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हैप्पी वैलेंटाइन डे - Happy valentines day
Arun Maheshwari on Allen Badiou's Love On valentines day
ऐलेन बाद्यू — आज की दुनिया के एक प्रमुख दार्शनिक जिनके बारे में टेरी ईगलटन ने लिखा था कि आज की दुनिया में विरला ही कोई ऐसा नैतिक दार्शनिक होगा जिसकी इतनी साफ राजनीतिक दृष्टि है और जो विचारों से टकराने का साहस रखता है, जो सत्य और सार्वलौकिकता की धारणाओँ को विचार के दायरे में लाने की शक्ति रखता है।
मार्क फिशर ने लिखा है कि वे तथाकथित विश्व पूंजीवाद के अन्यायों के सामने मानवीयता को त्यागने की कामना से कोसों दूर है। उन्हें लोकप्रिय भाषा में ज्यां-पॉल सार्त्र और लुई आल्थुसर का वारिस भी कहा जाता है।
बहरहाल, आज सुबह-सुबह ‘आनंदबाजार पत्रिका’ और फेसबुक से पता चला कि आज ‘वैलेंटाइन डे’ है, कथित प्रेम का दिन। प्रेम की शान में बाद्यू की एक छोटी सी पुस्तक है जो उनके एक लंबे साक्षात्कार की बातों का लिप्यांतर है। फ्रांस के लोकप्रिय दैनिक ‘लॉ मोंद’ के लेखक निकोलस त्रोंग ने उनसे यह साक्षात्कार लिया था।
फ्रांस के एक शहर एवीनियोन में सन् 1947 से एक हर साल एक कला उत्सव हुआ करता है। त्रोंग ने वहीं पर ‘विचारों के मंच’ (Theatre of Ideas) के अपने कार्यक्रम में 14 जुलाई 2008 के दिन के लिए बाद्यू को आमंत्रित किया था। बाद्यू ने इस आमंत्रण को बड़े उत्साह के साथ स्वीकारा क्योंकि त्रोंग ने उन्हें इसमें तमाम सेनाओं, राष्ट्रों और राज्यों से चालित आज के काल में सभी सीमाओं को लांघ जाने वाली एक सार्वलौकिक, क्रांतिकारी कामुक शक्ति प्रेम के बारे में बात करने का संकेत दे दिया था और वे इस वार्ता को उसी प्रेम का जश्न मनाने के अवसर के रूप में देख रहे थे। इसी संदर्भ में उन्होंने प्लेटो के इस कथन का भी स्मरण किया को “जो भी प्रेम को प्रस्थान बिन्दु के तौर पर ग्रहण नहीं करता है, वह दर्शनशास्त्र की प्रकृति को कभी नहीं समझ पाएगा।”
सवाल है कि प्रेम में यह कौन से खतरे में है ?
निकोलस का उनके सामने पहला सवाल था कि आपने अपनी पुस्तक ‘The Meaning of Sarkozy’ में क्यों कहा है कि हमें सिर्फ प्रेम की रक्षा करने के बजाय इसे फिर से अर्जित करना चाहिए ? सवाल है कि यह कौन से खतरे में है ? आपने कहा था कि अतीत की अरेंज्ड शादियों को आज नए कपड़ों की जिल्द में पेश किया जा रहा है। क्या इसके पीछे कहीं डेटिंग वेबसाइट्स के विज्ञापन तो नहीं है जिनसे आप चिंतित है ?
बाद्यू ने इस सवाल पर पेरिस की दीवालों पर सब जगह चिपके हुए प्रेम करने की इंटरनेट डेटिंग साइट्स (Internet dating sites) के ऐसे तमाम विज्ञापनों का उल्लेख किया कि कैसे इनमें एक जगह कवि मरीवो (Marivaux) के नाटक के शीर्षक ‘प्रेम और इत्तिफाक का खेल’ की तर्ज पर कहा गया है ‘बिना इत्तिफाक के प्रेम पाओ’। दूसरा विज्ञापन कहता है — ‘प्रेम में पड़े बिना प्रेम करो’। अर्थात् कहीं कोई रंग-भंग, कोई जोखिम, कोई खतरा नहीं। एक कहता है — ‘बिना पीड़ा के बिल्कुल निखालिस प्रेम पाओ’।
बाद्यू खास तौर पर ऐसी एक वेबसाइट ‘meetic dating-site’ के प्रति आभार प्रकट करते हैं जिसके विज्ञापन में बाकायदा एक सौदे की तरह की बात कही गई है। बाद्यू कहते हैं कि इसे देख कर तो जैसे मेरी साँसें अटक गई। उसमें ‘प्रेम की कोचिंग’ कराने की बात है। वे आपको प्रेम की परीक्षा में उतरने के लिए तैयार करते हैं।
बाद्यू कहते हैं कि यह समूचा प्रचार प्रेम में सुरक्षा के तत्त्व को प्रमुखता देने की अवधारणा पर टिका हुआ है। एक ऐसा प्रेम जिसमें सारे जोखिमों की बीमा पॉलिसी ले ली जाती है। प्रेमी-प्रेमिका के बीच संबंधों के बारे में सारी नुस्खेबाजियों के मूल यही तो होता है। आप प्रेम करो, पर आगे-पीछे सब सोच कर प्रेम करो ! ये वेबसाइट्स साथी के चयन में इसी प्रकार की सावधानियों की सीख देने वाली साइट्स है। इनसे भावी प्रेमी की तस्वीर, उसकी पसंद-नापसंद, जन्म तिथि और कुंडली तथा राशि, कुल-गोत्र आदि सब जान कर आप आगे बढ़ें। तभी आप एक बिना जोखिम के रास्ते को चुन पाएंगे।
बाद्यू कहते हैं कि प्रेम में सुख की तलाश तो हर किसी की होती है। वह जीवन को भरा-पूरा और गहन बनाता है। पर प्रेम कभी भी एक जोखिम-विहीन उपहार नहीं हो सकता है। मीटिक साइट वालों का नजरिया अमेरिकी सेना के ‘स्मार्ट बम’ (Smart bomb) और ‘शून्य मृत्यु वाले युद्ध’ के प्रचार की याद दिलाता है। इसमें अकस्मात्, इत्तिफाकन मुलाकात जैसी कोई बात नहीं होती।
बाद्यू के अनुसार प्रेम में इस प्रकार की सुरक्षा का विचार प्रेम पर सबसे पहला खतरा है — सुरक्षा का खतरा। इसमें मां-बाप की पाबंदियों का पालन करते हुए कुल-गोत्र को देख परख कर की जाने वाली शादी की तरह की बात भले ही न हो, पर इसमें सुरक्षा के नाम पर अग्रिम समझौतों के जरिए तमाम आकस्मिकताओं के अंत और इत्तिफाकन मुलाकात तथा काव्यात्मक पीड़ादायी अंत से बचने की बातें प्रेम में जोखिम से बचने की बातें ही है।
इसके साथ ही बाद्यू ने प्रेम को ज्यादा महत्व प्रदान न करने को भी प्रेम के लिए दूसरा बड़ा खतरा कहा। सुरक्षामूलक खतरे के प्रतिकार में कहा जा सकता है कि हर हाल में प्रेम उच्छृंखल सुखवाद (rampant hedonism) की प्रजाति की ही एक चीज है और आनंद लेने की संभावनाओं का परिसर संकीर्ण नहीं, बल्कि व्यापक है। इसमें ध्यान देने की बात किसी फौरी चुनौती से बचने की होती है और उस अनन्यता की गहरी और सच्ची अनुभूति से भी बचने की भी जरूरत है जिससे प्रेम की चादर को बुना जाता है। लेकिन हर हाल में इसे जोखिम से जोड़ कर ही देखा जाना चाहिए, जो इसमें कभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं होता है। इसे साम्राज्यवादियों की सेना के प्रचार के तर्ज पर कभी नहीं देखा जा सकता है जिसमें जोखिम आपके लिए नहीं, दूसरों के लिए कहा जाता है।
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प्रेम के मामले में यदि आधुनिक शिक्षा के जरिए निपुण है तो जो आपको अपने लिए मुश्किल लगे उस मामले में दूसरे व्यक्ति को ठिकाने लगाने में आपको कोई कठिनाई नहीं होगी। दूसरे को कष्ट होता है तो उसकी बला से। वह क्यों आपकी तरह आधुनिक तर्कों से निपुण नहीं है ! युद्ध में ‘शून्य मृत्यु’ का सूत्र सिर्फ पश्चिम की सेनाओं के लिए होता है। जिन अफगानियों, फिलिस्तीनियों को वे अपने बमों से मार देते हैं इसके लिए वे खुद अपने पिछड़ेपन की वजह से दोषी हैं। जैसे सुरक्षा को प्राथमिकता दे कर चलने वाले प्रेम की अवधारणा में हर बात सुरक्षा के नियमों से तय होती है, अर्थात् उन लोगों के लिए कोई जोखिम नहीं है जिनके पास एक अच्छी बीमा पॉलिसी है, अच्छी सेना है, बेहतरीन पुलिस बल हैं, निजी सुखवाद की एक अच्छी मनोवैज्ञानिक धारणा है। और जिनके पास ये सब नहीं है, उनके लिए सिर्फ जोखिम ही जोखिम है।
आज के विज्ञापनों में एक ही बात को रटा जाता है कि आपके आराम और सुरक्षा को खयाल में रखते हुए ये सेवाएं दी जाती है। शहरों के फुटपाथ पर गड्ढों से आपको बचाने के उपाय हो या पुलिस की चौकसी, सब आपके लिए है।
बाद्यू कहते हैं कि बीमा पॉलिसी से मिलने वाली सुरक्षा और एक बंधे हुए ढर्रे पर चल कर खुश रहना — ये दोनों ही प्रेम के शत्रु है जिनसे मुकाबला करने की जरूरत है। इसके साथ ही वे उन स्वछंद सुखवादियों का जिक्र करते हैं जिनके अनुसार ‘प्रेम एक निर्रथक जोखिम है। इस प्रकार आपके सामने या तो एक सुनियोजित विवाह का विकल्प है या ऐसे कामुक जीवन का विकल्प जिसकी उत्तेजनाओं से यदि आप लापरवाह हो जाए तो उसमें सुख ही सुख है। प्रेम के इस प्रकार के एक दुष्चक्र में फंसे होने की वजह से ही बाद्यू ने कहा था कि प्रेम पर खतरा है।
“दर्शनशास्त्र का दायित्व है कि वह प्रेम के पक्ष में खड़ा हो।
कवि रुम्बोह (Rimbaud) ने इसीलिए इसे फिर से अर्जित करने की जरूरत की बात कही थी। यह कोई सुरक्षात्मक कार्रवाई नहीं हो सकती कि यथास्थिति बनी रहे। दुनिया में हर रोज नई घटनाएं घट रही है और प्रेम को भी अपनी नूतनता की शक्ति के साथ सामने आना होगा। सुरक्षा और आराम की तुलना में इसके जोखिम और साहसिकता के तत्त्व को फिर से अर्जित करना होगा।
—अरुण माहेश्वरी
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