लखनऊ, 6 जनवरी। भाकपा (माले) की राज्य इकाई ने कहा है कि रविवार रात जेएनयू में पुलिस की उपस्थिति में एक भाजपा नेता के साथ नकाबपोश गुंडों के हिंसक हमले से स्पष्ट हो गया है कि असली दंगाई कौन है। जेएनयू की घटना (#JNUattack) ने उत्तर प्रदेश सरकार को आईना दिखा दिया है। यदि सीएए-विरोधी प्रदर्शनों में यूपी में 19-20 दिसंबर को हुई हिंसा की निष्पक्ष जांच हो, तो ऐसी ही सच्चाई सामने आयेगी।
यह बात भाकपा (माले) के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने आज जारी एक बयान में कही। उन्होंने कहा कि जेएनयू में छात्रों-शिक्षकों पर एबीवीपी के नेतृत्व में चेहरा छुपाये गुंडों के प्राणघातक हमले के खिलाफ भाकपा (माले) सोमवार को अन्य संगठनों व नागरिकों के साथ मिल कर उत्तर प्रदेश समेत देशभर में प्रतिवाद कर रही है।
कहा कि जामिया मिल्लिया में तो पिछले दिनों लाइब्रेरी में घुसकर निर्दोष छात्रों की बर्बर पिटाई करने के लिए पुलिस को किसी अनुमति की जरूरत नहीं पड़ी थी, लेकिन जेएनयू में अनुमति के नाम पर पुलिस ने हमलावर गुंडों को पौने पांच घंटे तक हिंसा करने की छूट दे दी। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने त्वरित पुलिस सहायता के लिए देश भर में 112 फोन नंबर जारी किया है, लेकिन जेएनयू में जब छात्रों-शिक्षकों के सर फोड़े जा रहे थे, तब गृह मंत्रालय की नाक के नीचे और उससे संचालित दिल्ली पुलिस कहां थी। हमले जारी रहने देने के लिए विवि प्रशासन भी इंतजार करता रहा और इसे रोकने या घायलों को अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था करने की बजाय मूक दर्शक बना रहा।
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These attacks were pre-planned and had high levels of collusion, ranging from the Home Ministry to the JNU Vice Chancellor and top police officers.
उन्होंने कहा कि इससे स्पष्ट है कि ये हमले पूर्व नियोजित थे और इसमें उच्च स्तरों पर मिलीभगत थी, जिसमें गृह मंत्रालय से लेकर जेएनयू के कुलपति और पुलिस के आला अधिकारी शामिल हैं। ऐसे में गृह मंत्री अमित शाह और जेएनयू के कुलपति को अविलंब इस्तीफा देना चाहिए। दोषी दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए और हमलावरों को गिरफ्तार कर सजा देनी चाहिए।