असगर अली इंजीनियर : एक असाधारण व्यक्तित्व का असाधारण सफर

hastakshep
14 May 2020
असगर अली इंजीनियर : एक असाधारण व्यक्तित्व का असाधारण सफर असगर अली इंजीनियर : एक असाधारण व्यक्तित्व का असाधारण सफर

"बड़े शौक़ से सुन रहा था ज़माना,

तुम्हीं सो गए दास्तां कहते-कहते"।

’’हमारा संघर्ष यही होना चाहिए कि दुनिया में सामाजिक न्याय हो, भेदभाव खत्म हो, सबके साथ इंसाफ हो, सबकी जरूरतें पूरी हों। हमें इस लड़ाई को लड़ते रहना है, सभी के साथ मिलकर, लगातार। ऐसा नहीं कि मैं सिर्फ इस्लाम के नाम पर लडूं, आप सिर्फ हिंदू धर्म के नाम पर लड़ें, कोई बौद्ध धर्म के नाम पर लड़े, और कोई ख्रीस्त धर्म के नाम पर-- नहीं हम सबको साथ आना चाहिए। क्योंकि हम, आप और बाक़ी बहुत सारे यही कह रहे हैं कि सामाजिक न्याय हो,नफरत खत्म हो, गैर बराबरी खत्म हो, भाईचारा हो, जो इस गैर बराबरी को बढ़ावा देने वाले हैं उन सभी के खिलाफ हमें एकजुट होकर लड़ना होगा। यही देश भक्ति है और सबसे बड़ी इबादत भी।’’ (डा. असग़र अली इंजीनियर)

असग़र अली इंजीनियर बहुत बारीकी से इतिहास का अध्ययन किया था | Asghar Ali Engineer had studied history very closely

असग़र अली इंजीनियर साहब को मैं पिछले 30 वर्षों से जानता हूं। मैंने उनके साथ कई गतिविधियों में भाग लिया है और अनेक यात्राएँ की हैं। देश के दर्जनों शहरों में मैं उनके सेमिनारों, कार्यशालाओं, सभाओं और पत्रकार वार्ताओं में साथ न केवल रहा हूँ वल्कि आयोजन भी किया हूँ। उनका बोलने का अंदाज़ निराला था और जिस भी विषय पर वो बोलते थे उस पर उनकी ज़बरदस्त पकड़ होती थी।

उनके बोलने के बाद जो सवाल उठते थे उनका जवाब देने में उन्हें महारत हासिल थी। अनेक स्थानों पर श्रोता उनसे भड़काने वाले सवाल पूछते थे, मगर उनका जवाब वो बिना आपा खोये देते थे। वे अपने गंभीर,सौम्य और शांत स्वभाव से अपने तीखे से तीखे आलोचक का मन जीत लेते थे।

Asghar Ali Engineer, great secular scholar and social thinker

उन्होंने दुनिया में कट्टरपन के खिलाफ सद्भावना के लिए, मजहबी नफरत के खिलाफ अमन के लिए, सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ भाईचारे के लिए, सामाजिक अन्याय के खिलाफ इंसाफ के लिए अपनी पूरी जिंदगी वक़्फ़ कर दी। पूरी दुनिया में उनकी ख्याति एक महान धर्मनिरपेक्ष विद्वान एवं सामाजिक चिंतक के रूप में थी। उन्होंने इतिहास का अध्ययन भी बड़ी बारीक़ी से किया था। गांधियन मूल्य, साझी विरासत, सेकुलरिज्म, इस्लामी दर्शन और सूफिज्म उनका पसन्दीदा क्षेत्र था।उनकी मान्यता थी कि इतिहास से हमें सकारात्मक सबक़ सीखने चाहिये और इतिहास ही हमें अन्याय का विरोध करने की ताकत भी देता है।

Asghar Ali Engineer loved fine food and Sufi music.

इंजीनियर साहब को बढ़िया खाना और सूफी संगीत बहुत पसंद था। अक्सर मैं खुद उन्हें एयरपोर्ट पर लेने जाता तो मिलते ही पूछते अरे भाई तुम्हारे मीनू में नॉनवेज भी है क्या और हम नॉनवेज खाने निकल पड़ते। उनके खाने के मीनू में फल और पान का होना लाजिमी था। पान खाकर मुस्कुराते हुए उनका चेहरा बड़ा सुहाना लगता था।

एक बार गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद में कार्यक्रम के दौरान उनकी तबीयत खराब हो गयी और उन्हें वापस मुम्बई जाना पड़ा। ऐसे हालात में भी जाते जाते कहते गए कि आरिफ़ अहमदाबाद स्टेशन के सामने एक रेस्टोरेंट है जो बेहतरीन नॉनवेज खाना देता है। तुम वहां जाकर जरूर खाना। उन्हें देश-दुनिया के नॉनवेज रेस्टोरेंट पता थे।

इतिहास से जुड़े होने के नाते अक्सर मुझसे तमाम सवाल करते थे। एक बार गांधी पर बातचीत चली तो बताया कि आज गांधी ही अकेला दिया(चिराग) है जो मुल्क में छाए अंधेरे को रोशनी में बदल सकता है। गांधी को पढ़ो बार बार पढ़ो तुम देखोगे की तुम्हारे जीवन में बहुत तब्दीली आ जायेगी और मैंने गांधी साहित्य को पढ़ना शुरू किया।

काश आज इंजीनियर साहब होते तो मैं बड़े फख्र से कहता कि आप के अल्फ़ाज़ बिल्कुल सच थे।

फिरकापरस्ती और गैर बराबरी के खिलाफ आजीवन संघर्षरत डॉ. असगर अली इंजीनियर अब हमारे बीच नहीं है। मगर सभ्य समाज में इंसानियत की स्थापना के लिए, मोहब्बत की जो मशाल उन्होंने जलाई है जब तक दुनिया क़ायम है रौशन रहेगी। हर तरह के कट्टरपन, जातिवाद, हिंसा और सामंतवाद के खिलाफ डॉ. इंजीनियर ने अपनी आवाज बुलंद की है। कई बार वे हमसे उन बातों का भी जिक्र करते जो उनकी निजी जिंदगी में बदलाव लाने में महत्वपूर्ण रहे है यहां तक कि अपने वालिद और उनके बीच हुई बातों का भी जिसने उनकी जिंदगी बदल दी।

असग़र अली इंजीनियर विचारक एवं चिंतक होने के साथ-साथ जमीनी हकीकत से रूबरू ऐसे एक्टिविस्ट थे जिन्होंने अनेक साम्प्रदायिक दंगों के दौरान न केवल उसके वजूहात का पता लगाया बल्कि आने वाले वक्त की चुनौतियों को भी बताने की कोशिश की। आज़ादी के बाद अनेक दंगों का उन्होंने बारीक़ी से अध्ययन किया है। वो उन स्थानों पर खुद जाते थे जहाँ दंगों के दौरान बेगुनाहों का ख़ून बहा हो। वे इन दंगों की पृष्ठभूमि को पैनी नज़र से देखते थे। वे उन दंगों से सबक सीखते भी थे और दूसरों को भी सिखाते थे।

Biography of asghar ali engineer in hindi

डॉ. असगर अली इंजीनियर का जन्म 10 मार्च 1939 को राजस्थान के एक कस्बे में एक धार्मिक बोहरा परिवार में हुआ था। उनमें बचपन से ही बोहरा समाज में व्याप्त कुरीतियों के प्रति ग़म ओ गुस्सा था। धीरे-धीरे इसने बगावत का रूप ले लिया।

डॉ असगर अली साहब के गुजारिश पर जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने बोहरा समाज में व्याप्त कुरीतियों की जांच के लिए एक आयोग गठित किया था। इस आयोग में जस्टिस तिवेतिया और प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नैयर थे।

आयोग ने पाया कि बोहरा समाज में एक प्रकार की तानाशाही व्याप्त थी। इस तानाशाही का मुकाबला करने के लिए डॉ असगर अली इंजीनियर ने सुधारवादी बोहराओं का संगठन बनाया। इस संगठन में सबसे सशक्त थी उदयपुर की सुधारवादी जमात।

बोहरा सुधारवादियों में डाक्टर असग़रअली इंजीनियर अत्यंत लोकप्रिय थे। हर मायने में वे उनके हीरो थे।

डॉ. असग़र अली इंजीनियर हिंदुस्तानी गंगा-जमनी तहज़ीब, संप्रभुता और विविधता में एकता के जबरदस्त हामी रहे हैं।

सेंटर फार स्टडी आफ सोसायटी एंड सेक्युलरिज्म के चेयरमैन और इस्लामिक विषयों के प्रख्यात विद्वान डॉ. असगर अली इंजीनियर की पहचान मजहबी कट्टरवाद के खिलाफ लगातार लड़ने वाले कमांडर के तौर पर मानी जाती रहेगी। उनका मानना था कि दुनियां में ’’कट्टरपंथ मजहब से नहीं सोसायटी से पैदा होता है’’ उनकी राय में ’’भारतीय मुसलमान इसीलिए अतीतजीवी हैं क्योंकि यहां के 90 फीसदी से ज्यादा मुसलमान पिछड़े हुए हैं और उनका सारा संघर्ष दो जून की रोटी के लिए है इसलिए उनके भीतर भविष्य को लेकर कोई ललक नहीं है’’। यही नहीं, हिंदू कट्टरपंथ की वजह बताते हुए वे कहते है कि ’’जब दलितों, पिछड़ों व आदिवासियों ने अपने हक मांगने शुरू किए तो ब्राहमणवादी ताकतों को अपना वजूद खतरे में नजर आने लगा और उन्होंने मजहब का सहारा लिया, ताकि इसके नाम पर सबको साथ जोड़ लें, लेकिन ये सोच कामयाब होती नजर नहीं आ रही थी इसलिए उनका कट्टरपंथ और तेजी से बढ़ता जा रहा है और जरूरी मुददों से लोगों का ध्यान हटाकर धर्म के नाम पर सबको एक करने की कोशिश करनी शुरू कर दी। यही इसकी बुनियादी वजह है’’।

उनकी जिन्दगी के आखिरी पांच वर्षों में शायद मैं उनके सबसे नजदीक रहा। हफ्ते में एक दो बार मोबाइल से बात हो जाती पर कभी फोन न कर पाऊं तो उनका फोन आ जाता और बरबस बोलते "कहाँ खो गए हो तुम" और फिर शुरू कर देते आजकल के हालात पर चर्चा। वो हमारे गुरु, मार्गदर्शक, हमदर्द न जाने क्या क्या थे। सेकुलरिज्म और साझी विरासत का पाठ हमने उन्हीं से तो पढ़ा है। कभी कही किसी भी विषय पर बोलना हो मैं उन्हें फोन करता कि इस पर क्या बोलूं तो एनसाइक्लोपीडिया की तरह घण्टों उस उनवान को समझाते जैसे किसी बच्चे को पढ़ा रहे हों।

हां मैं बच्चा ही तो था उनके इल्म का और वे सच मायने में इनसाइक्लोपीडिया ही थे।

इंजीनियर साहब ने औरतों खासकर मुस्लिम औरतों के आर्थिक सामाजिक हालात सुधारने के लिए बहुत काम किया । वे चाहते थे कि मुस्लिम समुदाय में भी उच्च शिक्षा में लड़कियां आगे बढ़ें और अरबी सहित तमाम भाषाओं का ज्ञान हासिल करें।

उनका ख्वाब था कि कुछ हिंदुस्तानी औरतें सामाजिक न्याय, बराबरी और औरतों के अधिकारों से संबंधित क़ुरान के रौशन पहलू को तर्जुमे के साथ आमजन तक पहुंचाने का ज़िम्मा उठाये।

वे कभी भी पहले से चली आ रही परम्परा और संस्कृति का अंधानुकरण करने में विश्वास नहीं रखते थे, बल्कि विभिन्न मुद्दों पर फिर से विचार करने और वर्तमान समय की जरूरतों के अनुसार इस्लाम की व्याख्या करने की कोशिश करते थे।

दुनिया का अनुभव बताता है कि आप एक राष्ट्र के स्तर पर क्रांतिकारी हो सकते हैं पर अपने समाज और अपने परिवार में क्रांति का परचम लहराना बहुत मुश्किल होता है। जो ऐसा करता है उसे इसकी बहुत भारी कीमत अदा करनी पड़ती है।असगर अली इंजीनियर को भी अपने बगावती तेवरों की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। उन पर अनेक बार हिंसक हमले हुए। उन पर काहिरा सहित अनेक भारतीय शहरों में कट्टरपंथियों द्वारा हमले हुए।

शरीयत, मुस्लिम औरत के हुक़ुक़ और कुरान पर उनकी समझ वैज्ञानिक थी। इस पर उन्होंने बहुत काम किया है। लखनऊ में मुस्लिम उलेमाओं के साथ इस विषय पर बुलाये गए एक सेमिनार में उन्होंने क़ुरान और हदीस की रोशनी में औरतें के हुक़ूक़ को बताया तो मुस्लिम विद्वान भी दंग रह गए पर उलेमा अपनी रिवायतों पर अडिग रहे और इंजीनियर साहब उनके रवैये से मायूस। बावजूद इसके हमने लखनऊ में एक शाम टुंडे और दूसरी शाम दस्तरख्वान में लजीज खाने का लुत्फ लिया और कुल्फी भी खाई।

डॉ असगर अली को जीवन भर उनके प्रशंसकों, सहयोगियों और अनुयायियों का भरपूर प्यार और सम्मान मिला। उन्हें देश-विदेश के अनेक सम्मान प्राप्त हुए। उन्हें एक ऐसा सम्मान भी हासिल हुआ जिसे अल्टरनेटिव नोबल प्राईज अर्थात नोबल पुरस्कार के समकक्ष माना जाता है। इस एवार्ड का नाम है ‘‘राईट लाइविलीहुड अवार्ड‘। यह कहा जाता है कि नोबल पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है जो यथास्थितिवादी होते हैं और कहीं न कहीं सत्ता-राजनीति-आर्थिक गठजोड़ द्वारा किए जा रहे शोषण का कम विरोध करते है। राईट लाइविलीहुड अवार्ड उन हस्तियों को दिया जाता है जो यथास्थिति को बदलना चाहते हैं और सत्ता में बैठे लोगों से टक्कर लेते हैं।

एक बार वे नार्वे से थकाऊ सफर करके बनारस आये और एयरपोर्ट से सीधे एक होटल में "मुस्लिम औरतों के हक़ : क़ुरान और हदीस की रोशनी में" विषय पर लेक्चर देने पहुँच गये। थके होने के बावजूद लगभग दो घण्टा बोलते रहे और जब सवाल जवाब का वक़्त आया तो कहा कि आरिफ़ तुम जवाब दे दो और मंच पर ही आंख बंद करके बैठे रहे। सेशन खत्म होने के बाद हमने पूछा कि हमने जवाब देने की कोशिश भर की तो बोले मैं भी वही जवाब देता जो तुमने दिया है। तुमने मुझे बेहतर ढंग से समझ लिया है। मेरे लिए उनके कहे शब्द किसी सर्टिफिकेट से कम नहीं।

उन्होंने पचास से भी अधिक किताबें और सैकड़ों आर्टिकल लिखा और अनेक विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि भी दी।

आखिरी दिनों में बहुत अधिक सफर करने से उनकी सेहत खराब होने लगी थी। मना करने के बावजूद कहते कि किसी ने इतने प्यार से बुलाया है कैसे न जाऊं। उनकी जिद के आगे हम सब लाचार। इंतकाल के एक महीने पहले मुम्बई में मुलाकात हुई तो बातों बातों में फिरकापरस्त ताकतों के बढ़ते हौसले पर चिंतित दिखे और कहा कि इस वक़्त बहुत काम की जरूरत है और मुझे सुकून है कि राम पुनियानी और तुम काम अच्छा कर रहे हो मुझे तसल्ली रहेगी कि काम रुकेगा नहीं। हम किससे गिला शिकवा करें कि आज अगर आप होते तो क्या सोचते कि फिरकापरस्त ताकतें आप के उस साझी विरासत और मोहब्बतों के हिंदुस्तान को नफरत और हिंसा में बदल दे रही है।

 

Dr. Mohd. Arif डॉ मोहम्मद आरिफ लेखक जाने माने इतिहासकार और सामाजिक कार्यकर्ता है Dr. Mohd. Arif Dr. Mohd. Arif डॉ मोहम्मद आरिफ लेखक जाने माने इतिहासकार और सामाजिक कार्यकर्ता है

14 मई 2013 को डॉ असग़र अली इंजीनियर ने इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह दिया। मुबई में 15 मई को उन्हें उसी कब्रिस्तान में दफनाया गया जहाँ उनके जिगरी दोस्त कैफी आज़मी व अली सरदार जाफरी को दफनाया गया था।

डॉ असगर अली इंजीनियर की मृत्यु से देश ने एक सच्चा धर्मनिरपेक्ष, नायाब विद्धान और निर्भीक एक्टिविस्ट खो दिया।

बेशक डॉ. इंजीनियर आज हमारे बीच नहीं है मगर इंसानी दुनिया से नफरत, गैर बराबरी और नाइंसाफ़ी मिटाने के लिए, उनके किए गए तमाम काम और कोशिशों का बोलबाला कायम रखने के लिए, उनके द्वारा छोड़े गए अधूरे काम को हमें आगे बढ़ाने की जरूरत है। फिरकापरस्त ताकतों के खिलाफ एकजुटता ही आज डा़ असग़र अली इंजीनियर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गयी,

इक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया।

डॉ मोहम्मद आरिफ

जाने माने इतिहासकार और सामाजिक कार्यकर्ता

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