कहना न होगा, प्रभात पटनायक की समस्या आधार और अधिरचना के बारे में चली आ रही तथाकथित मार्क्सवादी अवधारणा से जुड़ी हुई समस्या है, जिसमें सामाजिक विकास में अर्थनीति को आधार और निर्णायक माना जाता है और बाक़ी तमाम विषयों को अर्थनीति के अंतर्गत, अधीनस्थ।
Author: अरुण माहेश्वरी
प्रतिवाद को क्या शब्दों का अभाव !
चीन की चित्रात्मक भाषा में एक ही वर्तनी के भिन्न उच्चारण से शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं। मसलन् banana skin को फेंको को ही भिन्न रूप में उच्चारित करने पर ध्वनित होता है — शी जिन पिंग को फेंको। फुटबाल विश्व कप के खेलों में बिना मास्क पहने दर्शकों की तस्वीरें भी वहां कोविड के प्रतिबंधों के प्रतिवाद का रूप ले चुकी है।
अपने उद्देश्य की सही दिशा में सफलता से आगे बढ़ रही है — भारत जोड़ो यात्रा
‘भारत जोड़ो यात्रा’ को भारत के बहुलतावाद और सर्वधर्म सम भाव पर आधारित धर्मनिरपेक्ष राज्य के मुद्दों को दृढ़ता के साथ सामने लाना है,
गालियाँ और मोदी जी ! ओह माई गॉड! इन सज्जन को परेशानी क्या है?
मोदी जी की छवि झूठ बोलने वाले मसखरे की होती जा रही है. अक्सर हर थोड़े दिनों के अंतराल पर मोदी जी गालियों और कुत्साओं की गलियों में भटकते हुए पाए जाते हैं। या तो वे खुद अन्य लोगों को नाना प्रकार की गालियों से नवाजते हुए देखे जाते हैं, या अन्य की गालियों की गंदगी में लोटते-पोटते, आनंद लेते दिखाई देते हैं।
विमर्श के लिए ज़रूरी नहीं होते हैं शब्द !
जब सोशल मीडिया नहीं देखती हैं गीतांजलि श्री तो जवाब किसे दे रही हैं? लकान का ‘बिना शब्दों का विमर्श‘ और गीतांजलि श्री का व्यवहार.
‘दक्षिण रुपये पैदा करता है और उत्तर बच्चे’ : द इकोनॉमिस्ट
भारत के आर्थिक भूगोल पर द इकोनॉमिस्ट पत्रिका की डरावनी रिपोर्ट. ‘The Economist‘ के शब्दों में गोवा और बिहार के लोगों के जीवन स्तर में उतना ही फ़र्क़ है जितना दक्षिणी यूरोप और सब-सहारन अफ्रीकी देशों के लोगों के जीवन-स्तर के बीच में है।
‘अनहद’ का गांधी विशेषांक : सत्ता के नैतिक विमर्श में हमेशा बने रहेंगे गांधी
सिनेमा, पत्रकारिता, साहित्य आदि अलग-अलग सांस्कृतिक विधाओं में गांधी और आजादी की लड़ाई के वक्त के अन्य बड़े नायकों के साथ गांधी के तुलनात्मक अध्ययन जैसे नाना विषयों पर भी कई लेख इस अंक में शामिल किये गए हैं, जो इस अंक को बहुत मूल्यवान और संग्रहणीय बनाते हैं।
राहुल : बिना अवरोधों के कोई गांधी नहीं बन सकता
वे कौन लोग हैं जो भारत जोड़ो यात्रा को तोड़ना चाहते हैं? सारी तकलीफों से पार जाने पर ही राहुल को ‘गांधी’ मिलेंगे।
गांधी जी और सत्य और अहिंसा
गांधी जयंती के मौक़े पर सत्य, हिंसा, अहिंसा पर चंद बातें…सचेत अहिंसा को भी साधन का अभिन्न अंग नहीं माना जा सकता है। जब साध्य की शुद्धता के प्रति अटूट निष्ठा ही सर्वोपरि हो तो साधन हिंसक-अहिंसक किसी भी सचेत उपक्रम का क्या काम !
‘राजस्थान प्रकरण’, कांग्रेस, व्यक्ति और संगठन के प्रश्न के बीच एक नई कांग्रेस का उदय जरूरी है
आज के समय में सांप्रदायिक फासीवाद की कठिन चुनौती के मुकाबले में सक्षम एक नई कांग्रेस का उदय जरूरी है और वह ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की तरह के जन-संवाद के प्रभावशाली कार्यक्रमों के बीच से ही संभव हो सकता है।
‘भारत जोड़ो यात्रा’ का एक राजनीतिक प्रतिफलन है फतेहाबाद में विपक्ष की एकता भी
हम ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के समानांतर सांप्रदायिक फासीवाद के खिलाफ भारत के विपक्ष की व्यापकतम एकता के कांग्रेस, वाम और नीतीश आदि के फतेहाबाद प्रयत्नों के आगे और सुफल की अधीर प्रतीक्षा करेंगे।
‘भारत जोड़ो यात्रा’ सारी दुनिया में फासीवाद के खिलाफ जनसंघर्ष का एक नायाब उदाहरण होगी
‘भारत जोड़ो यात्रा’ कांग्रेस को मज़बूत करने के साथ ही जनतंत्र मात्र को बचाने की भी यात्रा है। यह समय इस मुग़ालते में रहने का नहीं है कि सांप्रदायिक फासीवाद को महज़ संसदीय राजनीति की सीमाओं में, चुनावी जोड़-तोड़ की राजनीति से पराजित किया जा सकता है।
भारत जोड़ो यात्रा : राजनीति के संक्रमण का एक नया बिंदु
भारतीय राजनीति के इतिहास की सबसे लंबी यात्रा तमिलनाडु के कन्याकुमारी से, तीन समुद्रों के मिलन की उच्छल तरंगों की गर्जना के बीच से शुरू
संघ का मोदी-विहीन एनडीए ! नरेंद्र मोदी से पिंड छुड़ाना चाहता है RSS?
‘आरएसएस की बिसात’ क्या कोरा मतिभ्रम नहीं है ! कल की पुण्य प्रसून वाजपेयी की वार्ता का विषय दिलचस्प था — संघ का मोदी-विहीन एनडीए
आजादी का अमृत महोत्सव : भाजपा का दायरा सिकुड़ गया है, विपक्ष खिल उठा है
आजादी का अमृत महोत्सव : बिहार में फासीवाद के विकल्प का नया संधान Arun Maheshwari on Nitish Phenomenon आजादी की 75वीं सालगिरह का सप्ताह और
पुरस्कारों के लिये सर्वथा निरापद एक सरियलिस्ट उपन्यास : ‘रेत समाधि’
प्रेमचंद जयंती पर एक कथा-विमर्श (A story discussion on Premchand Jayanti) आज कथा सम्राट प्रेमचंद की 143वीं जयंती का दिन है। सम्राट, अर्थात् हेगेलियन अवधारणा
वियतनाम की क्रांति की योद्धा मैडम बिन्ह और भारत
वियतनाम की क्रांति में भारत का सहयोग वियतनाम की क्रांति की योद्धा मैडम बिन्ह के भारत की गरीबी के विषय में विचार वियतनाम की क्रांति
नफरत के खिलाफ विपक्ष एक साथ, चुप हैं मौन मोदी
देशबन्धु में संपादकीय आज (Editorial in Deshbandhu today) देश में सांप्रदायिक हिंसा पर संपादकीय | Editorial in Hindi on communal violence in the country क्या
सीपीआई(एम) की 23वीं कांग्रेस : सांप्रदायिक फासीवाद के खिलाफ नई वामपंथी रणनीति
सीपीआई(एम) की 23वीं कांग्रेस | Review of 23rd Congress of CPI(M) सीपीआई(एम) की 23वीं कांग्रेस : सांप्रदायिक फासीवाद के खिलाफ निर्द्वंद्व भाव से संघर्ष की
परंपरा के अध्ययन के निर्जीव अकादमिक ढाँचे की भेंट चढ़ा रमेश कुंतल मेघ का ग्रंथ मध्ययुगीन रस-दर्शन और समकालीन सौन्दर्यबोध
Arun Maheshwari on Ramesh Kuntal Megh (‘बनास जन‘ पत्रिका का 52वां अंक हिंदी के लब्धप्रतिष्ठ वयोवृद्ध आलोचक, सौन्दर्य चिंतक श्री रमेश कुंतल मेघ के कृतित्व
हिंदी का लेखक-प्रकाशक विवाद : क्या साहित्य समाज में अप्रासंगिक होता जा रहा है ?
हिंदी का लेखक-प्रकाशक विवाद : साहित्य और जीवन के भ्रम और यथार्थ Arun Maheshwari on writers-publisher issue Hindi writer-publisher controversy: the illusions and realities of