लोग कहते हैं कि,
सोचने से कुछ नहीं होता,
सिद्धान्त गढ़ने से भी,
और विचार करने से भी,
कुछ नहीं होता,
यह एक अर्ध सत्य है,
इस दुनिया में सोचने वाले,
विचार करने वाले,
सिद्धांत गढ़ने वाले,
चल दिये तो,
सब कुछ हो गया,
घोर अंधकार में भी,
सहर उग गया।
धरती हँस उठी,
आसमान गुनगुना गया।
अपना जम्बूद्वीप तो,
समनों की धरती है,
जिन्होंने हमें सनातन मंत्र दिया,
चलते हुए सोचने,
और सोचते हुए चलने का,
एक आदिम तंत्र दिया।
वे हमें सोचते हुए चलना
और चलते हुए सोचना सिखा गए
इस बिना पर वे हमें,
इस धरा पर,
चिंतक, यायावर
और सिरमौर बना गए।
विश्व के आदि गुरु तथागत ने,
सारनाथ की धरती से,
एक चक्र चलाया था,
सर्वहित कल्याण का,
राह बताया था।
बहुजन हिताय,
बहुजन सुखाय,
लोक कल्याण का,
पाठ पढ़ाया था।
आजीवन वह समन,
बोलता रहा,
डोलता रहा,
चलते हुए का चिंतन किया,
और चिंतन कर कर्म किया,
चिंतन को कर्म,
क्योंकि बिना कर्म के,
चिन्तन निष्फल है,अनुर्वर है।
और बिना चिंतन के कर्म,
दिग्भ्रम है,बर्बर है।
बिना सोच के राह,
हमें भटकाती हैं।
और बिना चले,
चिंतन हमने जड़ बनाती है।
इसीलिए मैंने अपनी सोच को,
अपना हमराह बनाया है।
और अपनी राह को
अपने सोच से सजाया है।
तपेन्द्र प्रसाद