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Bharat Jodo Yatra : क्या राहुल गांधीजी की तरह जोड़ पायेंगे भारत को?

नेशनल हेराल्ड : राहुल असरदार, भाजपा लाचार

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संकट में है कांग्रेस : तीन साल से नहीं है स्थायी अध्यक्ष

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137 साल पुरानी पार्टी कांग्रेस संकट में है। देश को आज़ादी दिलाने और आज़ाद महसूस कराने में जिस दल के सदस्यों ने अपना सर्वस्व दिया उसके नेता फिलहाल एक-एक कर पार्टी छोड़ रहे हैं। पार्टी तीन साल से स्थायी अध्यक्ष के बगैर है क्योंकि उसके नेता ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद छोड़ दिया था। इसके बावजूद सत्ता पक्ष इस दल से खौफ खाया हुआ रहता है और जब तब भारत से इसकी मुक्ति की कामना करता है। क्या इस दल से मुक्ति भारत को उसकी आज़ादी के लिए लड़े गए आंदोलन से भी मुक्त करने का आभास नहीं देती? ऐसी लड़ाई जिसके 75 साल के होने का उत्सव तो मना लेना चाहते हैं लेकिन 200 साल की औपनिवेशिक गुलामी के दौरान बहे खून और संघर्ष को सलामी देने से इंकार है।

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कोई एक मज़हब से घृणा को आधार बनाते हुए अपना रास्ता बनाता जाता है और फिर अंतत: विपक्ष से मुक्त करने के अभियान में लग जाता है।

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ख़ैर, व्यक्तिगत हमलों और मुक्ति की आवाज़ के बीच इस पार्टी यानी कांग्रेस ने दो ज़रूरी फै़सले लिए हैं। पहला, अध्यक्ष का चुनाव; और दूसरे भारत जोड़ो यात्रा।

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भाजपा से ज्यादा कांग्रेस के भीतर का एक समूह ज़्यादा परेशान

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सत्ता पक्ष थोड़ा सन्नाटे में ज़रूर है लेकिन कांग्रेस के भीतर ही एक समूह है जो इन निर्णयों से ज़्यादा परेशान दिखाई दे रहा है। वह बिफर रहा है, बिखर रहा है। इस रोड़ेबाजी को समझने के साथ महात्मा गांधी की उन दो बातों का जिक्र भी ज़रूरी होगा जो उन्होंने ऐसी ही परिस्थितियों में घिरने के बाद कही थीं।

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और आज़ाद हो गए गुलाम नबी आज़ाद

कांग्रेस उस समय से खूब चर्चा में है जब दशकों पुराने साथी और जी -23 के एक सदस्य गुलाम नबी आज़ाद ने पार्टी छोड़ दी। पार्टी औरों ने भी छोड़ी लेकिन आज़ाद की चर्चा कुछ ज़्यादा रही क्योंकि वे बोल भी खूब रहे हैं, उन पांच पन्नों के अलावा भी जो उन्होंने पार्टी छोड़ते समय लिखे थे। बेशक आपकी तल्ख़ी अपने दल से हो सकती है लेकिन पार्टी के भीतर होने जा रहे करेक्शंस पर उनका कहना कि 'सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया...', आज़ाद का किसी ऐलान की तरह मालूम होता है कि पार्टी अपना सब-कुछ लुटा चुकी है। शायद यह एक जाते हुए वरिष्ठ नेता की हताशा की ओर इशारा करता है।

अपने इंटरव्यू में दूसरी बात आज़ाद ने एआईसीसी के महासचिव जयराम रमेश के लिए कही, कि 'उनके तो दस-बारह डीएनए हैं, जो एक बार में करीब पंद्रह लोगों के लिए काम करते हैं।'

बहरहाल आज़ाद के जाने के बाद अब जी-23 में कितने सदस्य घट-बढ़ रहे हैं। यह बताना मुश्किल है लेकिन यह भी कड़वी सच्चाई है कि इन दो कांग्रेस में तालमेल बैठाना किसी भी पार्टी पदाधिकारी के लिए टेढ़ी राह है।

मनीष तिवारी ने तो अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया पर ही संदेह व्यक्त कर दिया है। उन्होंने कांग्रेस के चुनाव पदाधिकारी से उस निर्वाचक मंडल की सूची पते ठिकाने समेत मांग ली है। जवाब में कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति के मुखिया मधुसूदन मिस्त्री का कहना था कि चुनावी प्रक्रिया निष्पक्ष और कांग्रेस के संविधान के मुताबिक होगी। इन भीषण असहमतियों के बीच इक्कीस साल बाद होने जा रहे अध्यक्ष पद के लिए लड़ने के संकेत शशि थरूर ने दिए हैं।

बेहतरीन लेखक, तिरुअनंतपुरम से कांग्रेस के तीन बार के सांसद, यूएन के अवर महसचिव रहे शशि थरूर बढ़िया चयन हो सकते हैं लेकिन सवाल यह है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने जो कद अपना बना लिया है और जिस तरह देश की तमाम संवैधानिक संस्थाएं व्यक्ति विशेष से प्रभावित होकर काम कर रही हैं वहां क्या अपेक्षाकृत शांत शशि थरूर अपने संगठन में नई जान फूंक पाएंगे? शालीनता तो राहुल गांधी में भी कम नहीं है लेकिन पार्टी को इससे आगे भी कुछ चाहिए। अशोक गहलोत भी फेहरिस्त में हैं। वे केंद्र के फ़ैसलों पर टिप्पणी भी अक्सर करते हैं लेकिन देखना यह भी होगा कि गांधी परिवार किसके सर पर हाथ रखता है या फिर नहीं भी रखता है।

भारत जोड़ो यात्रा चुनाव के बीच और पार्टी के चुनाव यात्रा के बीच

चुनाव के बीच 'भारत जोड़ो यात्रा' है या इस यात्रा के बीच पार्टी के चुनाव हैं? यह संयोग है या सहयोग, समझना होगा। राहुल गांधी की 7 सितंबर से भारत जोड़ो यात्रा शुरू हो रही है और चुनाव के लिए 17 अक्टूबर की तारीख़ तय की गई है। कन्याकुमारी, तमिलनाडु से ही यह यात्रा शुरू होगी लेकिन इससे पहले राहुल गांधी श्रीपेरंबुदूर भी जाएंगे जहां उनके पिता राजीव गांधी की हत्या हुई थी।

117 नेताओं की सूची में एक नाम युवा और धारदार नेता कन्हैया कुमार का भी है। यात्रा के पड़ाव में बारह राज्य और दो केंद्र शासित प्रदेश होंगे। कांग्रेस इस यात्रा को आज़ादी की लड़ाई से भी जोड़ रही है। भारत यूं तो कई पद यात्राओं और एक रथ यात्रा का भी गवाह रहा है लेकिन मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा बनाने में जिस यात्रा का सबसे बड़ा योगदान था वह बापू की पदयात्रा थी।

बापू ने इस यात्रा में भारत की जो तस्वीर देखी बाद में वही आज़ादी के आंदोलनों की नींव बनीं। वे कहते थे 'आज़ादी के हर अहिंसावादी सिपाही को चाहिए कि कागज़ या कपड़े के एक टुकड़े पर 'करो या मरो' का नारा लिखकर उसे अपने पहनावे पर चिपका ले ताकि अगर वह सत्याग्रह करते-करते मारा भी जाए तो उसे उस निशानी द्वारा दूसरों से अलग पहचाना जा सके जो अहिंसा में विश्वास नहीं रखते।

कांग्रेस ज़रूर यात्रा को आज़ादी के आंदोलन से जोड़ कर बता रही है लेकिन जज़्बा बहुत मायने रखता है। यह जज़्बा ही शायद आज की मांग है जिसे सिविल सोसाइटीज़ ने भी समझा है और वे राहुल गांधी को अपना समर्थन दे रही हैं।

गौरतलब है कि अन्ना आंदोलन के समय भी सिविल संगठनों से जुड़े लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। सूचना के अधिकार (आरटीआई) आंदोलन में बड़ी भूमिका में रहीं एवं किसान शक्ति संगठन से जुड़ीं अरुणा राय का कहना है कि राहुल गांधी उसी सिद्धांत पर चल रहे हैं जिसको सिविल सोसाइटी मानती है। इसमें संवैधानिक मूल्य, समानता, बहुलतावाद आदि के मूल्य शामिल हैं।

राहुल गांधी की 'तपस्या' भारत जोड़ो यात्रा

यूं राहुल गांधी इस यात्रा को 'तपस्या' का नाम भी दे रहे हैं। तपस्या की ज़रूरत और बढ़ जाती है जब देश में नोटबंदी और कोरोना महामारी के बाद एक आंकड़ा सामने आता है कि साल 2021 में जिन लोगों ने आत्महत्या की है उनमें 25 फ़ीसदी दिहाड़ी मज़दूर हैं। यह कुछ ऐसा है जैसे व्यवस्था खुद को बेहतर साबित करने के लिए निरपराध और कमज़ोर की बलि ले रही हो। इस भयावह सच्चाई पर हुकूमत को गंभीर कदम उठाने चाहिए।

बात फिर से कांग्रेस के अध्यक्ष पद की, जिसके बारे में कभी बापू ने भी भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में कहा था- 'मुझे लोगों का नेता अथवा सेना की भाषा में कहें तो सेनापति कहा जाता है लेकिन मैं अपनी स्थिति को उस दृष्टि से नहीं देखता। किसी पर हुक्म चलाने के लिए मेरे पास प्रेम के अलावा और कोई अस्त्र नहीं। हां, मेरे पास एक छड़ी ज़रूर है जिसे आप एक झटके में ही तोड़ सकते हैं। ऐसे अपंग व्यक्ति से जब बड़े काम की ज़िम्मेदारी लेने के लिए कहा जाए तो उसे ख़ुशी नहीं हो सकती। आप उसमें मेरा हाथ तभी बंटा सकते हैं जब मैं आपके सामने सेनापति नहीं बल्कि एक विनम्र सेवक के रूप में आऊं।'

बेशक, अग़र कोई बापू के मार्ग पर चलते हुए सेवा ही करना चाहता है तो उसे यह संकल्प भी जनता तक पहुंचाना होगा या फिर ऐसी क़ाबिल संगठनात्मक शक्तियां बनानी होंगी जो देश में सिर्फ सत्ता की भूख से परिचालित होते फै़सलों को चुपचाप न देखे, उनका मुकम्मल विरोध करे। एक इंसान का अपनी ही गरिमा से नीचे गिरते जाना देशवासी को शर्म से भर रहा है, हर रोज।

वर्षा भंभाणी मिर्जां

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)

2024 में भाजपामुक्त भारत!

Web title : Bharat Jodo Yatra: Will Rahul be able to connect India like Gandhiji?

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