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आंखों से ब्रेन तक तेजी से फैल रहा है ब्लैक फंगस संक्रमण

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hastakshep
19 May 2021
ब्लैक फंगस पर डॉ हर्ष वर्धन ने ट्विटर पर दिया जागरूकता का संदेश

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Black fungus infection spreading rapidly from eyes to brain

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चिंता का सबब बनते ब्लैक फंगस के बढ़ते मामले

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Increasing cases of worry-causing black fungus- Mucormycosis in hindi

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एक तरफ जहां देश भर में कोरोना संक्रमितों की संख्या धीरे-धीरे कम होने लगी है, वहीं दूसरी ओर कोरोना से ठीक हो रहे कुछ मरीजों पर दूसरा बड़ा खतरा मंडरा रहा है। दरअसल विभिन्न राज्यों में ब्लैक फंगस (म्यूकोर्मिकोसिस - Mucormycosis) के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है और आंखों से ब्रेन तक तेजी से फैल रहे इस संक्रमण के कारण लोगों की जान जा रही है।

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कोरोना पर जीत दर्ज कर चुके सैकड़ों लोग ब्लैक फंगस के शिकार हो चुके हैं, जिनमें से कुछ की आंखों की रोशनी चली गई है तो कुछ की मौत हो गई। हरियाणा में तो सरकार द्वारा अब इसे अधिसूचित रोग घोषित कर दिया गया है।

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दरअसल ब्लैक फंगस शरीर में बहुत तेजी से फैलता है, जिससे आंखों की रोशनी चली जाती है और कई मामलों में मौतें भी हो रही हैं।

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कोरोना संक्रमण के कारण यह रोग अधिक खतरनाक हो गया है, इसीलिए सरकार द्वारा अब चेतावनी देते हुए कहा गया है कि ब्लैक फंगस से बचने की जरूरत है क्योंकि इसके कारण कोरोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है।

Diabetes needs to be controlled

नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के. पाल के मुताबिक यह रोग होने की संभावना तब ज्यादा होती है, जब कोविड मरीजों को स्टेरॉयड दिए जा रहे हों और मधुमेह रोगी को इससे सर्वाधिक खतरा है, इसलिए स्टेरॉयड (Steroids) जिम्मेदारी से दिए जाने चाहिए और मधुमेह को नियंत्रित किया जाना जरूरी है क्योंकि इससे मृत्यु दर का जोखिम बढ़ जाता है।

डा. पाल का यह भी कहना है कि इस बीमारी से कैसे लड़ना है, अभी इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है क्योंकि यह एक उभरती हुई समस्या है। म्यूकोर्मिकोसिस चेहरे, नाक, आंख तथा मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है, जो फेफड़ों में भी फैल सकता है और इससे आंख की रोशनी भी जा सकती है।

वैसे अभी तक के मामलों का अध्ययन करने से यह बात तो स्पष्ट हो गई है कि ब्लैक फंगस नामक बीमारी के सबसे ज्यादा मामले ऐसे कोरोना मरीजों में ही देखने को मिल रहे हैं, जिन्हें जरूरत से ज्यादा स्टेरॉयड दी गई हों।

इस संबंध में कुछ डॉक्टरों का कहना है कि यदि मरीज का ऑक्सीजन लेवल 90 के आसपास है और उसे काफी स्टेरॉयड दिया जा रहा है तो ‘ब्लैक फंगस’ इसका एक साइड इफैक्ट हो सकता है। ऐसा मरीज अगर कोविड संक्रमण से ठीक भी हो जाए लेकिन ब्लैक फंगस का शिकार हो जाए तो बीमारी को शीघ्र डायग्नोस कर उसका तुरंत इलाज शुरू नहीं करने पर जान जाने का खतरा रहता है।

अनदेखी न करें ब्लैक फंगस के लक्षणों की | Do not ignore the symptoms of black fungus

आईसीएमआर ने भी फंगस इंफैक्शन का पता लगाने के लिए जांच की सलाह देते हुए कहा है कि कोरोना मरीज ब्लैक फंगस के लक्षणों की अनदेखी न करें और लक्षण होने पर चिकित्सक से परामर्श करें, साथ ही लक्षण मिलने पर स्टेरॉयड की मात्रा कम करने या बंद करने का भी सुझाव दिया गया है।

स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन का कहना है कि यदि लोगों में इस बीमारी को लेकर जागरूकता हो और शुरुआत में ही लक्षणों की पहचान कर ली जाए तो बीमारी को जानलेवा होने से रोका जा सकता है। इस संक्रमण का पता सीटी स्कैन के जरिये लगाया जा सकता है और फिलहाल ‘एम्फोटेरिसिन’ नामक ड्रग का इसके इलाज में इस्तेमाल किया जा रहा है।

ब्लैक फंगस ऐसा फंगल इंफैक्शन है, जो कोरोना वायरस के कारण शरीर में ट्रिगर होता है, जिसे आईसीएमआर ने ऐसी दुर्लभ बीमारी माना है, जो शरीर में बहुत तेजी से फैलती है और उन लोगों में ज्यादा देखने को मिल रही है, जो कोरोना संक्रमित होने से पहले किसी अन्य बीमारी से ग्रस्त थे या जिन लोगों की इम्युनिटी बेहद कमजोर है। पहले से स्वास्थ्य परेशानियां झेल रहे शरीर में वातावरण में मौजूद रोगजनक वायरस, बैक्टीरिया या दूसरे पैथोजन्स से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है, ऐसे में शरीर में इस फंगल इंफैक्शन के होने का खतरा रहता है। कोरोना के जिन मरीजों को आईसीयू में तथा ऑक्सीजन पर रखा जाता है, उनमें भी ब्लैक फंगस के संक्रमण की कुछ आशंका रहती है।

एम्स निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया कहते हैं कि कोविड मरीजों को लिम्फोपेनिया की ओर ले जाता है और इलाज के दौरान स्टेरॉयड के इस्तेमाल से शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है।

उनके मुताबिक जांच में पता चल रहा है कि ब्लैक फंगस वाले सभी मरीजों को कोरोना के इलाज के दौरान स्टेरॉयड दी गई थी, जिनमें से 90-95 फीसदी ऐसे मरीज हैं, जिन्हें मधुमेह है।

मधुमेह, कोविड पॉजिटिव तथा स्टेरॉयड लेने वाले रोगियों में फंगल संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है।

Steroid consumption can also lead to black fungus without the advice of a specialist doctor.

डॉ. गुलेरिया के अनुसार ‘म्यूकोर्मिकोसिस’ बीजाणु मिट्टी, हवा और भोजन में भी पाए जाते हैं लेकिन वे कम विषाणु वाले होते हैं और आमतौर पर संक्रमण का कारण नहीं बनते। कोविड-19 से पहले इस संक्रमण के बहुत कम मामले थे लेकिन कोविड के कारण अब ये मामले बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं। पहले यह उन लोगों में ही दिखता था, जिनका शुगर बहुत ज्यादा हो, इम्युनिटी बेहद कम हो या कीमोथैरेपी ले रहे कैंसर के मरीज लेकिन स्टेरॉयड का ज्यादा इस्तेमाल करने से ब्लैक फंगस के अब बहुत ज्यादा मामले आ रहे हैं। किसी विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह के बिना स्टेरॉयड का सेवन भी ब्लैक फंगस की वजह बन सकता है। बहुत से लोग बुखार, खांसी और जुकाम होते ही कोरोना की दवाएं शुरू कर रहे हैं लेकिन डॉक्टरों का मानना है कि बिना कोरोना रिपोर्ट के ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। बगैर कोरोना के लक्षणों के 5-7 दिन तक स्टेरॉयड का सेवन करने से इसके दुष्प्रभाव दिखने लगते हैं और बीमारी बढ़ने की आशंका रहती है।

क्या हैं ब्लैक फंगस के प्रमुख लक्षण | What are the major symptoms of black fungus

अगर ब्लैक फंगस के प्रमुख लक्षणों की बात करें तो बुखार, तेज सिरदर्द, खांसी, नाक बंद होना, नाक में म्यूकस के साथ खून, छाती में दर्द, सांस लेने में तकलीफ होना, खांसते समय बलगम में या उल्टी में खून आना, आंखों में दर्द, तथा सूजन, धुंधला दिखाई देना या दिखना बंद हो जाना, नाक से खून आना या काले रंग का स्राव, आंखों या नाक के आसपास दर्द, लाल निशान या चकत्ते, मानसिक स्थिति पर असर पड़ना, गाल की हड्डी में दर्द, चेहरे में एक तरफ दर्द, सूजन या सुन्नपन, मसूडों में तेज दर्द या दांत हिलना, कुछ भी चबाते समय दर्द होना इत्यादि ब्लैक फंगस संक्रमण के प्रमुख लक्षण हैं।

ब्लैक फंगस का इलाज पर खर्च | How much does it cost to treat black fungus

ब्लैक फंगस संक्रमण मरीज में सिर्फ एक त्वचा से शुरू होता है लेकिन यह शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है। चूंकि यह शरीर के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित करता है, इसलिए इसके उपचार के लिए अस्पतालों में कई बार अलग-अलग विशेषज्ञों की जरूरत भी पड़ सकती है। यही कारण इसका इलाज कोरोना के इलाज से भी महंगा है और जान का खतरा भी ज्यादा है। मरीज को इस बीमारी में एम्फोटेरिसिन इंजेक्शन दिन में कई बार लगाया जाता है, जो प्रायः 21 दिन तक लगवाना पड़ता है। इसके गंभीर मरीज के इलाज पर प्रतिदिन करीब 25 हजार तक खर्च आता है जबकि मेडिकल जांच और दवाओं सहित कोरोना के सामान्य मरीज के इलाज का औसत खर्च करीब दस हजार रुपये है।

ब्लैक फंगस का शुरूआती चरण में ही पता चलने पर साइनस की सर्जरी के जरिये इसे ठीक किया जा सकता है, जिस पर करीब तीन लाख रुपये तक खर्च हो सकता है लेकिन बीमारी बढ़ने पर ब्रेन और आंखों की सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है, जिसके बाद इलाज काफी महंगा हो जाता है और मरीज की आंखों की रोशनी खत्म होने तथा जान जाने का भी खतरा बढ़ जाता है। कुछ मरीजों का ऊपरी जबड़ा और कभी-कभार आंख भी निकालनी पड़ जाती है।

ब्लैक फंगस संक्रमण से बचने के लिए ऑक्सीजन थैरेपी के दौरान ह्यूमिडीफायर्स में साफ व स्टरलाइज्ड पानी का ही इस्तेमाल करें और घर में मरीज को आक्सीजन देते हुए उसकी बोतल में उबालकर ठंडा किया हुआ पानी डालकर ठीक से साफ करें। चूंकि ब्लैक फंगस संक्रमण का सबसे बड़ा खतरा मधुमेह रोगियों को है, इसलिए जरूरी है कि कोविड से ठीक होने के बाद भी ऐसे मरीजों का ब्लड ग्लूकोज लेवल मॉनीटर करते रहें और हाइपरग्लाइसीमिया अर्थात् रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने की कोशिश करें। बिना विशेषज्ञ की सलाह के डेक्सोना, मेड्रोल इत्यादि स्टेरॉयड तो अपनी मर्जी से या किसी के कहने पर हरगिज न लें। स्टेरॉयड शुरू होने पर विशेषज्ञ डॉक्टर के नियमित सम्पर्क में रहें।

विशेषज्ञ डॉक्टर स्टेरॉयड कुछ ही मरीजों को 5-10 दिनों के लिए ही देते हैं, वह भी बीमारी शुरू होने के 5-7 दिन बाद जरूरी जांच कराने के पश्चात् सिर्फ गंभीर मरीजों को। बेहतर है कि ब्लैक फंगस के लक्षण नजर आने पर अपनी मर्जी से दवाओं का सेवन शुरू करने के बजाय जरा भी समय गंवाए बिना तुरंत अपने डॉक्टर से सम्पर्क करें क्योंकि प्रारम्भिक अवस्था में इसे एंटी-फंगल दवाओं (Anti-fungal drugs) से ठीक किया जा सकता है।

- योगेश कुमार गोयल

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा 31 वर्षों से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय हैं।)

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