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Arsenic estimation in groundwater using algorithm technique
नई दिल्ली, 16 सितंबर : पीने के पानी के लिए हैंडपंप या ट्यूबवेल पर निर्भर इलाकों के भूमिगत जल में आर्सेनिक की मौजूदगी (Presence of arsenic in ground water) स्वास्थ्य के लिए एक प्रमुख खतरा है। गंगा के मैदानी क्षेत्रों में बसे पूर्वी भारत के इलाकों के लोग लंबे समय से भूमिगत जल में आर्सेनिक के संकट से जूझ रहे हैं। आर्सेनिक के संपर्क में आने से त्वचा पर घाव, त्वचा का कैंसर, मूत्राशय, फेफड़े एवं हृदय संबंधी रोग, गर्भपात, शिशु-मृत्यु और बच्चों में असंतुलित बौद्धिक विकास जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
Artificial intelligence based forecasting model to detect arsenic pollution
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने आर्सेनिक प्रदूषण का पता लगाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित पूर्वानुमान मॉडल विकसित किया है। उनका कहना है कि यह मॉडल पेयजल में आर्सेनिक की मौजूदगी का पता लगाने में मददगार हो सकता है। पर्यावरणीय, भूवैज्ञानिक एवं मानवीय गतिविधियों से संबंधित मापदंडों के आधार पर विकसित यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एल्गोरिदम पर आधारित मॉडल है। इसकी सहायता से शोधकर्ताओं को गंगा-डेल्टा क्षेत्र के भूजल में आर्सेनिक की मौजूदगी और मानव स्वास्थ्य पर उसके कुप्रभावों की भविष्यवाणी करने में सफलता मिली है।
शोधकर्ता गंगा के मैदानी क्षेत्रों में आर्सेनिक की चुनौती से निपटने के लिए वर्षों से दूषित भूजल के वितरण पैटर्न का अध्ययन कर रहे हैं, ताकि पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय ढांचे को प्रभावी रूप से विकसित किया जा सके। इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करते हुए पूरे डेल्टा क्षेत्र में उच्च और निम्न आर्सेनिक क्षेत्रों को चिह्नित किया है, साथ ही इससे प्रभावित लोगों की संख्या को भी उजागर किया है। इसके अलावा, अध्ययन में क्षेत्रीय स्तर पर आर्सेनिक के खतरे के लिए ‘सतह की जलरोधी मोटाई’ और ‘भूमिगत जल से सिंचाई’ के बीच अंतर्संबंध की बात भी रेखांकित की गई है।
प्रमुख शोधकर्ता मधुमिता चक्रवर्ती ने बताया कि “हमारे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल ने गंगा नदी के आधे से भी अधिक डेल्टा, जो पश्चिम बंगाल के 25 में से 19 प्रशासनिक क्षेत्रों में, प्रत्येक क्षेत्र में 25 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है, में भूमिगत जल में आर्सेनिक के उच्च स्तर का पता लगाया है। इस क्षेत्र में 3.03 करोड़ लोग आर्सेनिक से बुरी तरह प्रभावित हैं।”
Identification of sources of drinking water in arsenic affected areas of West Bengal
शोधकर्ताओं का कहना है कि एक ओर जहां पश्चिम बंगाल के आर्सेनिक प्रभावित इलाकों में पीने के पानी के स्रोतों की पहचान में यह तकनीक महत्वपूर्ण साबित हो सकती है, वहीं देश के अन्य हिस्सों में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है, जो गंभीर भूजल प्रदूषकों से ग्रस्त हैं।
शोध का नेतृत्व कर रहे आईआईटी खड़गपुर (IIT Kharagpur) के भूविज्ञान और भूभौतिकी विभाग के प्रोफेसर अभिजीत मुखर्जी ने कहा है कि
“यह जानकारी भारत सरकार के हाल ही में शुरू किए गए जल जीवन मिशन के लिए आधारभूत सूचना उपलब्ध कराती है। यह मिशन वर्ष 2024 तक देश के हर घर में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के संकल्प पर आधारित है। इस अध्ययन के परिणाम सुरक्षित भूजल स्रोतों की जानकारी उपलब्ध कराने में उपयोगी हो सकते हैं, जो कि भारत के अधिकांश क्षेत्रों में पीने के पानी का प्राथमिक स्रोत है।”