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Bandook sanskrti : USA apanee hee neetiyon ka shikaar (Gun culture: America a victim of its own policies)
अमेरिका में स्कूलों पर 2012 के बाद हुई सबसे भयानक गोलीबारी
अमेरिका में स्कूलों पर हुई गोलीबारी पर संपादकीय
संदर्भ : एक बंदूकधारी ने सैन एंटोनियो से लगभग 80 मील (130 किमी) पश्चिम में एक शहर, उवाल्डे, टेक्सास में रॉब एलीमेंट्री स्कूल में उन्नीस बच्चों, दो शिक्षकों को मार डाला। (Gunman kills 19 children, 2 teachers at Robb Elementary School in Uvalde, Texas, a town about 80 miles (130 km) west of San Antonio.)
देशबन्धु में संपादकीय आज (Editorial in Deshbandhu today)
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अमेरिका एक बार फिर अपनी नीतियों का शिकार बना है, फिर से कुछ मासूमों का खून बहा है। टेक्सास प्रांत के यूवाल्डे शहर में 18 बरस के एक बंदूकधारी ने एक प्राइमरी स्कूल में अंधाधुंध गोलियां बरसाईं, जिसमें 18 बच्चों और एक शिक्षिका की मौत हुई है।
अपने घर में अपनी दादी को मार कर निकला था आरोपी
बताया जा रहा है कि सेल्वाडोर रामोस नाम का यह आरोपी (18-year-old suspect, identified as Salvador Ramos) इससे पहले अपने घर में दादी को मार कर निकला था।
घटनास्थल के पास ही मौजूद यूएस बॉर्डर पेट्रोल के कर्मचारियों ने मौके पर पहुंच कर हमलावर को मार गिराया।
पुलिस का मानना है कि यह हमला उसने अकेले ही किया था। वह बुलेटप्रुफ जैकेट पहनकर अपनी कार से स्कूल में दाखिल हुआ और गोलियां बरसाने लगा। इस हमले में मरने वाले अधिकतर बच्चे दूसरी, तीसरी और चौथी कक्षा के थे, जिनकी उम्र 7 से 10 साल के बीच बताई जा रही है। कई बच्चे इस हमले में घायल हुए हैं। घटना के वक्त स्कूल में 5 सौ के करीब बच्चे थे और अगर आरोपी को तुरंत मार गिराने में सफलता नहीं मिलती, तो न जाने और कितने मासूम उसकी वहशी सनक का शिकार बनते।
आरोपी रामोस के पास सेमी-ऑटोमेटिक राइफल और हैंडगन और काफी संख्या में मैगजीन्स थीं। यानी उसका इरादा काफी खतरनाक था।
साल 2012 के बाद से इसे स्कूलों पर हुई सबसे भयानक गोलीबारी बताया जा रहा है। इससे पहले 2012 में कनेक्टिकट के सैंडी हुक के प्राइमरी स्कूल पर हुए हमले में 20 बच्चों और छह कर्मचारियों की मौत हुई थी।
अमेरिका के स्कूलों में गोलीबारी की पांच महीने में 27 घटनाएं हो चुकी हैं
इस साल के अभी पांच महीने ही बीते हैं और अब तक अमेरिका के स्कूलों में गोलीबारी की 27 घटनाएं हो चुकी हैं। इससे 10 दिन पहले न्यूयॉर्क में सामूहिक गोलीबारी की एक घटना हुई थी जिसमें 10 लोग मारे गए थे।
American Society Victims of Violence
गोलीबारी की इस तरह की लगभग हर घटना के बाद हमलावर को मार गिराने में पुलिस को सफलता मिली है। इसे त्वरित इंसाफ मानकर शांत हुआ जा सकता है, या फिर इस बात से परेशान होने का वक्त काफी पहले ही आ गया था कि आखिर कब तक इस तरह की हिंसा का शिकार अमेरिकी समाज होता रहेगा।
हथियारों की इस संस्कृति (Weapons culture) को अमेरिका ने केवल अपने देश में ही बढ़ावा नहीं दिया है, बल्कि इसे बाकी जगहों तक फैलाने की भी चालाक कोशिशें हुई हैं। बच्चों के खिलौने उनकी कोमल भावनाओं के अनुकूल होने चाहिए, जो उनकी कल्पना को विस्तार दें साथ ही जीवन की सीख भी जिनसे मिले। इसमें बंदूकों, तोपों की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। लेकिन हथियार व्यापारियों के गिरोह अपने उत्पादों को बेचने के लिए बालमन के साथ खिलवाड़ करने से भी बाज़ नहीं आते।
बच्चों को हिंसक बना रही हैं खिलौना बनाने वाली कंपनियां?
बहुत सी खिलौना बनाने वाली कंपनियां खिलौने वाली बंदूकें बेचती हैं, मोबाइल और वीडियो गेम्स में अक्सर लड़ाई वाले खेल बच्चों को लुभाते हैं, जिनमें वे हाथ में बंदूक लिए दुश्मनों को मार गिराते चलते हैं। अपनी कल्पना में वे खुद को विजेता की तरह देखने लगते हैं, जिसके सामने पड़ते ही दुश्मन ढेर हो जाता है। इन बच्चों में से किसी के हाथ में अगर सचमुच की बंदूक आ जाए, तो फिर यह आशंका बढ़ जाती है कि अपनी कल्पना को सच करने की कोशिश वह करेगा।
अमेरिका में निजी हथियार से बड़े पैमाने पर हत्याएं इस हथियार संस्कृति की ही देन हैं।
बाइडेन की चिंता
इस बार की घटना पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन (US President Joe Biden) ने कहा है कि इस तरह की गोलीबारी पर बयान देते हुए वो 'थक' चुके हैं। बाइडन ने कहा,'इस तरह की मास शूटिंग दुनिया में कहीं और कम ही होती है। क्यों? दूसरे देशों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या है, उनके घरेलू विवाद हैं। लेकिन बार-बार इस तरह से वहां गोलीबारी नहीं होती जैसे अमेरिका में होती है। हम इस तरह की मार-काट के बीच क्यों रहना चाहते हैं?' हम ये लगातार क्यों होने दे रहे हैं? अब समय आ गया है जब इस पीड़ा को हमें एक्शन में बदलना होगा। हर माता-पिता के लिए, इस देश के हर नागरिक के लिए। हमें इस देश के हर चुने हुए अधिकारी को ये स्पष्ट करना होगा, कि अब कदम उठाने का समय आ गया है।'
बाइडेन ने आज जो चिंता व्यक्त की, वैसी ही चिंता करीब 50 साल पहले राष्ट्रपति लिन्डन बेन्स जॉनसन ने भी जतलाई थी। उन्होंने कहा था कि अमेरिका में अपराधों में जितने लोगों की जान जाती है उनमें मुख्य वजह फ़ायरआर्म्स होते हैं।' और 'ये मुख्य तौर पर इन हथियारों को लेकर हमारी संस्कृति के लापरवाही भरे रवैये और उस विरासत का परिणाम है जिसमें हमारे नागरिक हथियारबंद और आत्मनिर्भर रहते रहे हैं'।
अमेरिका में सामूहिक हत्याएं क्यों होती हैं?
यानी आधी सदी बाद भी अमेरिका के दो राष्ट्रपतियों की चिंता एक जैसी ही है और इस बीच जितने भी दूसरे राष्ट्रपति आए, उन्हें भी इस सवाल का सामना करना ही पड़ा होगा कि अमेरिका में इस तरह की सामूहिक हत्याएं क्यों होती हैं। और इस सवाल का जवाब भी उन्हें पता ही है कि आम नागरिकों की हथियारों तक आसान पहुंच।
स्विट्ज़रलैंड की एक रिसर्च संस्था ने स्मॉल आर्म्स सर्वे नाम के एक अध्ययन में अनुमान लगाया था कि 2018 में दुनिया भर में 39 करोड़ बंदूकें थीं। चार सालों में यह आंकड़ा और बढ़ चुका होगा, क्योंकि कोरोना के दो सालों में दुनिया में सरकारों ने मनमाने फैसले लिए हैं, जिनकी जानकारी आम जनता तक पहुंची ही नहीं है।
वैसे आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में हर 100 नागरिकों के पास 120.5 हथियार हैं, जबकि 2011 में ये आंकड़ा 88 था। अमेरिका में 1968 से 2017 के बीच बंदूकों से लगभग 15 लाख लोगों की जान गई है।
इस तरह की हत्याओं पर सरकार में बैठे लोग दुख प्रकट करते हैं, नागरिकों की सुरक्षा का वादा करते हैं, मगर समस्या का हल जानने के बावजूद उसे आजमाने की हिम्मत नहीं दिखा रहे हैं।
दरअसल हथियार रखने की छूट अमेरिका के लिए एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा है। बंदूकों पर नियंत्रण के लिए क़ानून में सख्ती की ज़रूरत पर 2020 में एक सर्वे हुआ था, जिसमें केवल 52 प्रतिशत लोगों ने इसका समर्थन किया, जबकि 35 प्रतिशत लोगों का मानना था कि किसी बदलाव की ज़रूरत नहीं और 11 प्रतिशत लोग ऐसे भी थे जिनका मानना था कि अभी जो क़ानून हैं उन्हें और नरम बनाया जाना चाहिए।
डेमोक्रेटिक पार्टी के 91 प्रतिशत समर्थकों ने लगभग एकमत से क़ानून को सख़्त किए जाने की हिमायत की, लेकिन रिपब्लिकन पार्टी के केवल 24 प्रतिशत समर्थक इसके पक्ष में थे।
अमेरिका में बंदूकों का समर्थन करने वाली एक बड़ी लॉबी है
दरअसल नेशनल राइफल एसोसिएशन (National Rifle Association) अमेरिका में बंदूकों का समर्थन करने वाली बड़ी लॉबी है। यह लॉबी अपने धनबल से अमेरिकी संसद के सदस्यों को प्रभावित करती है। इस लॉबी का ही प्रभाव है कि अमेरिका में हथियार रखने की छूट को लेकर बने कानून में कोई सख्ती नहीं बरती जा सकी है।
अब देखना होगा कि जो बाइडेन गोलीबारी पर बयान देने की अपनी थकान दूर करने के लिए इस कानून को जनता की सुरक्षा के लिए बदलते हैं या नहीं।
आज का देशबन्धु का संपादकीय (Today’s Deshbandhu editorial) का संपादित रूप साभार.