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डॉ राही मासूम रज़ा की जयंती पर चंचलजी की एफबी टिप्पणी
1 सितम्बर राही मासूम रज़ा का आज जन्मदिन है। बहुश्रुत, बहुचर्चित वाक़या है, फिर भी आज के लिए सामयिक है।
एक पत्रकार साहब, राही साहब का इंटरव्यू कर रहे थे। बातचीत के दौरान अतिउत्साह में उसने पूछ लिया- आपको डर नहीं लगता कि कोई आपको पाकिस्तानी कह दे ?
राही साहब हत्थे से उखड़ गये। - कह के तो देखे, मियाँ बँटवारे के समय हमारे पास दो ऑप्शन था, हम यहाँ रहते भारत में, या पाकिस्तान जाते, हमने भारत को चुना, हमारी जड़ें यहाँ हैं, हमारे पुरखों की क़ब्रें यहाँ हैं हम पाकिस्तान नहीं गए। तुमको तो हर हाल में यही रहना था, कोई और चारा नहीं था। हमे देश प्रेम का पाठ मत पढ़ाओ।
राही “कुजात” की श्रेणी में चले गये। अलीगढ़ यूनिवर्सिटी ने राही को उर्दू का लेखक माना ही नहीं और नौकरी से बाहर कर दिया। उर्दू अदब के अलमबरदार कलमकारों ने राही साहब को उर्दू अदब में जगह ही नहीं दिया। हिंदी अकादमी ने इनके उपन्यास आधा गाँव को गाली कह कर सूची से ही निकाल दिया। हिंदी के “मार्क्सवादी” आलोचक ने राही को अश्लील कह कर ख़ारिज कर दिया।
जोधपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाए जा रहे राही मासूम रज़ा के अश्लील होने के आरोप में आग जनी तक हुई। संघियों के ज़बरदस्त विरोध के सामने हिंदी के “दादा“ माने जानेवाले नामवर सिंह को राही साहब के समर्थन के लिए कोई भी लेखक मिला तक नहीं।
किसके लेखक हैं ये राही ?
राही कुजात घोषित हो गये। मुसलमानों ने इन्हें अपने टाट से नहीं बैठने दिया। हिंदुओं ने कहा- “इनका नाम तो मुसलमान है“। किस जगह पर बिठाओगे राही मासूम रज़ा को ? “आधा गाँव” न आंचलिक है, न ही अश्लील है। राही साहब मुसलमान को उसके अतीत से निकाल वर्तमान में खड़ा करते हैं। फ़ुंनन मियाँ पूछते हैं - हमार बेटाऊवा कब तक आयी ?
फुन्नन मियाँ एक क़ौम का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका बेटा जंग में मारा जाता है, उससे पूछा जाय उसकी देश भक्ति ? मुसलमान और उसकी उर्दू ने राही को टाट बाहर कर दिया। “आधा गाँव” में गालियाँ न होती तो साहित्य अकादमी राही को साहित्य अकादमी पुरस्कार देती।
राही ने जवाब दिया साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने के लिए हम अपने गाँव के पात्रों से संस्कृत तो नहीं बुलवा सकते। राही अपने अगले उपन्यास “टोपी शुक्ला” की भूमिका में कहते हैं “आधा गाँव“ में तो कुछ ही गालियाँ थी, टोपी शुक्ला तो पूरा उपन्यास ही गाली है।
हिंदी ने राही को अश्लील कह कर नकारा। राही ने दुनिया का सबसे बड़ा एपिक “महाभारत” की पटकथा और संवाद लिख कर “हिंदी बाजों” की धोती ही खोल दी। राही नज़ीर हैं - लेखक होने का फ़ैसला न आलोचक के हाथ है, न अदबी राजनीति के हाथ, पाठक ही सब जगह बनाता है।
सादर नमन राही साहब
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चंचल
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Chanchalji's fb comment on the birth anniversary of Dr Rahi Masoom Raza