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गांधी के सपनों का भारत और मोदी के सपनों का इंडिया

भाजपा के फ्रंटल संगठन की तरह काम कर रहा है ईडी

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Bharat of Gandhi's dreams and India of dreams of Modi

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प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को गुजरात के अटकोट में एक रैली को सम्बोधित करते हुए कहा कि, 'हम गांधीजी के सपनों का भारत बनाने के कार्य में आठ साल से जुटे हैं। गांधीजी चाहते थे कि गरीबों, दलितों, पीड़ितों, आदिवासियों और महिलाओं को अधिक अधिकार मिले। हमारी सरकार इसी के लिए कार्य कर रही है। स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाएं हमारी सरकार की प्राथमिकताएं हैं और भारतीय संस्थानों से हम अपनी जरूरतों की पूर्ति में लगे हैं।'

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इसके बाद की रैली में मोदी ने गांधीजी के साथ-साथ सरदार पटेल का भी जिक्र किया और उनके सपनों के भारत की बात भी कही। ये दोनों ही नेता गुजरात के थे, जहां के मोदी भी हैं।

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प्रधानमंत्री यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार गरीबों को मकान उपलब्ध करा रही है और अभी तक हम तीन करोड़ से ज्यादा लोगों को आवास दे चुके हैं। करोड़ों लोगों को बिजली और जल प्रदाय योजना का लाभ मिल रहा है। जहां अनाज की समस्या है, वहां खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है। मुफ्त में गैस उपलब्ध कराई जा रही है। गरीबों का इलाज मुफ्त किया जा रहा है और हर भारतीय के लिए मुफ्त टीकों की व्यवस्था की गई है।

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सावरकर जयंती पर पूज्य बापू की याद!

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pm narendra modi

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प्रधानमंत्री ने ये बातें उस दिन कहीं, जिस दिन पूरे देश में बड़े पैमाने पर सावरकर की जयंती मनाई जा रही थी। प्रधानमंत्री के भाषण में सरकार की उपलब्धियों का बखान (Government's achievements) भी इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि गुजरात में इसी वर्ष दिसम्बर तक विधानसभा चुनाव होने हैं।

और क्या कहा पीएम मोदी ने?

प्रधानमंत्री ने कहा, ''जब हर नागरिक तक सुविधाएं पहुंचाने का लक्ष्य होता है तो भेदभाव भी खत्म होता है, भ्रष्टाचार की गुंजाइश भी नहीं रहती, न भाई-भतीजावाद रहता है न जात-पात का भेद रह जाता है। इसलिए हमारी सरकार मूलभूत सुविधाओं से जुड़ी योजनाओं को नागरिकों तक पहुंचाने में जी-जान से जुटी हुई है।''

मोदी सरकार के आठ साल आठ योजनाएं

पिछले 8 वर्षों में मोदी सरकार जिन 8 योजनाओं में भारी सफलताओं का दावा करती है, उन सभी योजनाओं को आखिरी आदमी के फायदे की बताती है। इन योजनाओं में गरीबों को रोजगार के लिए कर्जा देने, बीमा कराने और रसोई गैस से जुड़ी योजनाएं तक शामिल हैं।

मोदी सरकार का कहना है कि मुद्रा योजना में लोगों को कम ब्याज पर धन मिला है जिससे वे खुद का रोजगार कर पा रहे हैं। उज्ज्वला योजना में महिलाओं को रसोई गैस सिलेंडर वितरित किये गये, जिससे उन्हें धुएं से निजात मिली। दो हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसानों के लिए पीएम किसान सम्मान निधि शुरू की गई, जिसमें सरकार किसान परिवारों को हर महीने 500 रुपये दे रही है। ये रुपये सीधे किसानों के पास पहुंचाए जा रहे हैं।

सरकार का दावा है कि इस योजना से किसानों को बड़ी राहत मिलेगी। ऐसे ही, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना में उन लोगों को कर्ज दिया जा रहा है, जो गैरकार्पोरेट व्यवसायी हैं। छोटे-छोटे कारोबारियों को सरकार ने 10 लाख रुपये तक का कर्ज अपना निजी कारोबार शुरू करने के लिए दिये हैं। इस योजना की भी तीन श्रेणियां हैं। शिशु योजना में 50 हजार रुपये तक, किशोर योजना में 5 लाख रुपये और तरुण योजना के तहत 10 लाख रुपये तक के ॠण दिये गये हैं। इस कर्ज का लाभ उठाकर लाखों लोगों ने अपने रोजगार शुरू किये हैं। यह दावा सरकार का है।

आयुष्मान भारत योजना

एक और योजना का प्रचार मोदी सरकार बहुत उत्साह से करती है- आयुष्मान भारत योजना (ayushman bharat scheme)। 2018 में शुरू हुई, इस बीमा योजना के तहत गरीब परिवारों को 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा की सुविधा मिल रही है। सरकार का दावा है कि यह भी एक तरह का मेडिक्लेम (mediclaim) ही है और 50 करोड़ भारतीय इससे लाभान्वित हुए हैं।

इसके अलावा प्रधानमंत्री आवास योजना (Pradhan Mantri Aawas Yojna) भी मोदी सरकार की एक ऐसी योजना के रूप में प्रचारित है, जिसके तहत होम लोन के ब्याज में सरकार 2.60 लाख रुपये तक सब्सिडी देती थी। इस योजना से लाखों लोग लाभान्वित हुए हैं।

इसके अलावा प्रधानमंत्री जन-धन योजना (Pradhan Mantri Jan-Dhan Yojana) में जीरो बैलेंस अकाउंट खोले गए और बिना किसी शुल्क के फंड ट्रांसफर की सुविधा लोगों को मिली।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (Pradhan Mantri Garib Kalyan Anna Yojana) के तहत 80 करोड़ लोगों को 5 किलो राशन हर महीने मुफ्त मिल रहा है। खाद्य सुरक्षा कानून के तहत यह सुविधा शुरू की गई।

मोदी सरकार की ये सभी योजनाएं गरीबों के हित में बताई जाती हैं।

मोदीराज के 8 साल : गरीबी रेखा के नीचे आ गए 20 करोड़ से अधिक लोग

यह एक विचित्र संयोग ही है कि पिछले 8 साल में ही 20 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए। देश में बेरोजगारी की दर भी अपने चरम पर है और महंगाई भी अपने उच्चतम शिखर पर।

आंकड़ों में न जाएं, तो भी यह बात समझ में आती है कि खाने-पीने की चीजों के दाम बेहताशा बढ़ गए हैं। तीन साल में ही खाद्यान्नों के दाम लगभग 1.5 गुने से ज्यादा बढ़ गए हैं। विभिन्न वित्तीय एजेंसियां भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर गंभीर चेतावनियां दे रही हैं।

गांधीजी क्या चाहते थे?

Mahatma Gandhi महात्मा गांधी

प्रधानमंत्री मोदी गांधीजी के भारत की कल्पना (Gandhi's vision of India) को साकार करने की बातें कह रहे हैं, लेकिन गांधीजी ने सर्वधर्म समभाव और वसुधैव कुटुम्बकम के विचारों को हमेशा प्राथमिकता दी है।

गांधीजी की सोच रोजगार बढ़ाने की तरफ ज्यादा रही और उपभोग को सीमित करते हुए जनकल्याण की भावना प्रमुखता से प्रदर्शित की गई।

गांधीजी चाहते थे कि इंसान की असीमित आवश्यकताओं और सीमित संसाधनों के बीच संतुलन बना रहे। गरीबी और अमीरी की खाई कम की जाए, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि देश का एक प्रतिशत पूंजीपति वर्ग देश के 30 प्रतिशत संसाधनों पर कब्जा किए हुए है और जितनी दौलत उस वर्ग ने पिछले 30 वर्षो में नहीं कमाई, उससे ज्यादा केवल दो वर्षों में प्राप्त कर ली।

गांधीजी का स्पष्ट फॉर्मूला था कि अगर कभी भी किसी पर अहम हावी होने लगे, तो वह यह कसौटी अपनाए कि उसके अपने जीवन में सबसे गरीब और कमजोर आदमी के लिए उठाए जाने वाले कदम कितने लाभप्रद हैं।

स्पष्ट है कि गांधीजी अंत्योदय की बात करते थे और गांधीजी का यही विचार कथित तौर पर दीनदयाल उपाध्याय ने भी अपनाया था।

गांधीजी की विकास की अवधारणा (Gandhi's concept of development) यही थी कि विकास का लाभ महिलाओं, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, दलितों को भी उसी प्रकार मिले, जैसे समाज के अग्रणी लोगों को लाभ मिलता है। देश जिस दिशा में जा रहा है, वह गांधीजी की बताई दिशा है या नहीं, यह जानने के लिए इतना बताना काफी है कि स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, सक्षम भारत और समृद्ध देश जैसे नारों के बावजूद 38 प्रतिशत से अधिक भारतीय बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और उसमें भी सबसे ज्यादा बीमारियां अशुद्ध पेय जल से होने वाले रोगों के कारण हैं।

जल शक्ति मंत्रालय बनाने के बाद भी अशुद्ध पानी से होने वाली डायरिया जैसी बीमारियां खत्म नहीं हुईं।

यह जानना हमेशा सुखद होता है कि हमारे प्रधानमंत्री गांधीजी की बातें करते हैं और उनके बताए मार्ग पर चलने के दावे भी करते हैं। इसके विपरीत जब अर्थशास्त्री आंकड़े पेश करते हैं, तब वे आंकड़े विरोधाभासी होते हैं। जाहिर है गांधीजी के बताए मार्ग पर चलने में अभी कुछ कमी रह गई है।

डॉ प्रकाश हिंदुस्तानी

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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