जानिए कौन हैं आंकड़ों के जादूगर प्रशांत चंद्र महालनोबिस

जानिए कौन हैं आंकड़ों के जादूगर प्रशांत चंद्र महालनोबिस

पं. जवाहरलाल नेहरू की आधुनिक भारत के निर्माण की महत्वाकांक्षी योजना में प्रशांत चंद्र महालनोबिस की भूमिका

क्या आप प्रशांत चंद्र महालनोबिस को जानते हैं?

क्या आप महालनोबीस को जानते हैं? महालनोबीस यानी प्रशांत चंद्र महालनोबिस (Prasanta Chandra Mahalanobis)। यदि जानते हैं तो बहुत बढ़िया और नहीं जानते हैं तो आपको उन्हें जानना चाहिये था। आपको पता होना चाहिए कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू (Pt. Jawaharlal Nehru, the first Prime Minister of India) की आधुनिक भारत के निर्माण की महत्वाकांक्षी योजना में प्रशांतचंद्र महालनोबीस की महती भूमिका (Role of Prasanta Chandra Mahalanobis in Pt. Jawaharlal Nehru's ambitious plan to build modern India) थी।

भारत में सांख्यिकी आंदोलन के जनक और भारतीय सांख्यिकी संस्थान के संस्थापक

प्रशांतचंद्र सांख्यिकी विद् थे, भारतीय सांख्यिकी संस्थान के संस्थापक। पं. नेहरू की भांति वे भी स्वप्नदृष्टा थे। वे न होते तो देश सार्वजनिक क्षेत्र के नेतृत्व में सुनियोजित विकास के मार्ग पर यूं अग्रसर न हो पाता।

स्वतंत्र भारत की द्वितीय पंचवर्षीय योजना महालनोबीस मॉडेल पर ही आधारित थी। वे भारत में सांख्यिकी आंदोलन के जनक (father of statistics movement in india) थे। भारत में सांख्यिकी तंत्र के विकास का संपूर्ण श्रेय उन्हें जाता है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण, प्रांतों में सांख्यिकी ब्यूरो और केंद्रीय योजना आयोग में सांख्यिकी विभाग की स्थापना में उनकी नाभिकीय भूमिका रही। उन्हीं की प्रेरणा और प्रयासों से भारत में सांख्यिकी तंत्र विकसित हो सका।

महालनोबीस देश में सांख्यिकी के सौध के वास्तुकार थे, राष्ट्रहित को समर्पित निस्पृह वास्तुकार।

Biography of Prasanta Chandra Mahalanobis in Hindi | प्रशांत चंद्र महालनोबिस की जीवनी हिंदी में

19वीं सदी का अवसान काल। वर्ष 1893। ब्रिटिश इंडिया की राजधानी कलकत्ते में प्रतिनिधि महालनोबीस-परिवार में 29 जून को जनमे प्रशांत के परिवार की पृष्ठभूमि अत्यंत समृद्ध थी। पिता प्रशांतचंद्र महालनोबीस (1869-1942) संपन्न व्यवसायी थे। मां श्रीमती नीरोदवासिनी विदुषी महिला थीं। मामा नीलरतन सरकार की गिनती अपने समय के ख्यातनाम चिकित्सकों, उद्योगपतियों और शिक्षाविदों में होती थी। दादा गुरुचरण महालनोबीस (1833-1916) ब्रह्मो समाज के सक्रिय सदस्य थे। वे अलीक समाज सुधारक थे।

प्रशांत चंद्र महालनोबीस की कथनी के बजाय करनी पर निष्ठा थी। अत: उन्होंने परिवार और समाज के सदस्यों के विरोध की अवज्ञा कर सन् 1864 में एक विधवा से विवाह किया था।

महालनोबीस परिवार और जोड़ासांको के ठाकुर परिवार में घनिष्ठ संबंध थे। रवीन्द्रनाथ ठाकुर (टैगोर) के पिता देवेन्द्रनाथ (1817-1905) ही गुरुचरण को ब्रह्मसमाज में लेकर आये थे।

यूं तो रवीन्द्रनाथ प्रशांत से 32 साल बड़े थे, किन्तु दोनों में बहुत अंतरंग संबंध थे। प्रशांत का परिचय तो रवीन्द्रनाथ से था, किन्तु दोनों में संबंध प्रगाढ़ सन् 1910 में तब हुए जब प्रशांत सन् 1910 में छुट्टियां बिताने शांति निकेतन आए।

प्रशांत की विद्वत्ता और विवेक से रवीन्द्रनाथ के मन में उनके प्रति सम्मान जागा। सन् 1913 में रवीन्द्र बाबू को साहित्य के लिए नोबेल सम्मान मिला।

युवा प्रशांत ने रविबाबू की कृतियों का एक समालोचना लिखी। बुद्धदेव बसु ने उसे छापा। रविबाबू ने पढ़ा तो प्रशांत को खत लिखा - 'मेरी उपलब्धियों और प्रसिद्धि से जुड़ी हर चीज के विश्लेषण के बाद तुमने जो भी लिखा वह ठीक है।'

उनकी एक अन्य कृति पर प्रशांत के लेख पर उन्होंने लिखा- ''मुझे तुम्हारा लेख बड़ा पसंद आया। विकास के परिप्रेक्ष्य में मेरे मानववाद के इतिहास का तुमने जिस तरह वर्णन किया है, उससे इस संबंध में मेरी धारणा स्पष्ट हो गयी है।''

रवीन्द्र बाबू प्रशांत चंद्र महालनोबीस की लेखकीय क्षमता पर मुग्ध थे। एकदा उन्होंने लिखा - 'एडवर्ड टाम्पसन कह रहे थे कि मेरी रचनाओं के अनुवाद का एक संकलन आना चाहिए। इसके लिए किसी को मेरी पांडुलिपियों को कालक्रम के अनुरूप जमाना होगा। यह काम तुमसे अच्छा कोई और नहीं कर सकता।' कालांतर में प्रशांत को रविबाबू की रचनाओं की चयनिका के संपादन का दायित्व सौंपा गया। चीनी व जापानी शैली में रविबाबू के संकलन 'स्फुलिंग' का श्रेय भी उन्हें ही है। बताते हैं कि जर्मनी से प्रकाशित इसके संस्करण के लिए उन्होंने ही प्रकाशक से संपर्क किया था।

सन् 1932 में रविबाबू की आवाज में उनकी रचनाओं की रिकार्डिंग में भी उनका योगदान था।

रविबाबू मंचीय कार्यक्रमों में भी प्रशांत चंद्र महालनोबीस का परामर्श लेते थे, चाहे नृत्यनाटिका हो या सांगीतिक उपक्रम। रविबाबू के विजन को साकार करने में वे सतत सक्रिय रहे। विश्वभारती गुरूदेव के 'विजन' का साकार रूप था।

23 दिसंबर, सन् 1921 को उसकी स्थापना हुई। प्रशांत करीब 10 वर्षों तक 'विश्वभारती' के संयुक्त सचिव रहे। संकट में गुरूदेव ने प्रशांत चंद्र महालनोबीस को पत्र लिखा- ''शांतिनिकेतन घोर संकट में है... शुक्रवार की शाम तक तुम यहां जरूर पहुंच जाओ... तुमसे मेरा अनुरोध है कि आने में देर मत करना... आओ, और मुझे इन समस्याओं से मुक्ति दिलाओ।''

तो यह था प्रशांतबाबू पर रविबाबू का विश्वास और अवलंबन।

कवींद्र साहित्य में उनकी गहरी पैठ थी। बांग्ला-साहित्य में दखल का ही नतीजा था कि प्रशांतचंद्र 'द ऑक्सफोर्ड बुक ऑफ बेंगाली वर्स' के लिए एडवर्ड टॉम्पसन के प्रमुख सलाहकार रहे। ब्राह्म बाल विद्यालय में प्राथमिक शिक्षा के उपरांत विधिवत प्रवेश-परीक्षा उत्तीर्ण कर उन्होंने सन् 1908 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। सन् 1912 में भौतिकी (ऑनर्स) में उपाधि के पश्चात वे इंग्लैंड चले गये। वहां कैंब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने गणित ट्राइपोस (खंड : एक) और प्राकृतिक विज्ञान ट्राइपोस (खंड छ दो) की परीक्षाएं उत्तीर्ण कीं। खंड दो की परीक्षा में अव्वल आने से उन्हें वरिष्ठ अनुसंधान वृत्ति मिली। उनकी ख्वाहिश कैवेंडिश प्रयोगशाला में अनुसंधान की थी, किन्तु उनकी यह इच्छा अधूरी रह गई। सन् 1915 में वे भारत लौट आये।

यूं तो भारतीय सांख्यिकी की शुरूआत प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ही हो गई थी। अलबत्ता इसकी औपचारिक स्थापना 17 दिसंबर, सन् 1931 को प्रेसीडेंसी कॉलेज में भौतिकी के प्रशांत चंद्र के कमरे में सांख्यिकी प्रयोगशाला की स्थापना से हुई। सांख्यिकी तब विज्ञान की मान्य शाखा न थी, लेकिन रवीन्द्रनाथ ठाकुर, नीलरतन सरकार और ब्रजेन्द्रनाथ सील जैसे विद्वान इसकी महत्ता को बूझ रहे थे। प्रशांतचंद्र को इस त्रयी का नैतिक समर्थन और प्रोत्साहन मिला। रवीन्द्रनाथ वहां अनेक बार आये और प्रशांत की शुरूआती टीम से बखूबी परिचित हो गये।

कृतज्ञ प्रशांत ने लिखा-'रवीन्द्रबाबू में इस बात का मूल्यांकन करने की कल्पनाशक्ति थी कि हम अनेक कठिनाइयों और विरोधों के बीच अग्रणी कार्य कर रहे थे। उनका प्रभाव कितना गहरा था, इसे शब्दों में व्यक्त करना मेरे लिए मुमकिन नहीं है।'

बहरहाल, इस संस्थान से अनेक विश्व विख्यात वैज्ञानिक आए और रहे भी। विलायत से आकर जेबीएस हाल्डेन यहां बरसों रहे। और तो और नील्स बोर और मैडम क्यूरी तक यहां आए। महालनोबीस ने आधुनिकतम कंप्यूटरों और दक्ष टीम के सहारे संस्थान को वैश्विक स्तर का उन्नत और आदर्श संस्थान बना दिया।

तो ऐसे थे प्रशांतचंद्र महालनोबीस। व्यक्तित्व में विज्ञान एवं कला का मणिकंचन योग। कभी-कभी कोलकाता जाएं तो भारतीय नमूना सर्वेक्षण मुख्यालय 'महालनोबिस -भवन' (Sample Survey of India Headquarter 'Mahalnobis-Bhawan') भी जाएं और कृतज्ञ भाव से उन्हें नमन करना न भूलें।

- डॉ. सुधीर सक्सेना

Note : Prasanta Chandra Mahalanobis OBE, FNA, FASc, FRS was an Indian scientist and statistician from erstwhile Bengal. He is best remembered for the Mahalanobis distance, a statistical measure, and for being one of the members of the first Planning Commission of free India. Wikipedia

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