इसमें कोई संदेह नहीं है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भीड़ शामिल हो रही है। लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत की जनता इस 'अच्छे दिन' शासन में भारत में बड़े पैमाने पर बढ़ती गरीबी, भूख, बेरोजगारी, महंगाई, और उचित स्वास्थ्य देखभाल की कमी आदि से पीड़ित महसूस कर रही है, और उन्हें लगता है कि राहुल आशा की एक किरण हैं। एक मरते हुए आदमी की तरह एक तिनके को पकड़े हुए, वे सोचते हैं कि वह उनके संकट को कम करेगा।
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कुछ तथाकथित 'बुद्धिजीवियों', जो वास्तव में पूरी तरह से सतही हैं, कहते हैं कि 'धारा बदल गयी है'।
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उन्हें इस बात का एहसास नहीं है कि लोगों की समस्याओं का समाधान व्यवस्था के बाहर है, जबकि राहुल गांधी व्यवस्था का हिस्सा हैं। वह केवल प्यार फैलाने और नफरत को खत्म करने पर उपदेश देते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि बड़े पैमाने पर गरीबी और बेरोजगारी, आसमान छूती कीमतों, भारतीय जनता के लिए उचित स्वास्थ्य देखभाल और अच्छी शिक्षा का लगभग पूरी तरह से अभाव, आदि की वास्तविक लोगों की समस्याओं को कैसे हल किया जाए। मोदी को बदल कर राहुल को लाना केवल नेता का परिवर्तन होगा, लेकिन लोगों के सामाजिक-आर्थिक संकट का कोई अंत नहीं होगा।
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यह केवल आधुनिक दिमाग वाले देशभक्त नेताओं के नेतृत्व में एक शक्तिशाली दीर्घ जन क्रांति ही कर सकती है जो उनकी समस्याओं का समाधान करेगी, और एक राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था बनाएगी जिसमें भारतीय जनता को सभ्य जीवन मिले और उच्च जीवन स्तर का आनंद मिले।
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मुझे यह उर्दू शेर याद आ रहा है :
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मिरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
जस्टिस मार्कंडेय काटजू
लेखक सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश हैं।