वृत्तांत : अरिकामेडु का इतिहास

'आरिकामेडु' (Ariyankuppam, Puducherry) प्राचीन भारतीय इतिहास का एक बहुत कम चर्चित, बहुत कम जाना पहचाना गया पन्ना। एक ऐसा भूला बिसरा अध्याय जो दो हज़ार साल पहले भारत के युनान और रोम तक फैले कारीबारी रिश्ते का गवाह है।

अरिकामेडु कहां स्थित है?

इतिहास की यह अनमोल धरोहर पॉन्डिचेरी -कडलूर रोड से लगभग 4 किलोमीटर दूर स्थित है। अपनी पुदुचेरी (Pondicherry) यात्रा के दौरान जब हम दुपहिया वाहन से  ढूंढते तलाशते यहां पहुंचे तब मात्र पांच - छः व्यक्ति ही इस स्थान पर दिख रहे थे जो शायद कामगार थे। चूंकि हम काफी उत्कंठा लिए इस स्थान का पता पूछते पूछते यहां तक आये थे अतः हम सही लोकेशन पर पहुंचे हैं अथवा नहीं इसकी तस्दीक करने के लिए उन्हीं में से एक से हमने उस जगह के बारे में पूछा। उसके बताये अनुसार हमारी खोज सफल थी और हम ठीक उस स्थान पर थे जहां पहुंचने की हमें उत्कट अभिलाषा थी - 'अरिकामेडु' !

यहां हमारे सामने केवल एक भवन का खंडहर और दो खम्भों ( पिलर ) के अवशेष थे जो किसी प्रवेश द्वार जैसे प्रतीत हो रहे थे। यह एक संरक्षित ऐतिहासिक धरोहर थी।

इस स्थान के बारे में विस्तार से जानने की अपनी उत्सुकता को शांत करने के उद्देश्य से हमने पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के किसी कर्मचारी को बुलाने हेतु कामगारों से आग्रह किया।

लगभग 5 मिनिट के भीतर ही एक व्यक्ति आए और उन्होंने आधी अंग्रेज़ी और आधी तमिल भाषा में हमें जो जानकारी दी उसे सुन कर हमारे देश के गौरवशाली अतीत पर हम गर्वित हो उठे।

यह स्थान 'अरिकामेडु' था जो पॉन्डिचेरी की फ्रांसीसी बस्ती- व्हाइट टाउन से आधे घंटे की दूरी पर आम पर्यटकों की नज़रों से दूर अरियानकुप्पम नदी के तट पर लगभग 34 एकड़ क्षेत्र में फैला एक पुरातात्विक स्थल है। अरियानकुप्पम नदी बंगाल की खड़ी में मिलकर गिंगी नदी का उत्तरी निकास बनाती है। 

लगभग 300 वर्ष पुराने अवशेष

वर्तमान खंडहर एक चर्च व स्कूल ( सम्भवतः संडे स्कूल जहां बच्चों को इतवार के दिन धार्मिक शिक्षा दी जाती है।) के अवशेष हैं। ये अवशेष लगभग 300 वर्ष पुराने हैं। इस खंडहर के सामने की ओर दीवारों के जो छोटे-छोटे अवशेष हैं वे लगभग 2000 वर्ष पुराने बताये जाते हैं। पहले हमें इस पर सहज ही विश्वास नहीं हुआ लेकिन पीछे की दीवार की ईंटों और सामने की टूटी हुई छोटी - छोटी दीवारों की ईंटों के आकार, प्रकार और उनके निर्माण में उपयोग में लाई गई सामग्री के अंतर से इसकी तस्दीक होती हुई दिखी। यह सन 1982 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है।

लेकिन अरिकामेडु के खंडहर और यहां का इतिहास केवल यही नहीं था अपितु वास्तविक जानकारी इसके आगे थी।

दो हज़ार साल पुराना बंदरगाह

बताया जाता है कि जेंटिल नामक एक फ्रांसीसी खगोलविद सन 1760  के आसपास अरिकामेडु आया था। असल में वह एक विशेष खगोलीय घटना शुक्र तारे (Venus) में परिवर्तन का साक्षी होने आया था। यह घटना बर्षों वर्ष में एक बार होती है। वैसे जेंटिल मुद्रा विशेषज्ञ भी था।

इस प्रवास में जेंटिल को यहां एक मुद्रा ( सील ) प्राप्त हुई थी जिस पर उकेरे गए चित्र की पहचान उसके द्वारा अगस्टस कैसर के रूप में की गई।अगस्टस ईसा का समकालीन था। तब पहली बार यह पता चला कि अरिकामेडु का संबंध, संपर्क दो हज़ार साल पहले यूनान, रोम और श्रीलंका से था। वास्तव में यह स्थान उस समय एक उन्नत और व्यस्त बंदरगाह था। 

प्राचीन समय में अरिकामेडु दूर देश ही नहीं घरेलू व्यापार का भी प्रमुख केंद्र था। कावेरी पट्टनम, अलागकुलम, मुसिरी, सुत्तुकेनि आदि के साथ इस बंदरगाह का सतत व्यापारिक संपर्क था।

बाद में सर मौरटिमर व्हीलर, (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक) और जीन मेरी कासल ने वर्ष 1945 से 1950 के मध्य खुदाई में इस स्थान की खोज की और गहराई से उत्खनन करवाया।

अरिकामेडु के बगल में ही वीरमपट्टिनम नाम का गांव है जहां विरई नाम से एक बंदरगाह होने का उल्लेख 'संगम साहित्य' में है।

रोमन मूल की अन्य अनेक वस्तुएं जैसे मोती और रत्न, शराब के अवशेष सहित शराब बनाने के बर्तन, इटली में बनने वाली विशेष प्रकार की लाल रंग की पॉटरी यहां खुदाई में प्राप्त हुई हैं। इन वस्तुओं के अध्ययन एवं विश्लेषण के आधार पर अरिकामेडु और वीरमपट्टिनम को मिलाकर व्हीलर ने इसकी पहचान 'Peripelus of the Erythrean Sea' (पहली सदी में लिखित पुस्तक) में वर्णित 'Podouk' नामक बंदरगाह के रूप में की है। इन सब प्रमाणों से यह स्थापित हुआ कि इस बंदरगाह की शुरुआत अगस्टस कैसर, जो प्राचीन रोमन साम्राज्य का शासक था, (Augustus Caesar - 63 ईसा पूर्व से 14 ईस्वी ) के काल में हुई थी।

भारतविद डुबरेल ने पुदुचेरी के गवर्नर को लिखे एक नोट में इसे एक 'सच्चे रोमन शहर' की संज्ञा दी है।

उत्खनन में मिली सामग्री के विवेचन से यह स्थापित हुआ कि प्राचीन काल में यह बंदरगाह यूनानियों की व्यापारिक चुंगी थी।

यहां से यूनान और रोम के साथ मालवाहक जहाजों का आना जाना लगा रहता था। यहां से हीरे जवाहरात , मोती , मसालों और रेशम का व्यापार किया जाता था। ईसा पूर्व दूसरी सदी से सातवीं अथवा आठवीं सदी तक इस बंदरगाह से व्यापार होना पाया गया है।

इसके काल खंड की गणना यहां प्राप्त हुए इंडो-पैसिफिक मोतियों के आधार पर की गई है। इस स्थान पर खुदाई में मिलीं अनेक प्राचीन मूर्तियों, मुद्राओं, रोमन साम्राज्य से जुड़ी अनेक प्राचीन सामग्रियों आदि को संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।

इटली में पहली सदी के मध्य तक बनने वाली एक विशेष प्रकार की सिरेमिक से बनी कुछ वस्तुएं भी यहां से प्राप्त हुई हैं। 

तत्कालीन रोमन साम्राज्य के साथ इस बंदरगाह का संबंध स्थापित होने के कारण 2004 में पॉन्डिचेरी प्रशासन और इटली के विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में इस पुरा महत्व के स्थान के संरक्षण हेतु संयुक्त अध्ययन एवं खोज करने का निर्णय लिया गया है। इसी सम्मेलन में इसे वैश्विक धरोहर का दर्ज़ा प्रदान करने की अनुशंसा करने का निर्णय भी हुआ है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा भी UNESCO की 'Silk Road Sites in India' श्रेणी के अंतर्गत अरिकामेडु को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता प्रदान करने हेतु प्रस्ताव भेजा गया है।

देश के सुदूर दक्षिणी छोर पर गौरवमयी गाथा को समेटे इस कम जानी पहचानी धरोहर को जान समझ कर हमें एक अलग ही संतुष्टि का भाव हुआ।

शैलबाला मार्टिन पाठक

(लेखिका भारतीय प्रशासनिक सेवा की वरिष्ठ अधिकारी हैं। इन दिनों राज्य मंत्रालय मप्र, भोपाल में पदस्थ हैं।)

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