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Ban on Chinese apps: the helplessness and flattery of not being able to give proper answers to China?
गलवान घाटी में बीते दिनों 20 भारतीय जवान के शहीद होने और सैटेलाइट तस्वीरों के अनुसार गलवान घाटी के झड़प वाले स्थान, पैंगोंग झील के निकटवर्ती स्थानों पर चीनी सैनिकों के बड़ी संख्या में जमावड़े के बीच आखिरकार भारत सरकार अपना विरोध जताने के लिए टिक-टॉक, वीचैट, यूसी ब्राउजर, कैम स्कैनर, ब्यूटी प्लस कैमरा सहित 59 चायनीज एप्प पर बैन लगाने का फैसला किया है। अब ये ऐप्स ऐंड्रॉयड और आईओएस,दोनों प्लैटफॉर्म्स पर प्रतिबंधित होंगे।
गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच शीर्ष स्तर पर सैन्य वार्ता होनी है ऐसे में सरकार के इस कार्यवाही को चीन के खिलाफ एक प्रतीकात्मक विरोध के रूप में देखा जा रहा और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए एक आपातकालीन उपाय के रूप में देखा जा रहा हैं।
लेकिन सवाल उठता है कि क्या वाक़ई हम इतने निर्बल हो गए हैं कि अपने 20 सैनिकों की शहादत का बदला ले पाने में कूटनीतिक और सैन्य दृष्टिकोण से सक्षम नहीं है ?
क्या देश के वीर जवानों की शहादत पर इस प्रकार चायनीज एप्प पर प्रतिबंध लगाने जैसे सूक्ष्म कार्यवाही से श्रद्धाजंलि अर्पित कर सरकार अपने जबाबदेही से मुँह मोड़ लेने का फैसला कर चुकी है ?
क्या हमारी राष्ट्रवादी भावनाएँ इतनी दुर्बल हो गई हैं कि देश के भौगोलिक क्षेत्र पर अतिक्रमण करने वाले चीन को माकूल जबाब देकर अपने जमीन पर अपना स्वामित्व स्थापित करने के बदले इस तरह अपनी छटपटाहट और बेचैनी का प्रदर्शन करना पड़े ?
इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय भारत सरकार के मुताबिक ये चायनीज ऐप्स भारत की संप्रभुता, एकता, सुरक्षा और व्यवस्था के लिए नुक़सानदेह है इस कारण इसपर प्रतिबंध आवश्यक था। आईटी मंत्रालय ने आईटी एक्ट के सेक्शन 69 A के तहत चाइनीज ऐप्स पर प्रतिबंध का यह फैसला किया है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार ने अपने बयान में कहा कि-
''हमें कई स्रोतों से इन ऐप्स को लेकर लगातार शिकायत मिली थी। एंड्रॉयड और आईओएस पर ये चायनीज ऐप्स लोगों के निजी डेटा में भी सेंधमारी कर रहे थे।"
सरकार ने अपने इस फ़ैसले को आपातकालीन उपाय और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ज़रूरी क़दम बताया है।
आईटी मंत्रालय भारत सरकार की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि-
'भारत के करोड़ों मोबाइल और इंटरनेट यूजर्स के हितों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है ताकि देश में साइबरस्पेस की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।"
सूचना और प्रसारण मंत्रालय के बयान ये स्पष्ट बतला रहे है कि सरकार का यह कदम करोड़ों भारतीय एंड्रॉयड स्मार्ट फोन और इंटरनेट यूजरों के साइबरस्पेस की सुरक्षा के लिए है तो फिर इसे सीमा पर तनाव के ख़िलाफ़ सरकार का एक कदम क्यो माना जाए ? और अगर ये ऐप्स भरतीय इंटरनेट यूजरों की सुरक्षित साइबरस्पेस के लिए है तो क्या इसकी जानकारी सरकार को अब हुई है ? क्या पहले इसकी जानकारी नहीं थी ? ऐसे चायनीज ऐप्स पूरे देश के करोड़ो स्मार्टफोन यूजरों के मोबाइल में इंस्टॉल हैं। इस पर पहले प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया गया जबकि अब इन ऐप्स का संक्रमण काफी फैल चुका है ?
सरकार द्वारा इन ऐप्स पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद अब ऐंड्रॉयड और आईओएस, दोनों प्लैटफॉर्म्स को अपने स्टोर्स ने इन ऐप्स को हटाना होगा, लेकिन जिन लोगों के मोबाइल पर ये ऐप्स इंस्टॉल्ड हैं, वे तब तक मौजूद रहेंगे जब वे उन्हें मैनुअली नहीं हटाएंगे। हालांकि, ऐप स्टोर से हट जाने के बाद वे अपने स्मार्टफ़ोन में इस्टॉल किए गए ऐप्स को अपडेट नहीं कर पाएंगे।
अब एक अहम सबाल यह भी है कि जो लोग VPN से बैन ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं और जिन करोड़ो लोगों के स्मार्टफोन में ये चायनीज ऐप्स पहले से इंस्टॉल है, उसका क्या ? क्या वह किसी तरह का खतरा नहीं है ?
जानकारी के लिए यह जान लेना आवश्यक है कि जिन लोगो के स्मार्टफोन,टैबलेट, पीसी में ये ऐप्स पहले से इंस्टॉल है, सरकार की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में उन्हें इन ऐप्स को अनइंस्टॉल करने की न तो कोई कानूनी बात कही गई है और न ही इन ऐप्स को अनइंस्टॉल करने की अपील की गई है।
सरकार के एक रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 2014 में भारत की कंपनियों में चीन की कंपनियों ने 51 मिलियन डॉलर निवेश किया था। लेकिन 2019 में बढ़कर यह निवेश 1230 मिलियन डॉलर हो गया। यानी 2014 से 2019 के बीच चीन ने भारतीय स्टार्टअप्स में कुल 5.5 बिलियन डॉलर का निवेश किया है। 2014 के मुकाबले 2020 में चीनी निवेश पाँचगुनी से अधिक हो गई है।
स्मार्टफोन बाजार की बात करें तो इसमें चीन की अकेले 70% से ज्यादा हिस्सेदारी है। भारत में स्मार्टफोन का बाजार करीब 2 लाख करोड़ रुपए का है और चीन की स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियों ने इस पर अपनी पूरी पकड़ बना ली है। ओप्पो, श्याओमी और रेडमी जैसे चाइनीज ब्रैंड ने 70% से ज्यादा मोबाइल मार्केट पर अपना कब्जा कर रखा है। ऑनलाइन शॉपिंग के समय घण्टे भर में चाइनीज स्मार्टफोन आउट ऑफ स्टॉक हो जाते हैं। आखिर इस पर प्रतिबंध कब ?
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(स्वतन्त्र टिप्पणीकार एवं शिक्षाविद)
अलीबाबा, पेटीएम, वीवो अप्पो जैसी चायनीज कम्पनियां प्रतिबंध से बाहर क्यों ? मालूम हो कि इन चायनीज कम्पनियों द्वारा कोरोना संकट के कारण उतपन्न परिस्थितियों से मुकाबला के लिए गठित "पीएम केयर्स फंड" में मोटी रकम जमा की गई है। पीएम केयर्स फंड पर शुरू से ही प्रश्नचिन्ह उठते रहे है और विपक्ष द्वारा इसे घपलेबाजी का फंड कहा जा रहा है । पीएम केयर्स फंड का ऑडिट भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India) यानी कैग (CAG) के द्वारा नही होता है और यह RTI के दायरे से भी बाहर रखा गया है, जिसके कारण इस फंड की विश्वसनीयता पर गहरा प्रश्नचिन्ह कायम है। सरकार इस फंड की विश्वसनीयता पर उठने वाले सबालो का समुचित जबाब दे पाने में अब तक पूर्णतः असफल रही है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा भले ही 59 चायनीज ऐप्स पर बैन लगाकर चीन को एक संदेश देने की कोशिश की गई हो लेकिन सरकार का यह फैसला कई अहम सबाल का जबाब दे पाने में पूर्णतः है। कम से कम चीन द्वारा देश के भौगोलिक अतिक्रमण के प्रत्युत्तर में एक बेहद हल्का और अपर्याप्त फैसला है।
सरकार के इस फैसले में चीन को कड़ा संदेश कम और भारत सरकार द्वारा चीन के खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही न कर पाने की सरकार की लाचारी और छटपटाहट अधिक दिखाई पड़ रही हैं।
दया नन्द