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Bengali comrades strengthened BJP and fascist Manusmriti Raj, the country will have to pay a heavy price for it.
पश्चिम बंगाल के एग्जिट पोल (Exit poll of west bengal) जो भी बता रहे हों, नतीजे अलग भी हो सकते हैं। लेकिन मतदाताओं का ध्रुवीकरण भाजपा और भाजपा बिरोध के मध्य हुआ है।
साफ जाहिर है कि भाजपा विरोधी वोटरों ने ममता बनर्जी को वोट डाले हैं। वोटरों ने वाम को सिरे से खारिज कर दिया है।
भाजपा की संस्थागत राजनीति का मुकाबला खुद बेहद निरंकुश ममता नहीं कर सकतीं, इसलिए उनकी सरकार बनने से भी किसी को राहत नहीं मिलने वाली।
जनाधार और नेतृत्व में शून्य हो गए बंगाल के कामरेडों ने बंगाली वोटरों का मिजाज समझने में भारी भूल की है। हमारे वामपंथी मित्र इस बेहद जरूरी कटु सत्य कहने के लिए हमें माफ करें। लेकिन यह समझना बहुत जरूरी है कि मरे हुए वामपंथ में जान डाले बिना इस देश में किसी किस्म के राजनीतिक प्रतिरोध की कोई संभावना नहीं है।
कांटे की टक्कर में नतीजे क्या होंगे, सरकार किसकी बनेगी, यह 2 मई से पहले बताना जोखिम का मामला है।
दुःखद जो नतीजा सामने आया है वह यह है कि बंगाल ने वामपंथ को सिरे से खारिज कर दिया है।
कांग्रेस की जो भी स्थिति इससे पहले थी, वामपंथियों के साथ गठबंधन से वह भी खत्म है।
केरल में वामपंथ की लगातार दूसरी जीत तय है।
बंगाल के कामरेड भाजपा के उत्थान से इस खुशफहमी में थे कि उसे ममता को हराने का सुनहरा मौका मिला है।
कामरेडों ने मूर्खता की हद तक ममता के खिलाफ मुहिम जारी रखकर भाजपा की ही मदद की है। अब भी बंगाल में भाजपा विरोधी ताकतें मजबूत हैं, जिन्होंने भाजपा को हराने के लिए ममता का ही साथ दिया।
बंगाल में जल जमीन जंगल के आंदोलनों का दो सौ साल का इतिहास है। बंगाल में बौद्धमय बंगाल की विरासत के चलते जो प्रगतिशीलता है,जिसे 200 साल पहले हुए नवजागरण ने मजबूत किया, आजादी के बाद के वामपंथी नेतृत्व ने उसी आधार पर कांग्रेस का तख्ता उलटकर 35 साल तक राज किया।
ज्योति बसु के बाद वाम विचारधारा और विरासत के उलट मुक्तबाजारी विकास के तिलिस्म में कांग्रेस का पिछलग्गू बनकर बंगाल के कामरेडों ने बंगाल और त्रिपुरा में वामपंथ का सफाया कर दिया। केरल को छोड़ दिया जाए तो बाकी देश में वामपंथ को हाशिये पर डालकर, किसान और मजफुर आंदोलनों से दगा करके बाज़ारू बंगाली वामपंथियों ने भारत में फासीवाद की जड़ें मजबूत की है क्योंकि वे जन्मजात मनुस्मृति राज के ही समर्थक हैं।
बाकी देश इस सच को समझे या न समझे, बंगाल की जनता वामपंथी पाखण्ड को बहुत कायदे से समझ चुकी है। इस पाखण्ड से मुक्ति के बिना कोई बदलाव नहीं हो सकता।
ममता की सरकार फिर बनने से बंगाल या देश में न भाजपा की ताकत घटने वाली है और न महामारी की निरंकुश सत्ता खत्म होने वाली है।
हमारे लिए बंगाल का यह चुनाव भारतीय वामपंथ का शोकगीत ज्यादा है और देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
पलाश विश्वास
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जन्म 18 मई 1958
एम ए अंग्रेजी साहित्य, डीएसबी कालेज नैनीताल, कुमाऊं विश्वविद्यालय
दैनिक आवाज, प्रभात खबर, अमर उजाला, जागरण के बाद जनसत्ता में 1991 से 2016 तक सम्पादकीय में सेवारत रहने के उपरांत रिटायर होकर उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर में अपने गांव में बस गए और फिलहाल मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रेरणा अंशु के कार्यकारी संपादक।
उपन्यास अमेरिका से सावधान
कहानी संग्रह- अंडे सेंते लोग, ईश्वर की गलती।
सम्पादन- अनसुनी आवाज - मास्टर प्रताप सिंह
चाहे तो परिचय में यह भी जोड़ सकते हैं-
फीचर फिल्मों वसीयत और इमेजिनरी लाइन के लिए संवाद लेखन
मणिपुर डायरी और लालगढ़ डायरी
हिन्दी के अलावा अंग्रेजी औऱ बंगला में भी नियमित लेखन
अंग्रेजी में विश्वभर के अखबारों में लेख प्रकाशित।
2003 से तीनों भाषाओं में ब्लॉग