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Atal ji had recognized Modi's tendency to spoil the atmosphere.
वरिष्ठ साहित्यकार सुन्दर लोहिया का यह लेख (This article by senior litterateur Sundar Lohia) हस्तक्षेप पर "अटल जी की नज़र में नरेन्द्र मोदी" (Atalji's opinion on Narendra Modi) शीर्षक से 10 जून 2013 को प्रकाशित हुआ था। वर्तमान समय में पाठकों की बहस के लिए उक्त लेख का संपादित रूप पुनर्प्रकाशित
क्या भाजपा अटल जी समर्थित राजधर्म के स्थान पर मोदी द्वारा प्रचारित राजधर्म स्वीकार कर रही है?
भाजपा पैराशूट पर गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी (Gujarat Chief Minister Narendra Modi) की उड़ान में पार्टी के दो संस्थापक नेताओं के समृति चिन्ह के तौर पर पोस्टर से फोटो तो गायब ही थे लेकिन भाषणों में भी विस्मृत करने से एक सवाल पैदा होता है कि क्या यह पार्टी अटल जी समर्थित राजधर्म के स्थान पर मोदी द्वारा प्रचारित राजधर्म स्वीकार कर रही है।
मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते थे अटल जी !
सन 2002 के गुजरात नरसंहार (Gujarat massacre of 2002) के कारण अटल बिहारी वाजपेयी काफी परेशान थे। उस समय के गोवा चिंतन शिविर (Goa Contemplation Camp) के बारे में जो तथ्य आज सामने आ रहे हैं उनके अनुसार अटल जी, मोदी को मुख्यमन्त्री के पद से हटाने के पक्ष में थे और तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी (The then Home Minister LK Advani) उन्हें बचाने में पार्टी हित देख रहे थे। अब पार्टी को लगता है कि उसके हित नरेन्द्र मोदी के हाथों सुरक्षित रह सकते हैं तो उन्होंने मोदी को कमान और मोदी को इस काबिल बनाने के लिये आडवाणी को सम्मान (respect for Advani) का नारा दिया है।
एक तरह से इस पूरे प्रकरण में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अपने प्रचारक की कुर्सी बचाने के उपलक्ष्य में पिचासी वर्षीय अडवानी को बैठक में न आने का अध्यक्षीय आदेश भिजवा कर उनका शायद समुचित सम्मान किया है।
अटल जी की नज़र में कैसे थे मोदी के कारनामे? | How were the exploits of Modi in Atal ji's eyes?
अटल जी की नज़र में मोदी के कारनामे राजनीति के अलावा साहित्य के क्षेत्र में भी पसन्द नहीं थे।
हिमाचल प्रदेश में उस समय भाजपा का शासन था। राज्यपाल हिन्दी साहित्य के विद्वान आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री थे। शायद अटल जी के सम्मान में हिमाचल के हिन्दी कवियों की एक विशेष गोष्ठी का आयोजन मनाली स्थित पर्वतारोहण संस्थान के सभागार में किया गया था।
भाषा संस्कृति विभाग की ओर से छह वरिष्ठ कवियों को कवितापाठ के लिये आमन्त्रित किया गया था, उनमें इन पंक्तियों का लेखक भी शामिल था। प्रदेश के कवियों के कविता पाठ के बाद जब अटल जी अपनी कविताएं पढ़ रहे थे और गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे राज्यपाल उन्हें कविताओं के चुनाव में मदद कर रहे थे तो दर्शक दीर्घा से एक गम्भीर आवाज़ आयी- मैं भी कविता सुनाना चाहता हूँ।
वैसे कविता गोष्ठी की गरिमा के अनुसार मुख्य अतिथि की कविता पाठ में इस प्रकार का व्यवधान साहित्यिक परम्पराओं के विपरीत माना जाता है लेकिन जब परम्परा को तोड़ने वाला व्यक्ति कद्दावर नेता हो तो अटल जी ने कहा, ‘चलो तुम भी पढ़ लो’।
अटल की कविता “गीत नये गाता हूँ’’ पर आपत्ति जताई थी मोदी ने
तब जो व्यक्ति मंच पर आया वह नरेन्द्र मोदी था। उसने पहले तो अटल की कविता “गीत नये गाता हूँ’’ पर एतराज़ जताया कि अटल जी को इस ढुलमुलपने से बाहर निकला चाहिये। उन्हें देश का निर्माण करना है।
उन्होंने एक लम्बा चौड़ा भाषण कविता की विषयवस्तु और कवियों की विचारधारा पर झाड़ दिया। अब पूरी बात तो ठीक से याद नहीं कि उन्होंने और क्या-क्या कहा लेकिन अटल का कहा आज तक ठीक तरह से याद है। इसका कारण है कि अटल के इस कथन ने मुझे उनका प्रशंसक बना दिया था। उन्होंने प्रधानमन्त्री के पद से अपने आपको अलग करके एक कवि की हैसियत से बहुत महत्वपूर्ण बात कही थी कि ‘राजनीति कभी-कभी कविता का माहौल बिगाड़ देती है।’
नरेंद्र मोदी ने भाजपा का राजनीतिक माहौल बिगाड़ दिया है
भाजपा के वर्तमान घटनाक्रम को देखते हुये तो लगता है कि नरेन्द्र मोदी ने पार्टी का राजनीतिक माहौल ही बिगाड़ दिया है।
आज के राजनीतिक परिदृश्य मुझे इस बयान की याद आयी। लगता है कि अटल जी मोदी के माहौल बिगाड़ने की प्रवृत्ति को पहचान गये थे। इसलिये जिस राजधर्म के निर्वहन की बात अटलजी कर रहे थे नरेन्द्र उसे बिगाड़ने में अपनी पूरी राजनीतिक ताकत लगा रहे थे। उस वक्त अडवानी देश के गृहमन्त्री थे उन्होंने ऐसा होने नहीं दिया। इसलिये भाजपा को अब जनता को यह बताना होगा कि उसका भावी प्रधानमन्त्री अटल जी के राजधर्म का पालन करेगा या नरेन्द्र मोदी के राजधर्म का ?
यही भाजपा एक लाईन का घोषणापत्र होगा जिस पर जनता अपने वोट का फैसला करेगी। शेष इबारत जनता ने पढ़ ली है कि भाजपा वहाँ-वहाँ दीनदयाल उपाध्याय का नाम जोड़ देगी जहाँ-जहाँ नेहरु का नाम काँग्रेस ने चिपकाया होगा। इसे वे परिवर्तन के तौर पर प्रचारित करेंगे।
भाजपा के भीष्म पितामह कहे जाने वाले लालकृष्ण अडवानी के लिये नरेन्द्र मोदी आर्मी ने शरशैया तैयार कर ही दी थी। इसमें अडवानी का पार्टी के सभी पदों से त्यागपत्र देकर उस पर लेट गये।
क्या हो गया अटल आडवाणी युग का अंत?
इसे कई राजनीतिक विश्लेषक अटल आडवाणी युग का अंत (End of Atal Advani era) और मोदी दौर की शुरुआत मान रह हैं तो कुछ इस घटनाक्रम में भाजपा का राजनीतिक पार्टी के रूप में अन्त सिद्ध हो सकता है। इसकी भनक गोविन्दाचार्य के बयान में पड़ गयी थी जब उन्होंने भाजपा और काँग्रेस को एक हो जाने का सुझाव दिया था।
कुछ इसी तरह का सुझाव अडवानी ने माकपा के साथ मिल कर काम करने की वकालत करते हुये कुछ समय पहले दिया था। दोनों नेताओं की राजनीतिक समझ संघ परिवार और मोदी समर्थक नगताओं के मुकाबले कहीं बहुत गहरी और व्यापक है। दोनों नेता इस पार्टी के अन्तर्कलह और अन्तर्विरोधों को अच्छी तरह समझते हैं।
सुन्दर लोहिया