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पुस्तक समीक्षा | Book review
हिंदी कथा साहित्य में हिंदी कहानी का आरंभ माधवराव स्प्रे की कहानी 'एक टोकरी भर मिट्टी' से आरम्भ हुआ माना जाता है। यह कहानी सन् 1901 में प्रकाशित हुई थी। हिंदी की पहली कहानी को लेकर हालांकि अलग-अलग विद्वानों का अलग-अलग मन्तव्य है।
हिंदी कहानियों के क्रम में लघु कथा की अगर बात करें तो पहली लघु कथा लिखने का श्रेय भी माधवराव स्प्रे के सिरमौर है। उनकी लिखी कहानी 'सुभाषित रत्न' छत्तीसगढ़ मित्र पत्रिका में सन् 1901 में प्रकाशित हुई थी। यहीं से हिंदी में कहानियां लिखने का प्रचलन शुरू हुआ ऐसा माना जा सकता है।
खैर पुस्तक समीक्षाओं के क्रम में आज की पुस्तक है "लापता पैर" इस लघु कथा संग्रह के लेखक हैं 'सुमीत कुमार।' फेसबुक पर अपने लिखे को शेयर करते रहने का ही फायदा मुझे मिलता रहा है कि लेखक और फ़िल्म निर्देशक अपनी किताबें और फिल्में समीक्षाएँ करने के लिए भेजते रहते हैं। इसके लिए मैं उन सभी का आभारी हूँ। कि वे मुझे इस योग्य समझते हैं। लापता पैर कहानी संग्रह भी मुझे इसी तरह से प्राप्त हुई।
युवा फ़िल्म निर्देशक और थियेटर आर्टिस्ट गौरव चौधरी के माध्यम से सुमीत कुमार का यह संग्रह प्राप्त हुआ। जिसे एक ही सिटिंग में पूरा कर लिया। छोटी-छोटी तीस कहानियां इस संग्रह में शामिल हैं।
कहानी संग्रह के आरम्भ में सआदत हसन मंटो का सम्बोधन वाक्य "दुनिया में जितनी लानते हैं भूख उनकी माँ है।" दिया गया है जो इस संग्रह की हर कहानी से लगभग मेल सा खाता है।
हर कहानी के हर पात्र किसी न किसी भूख से आकुल और व्याकुल ही दिखाई पड़ते हैं। इसके अलावा लेखक के भीतर की लेखकीय भूख भी इस वाक्य के माध्यम से उजागर हो जाती है। हर कहानी का अपना मिजाज है, अपना रंग-ढंग है।
लेखक ने अधिकांश कहानियों का निर्माण अपनी कल्पना शक्ति से किया है, जिसके लिए उन्हें दाद दी जानी चाहिए कि इस तरह के विभिन्न विषयों पर उन्होंने कल्पनाओं को साकार किया और उन्हें कहानियों के रूप में मूर्त रूप दिया। कुछ कहानियां यथार्थ परक भी हैं। किंतु इस संग्रह को किसी भी तरह के शोध के लिए नहीं चुना जा सकता। यह जरूरी भी नहीं कि हर लिखे कहानी संग्रह या अन्य विधाओं पर लिखी किताबों को शोध के रूप में चयनित किया जाए।
इस संग्रह की एक कहानी 'दौलत' को लेकर ट्रेलर के रूप में भी (पाठकों को रिझाने के लिए या कहें उन तक अपनी पहुंच बनाने के लिए) इस्तेमाल किया गया है। दौलत कहानी और इसके अलावा भी कुछ कहानियां हैं जिन्हें लेकर शार्ट फिल्में बनाई जा सकती हैं। अब यह तो फ़िल्म निर्देशक ही तय करे कि उसे किस कहानी का चुनाव करना है। हम ठहरे पाठक और आलोचक तो अपना काम आलोचना, समीक्षा करना है वही करेंगे।
तो चलिए शुरू करते हैं।
लघु कहानियों के क्रम में जो कहानियां सबसे ज्यादा पसंद आई उनमें से एक कहानी है 'लापता पैर' एक यह विकलांग बच्चे की कहानी कहती है। जो सड़क पर लाल सिग्नल होते ही भीख मांगना शुरू करता है। और रेड लाइट ग्रीन में बदलते ही उचक कर फुटपाथ पर चढ़ जाता है। लेखक की कल्पना उनके लापता पैरों तक पहुंचती है। और वह सोचता है कि आखिर ये जन्म से विकलांग तो लगते नहीं तो इनके पैर कहाँ गायब हो गए। इसी कल्पनाशक्ति में वह पाठक को भी डुबाने में सफल हो जाते हैं।
इसके बाद दूसरी कहानी 'मोहब्बत का एबॉर्शन।' यह कहानी भी अपनी रचनाधर्मिता और कल्पनाशीलता के कारण सोचने पर विवश करती है। लेखक इस कहानी में स्वयं प्रश्नों का हल खोजते हुए से नजर आते हैं।
आखिर ये मोहब्बत है क्या?
जवाब कई आए जैसे-
'ये एक खूबसूरत अहसास है जो हर समय जागे रहता है।'
'पर खबरों में मुझे इसकी बदसूरती ज्यादा नजर आती है।'
'ये प्योर है।'
'मतलब ऐसा कुछ जिसमें कोई मिलावट नहीं की जा सकती।'
'पर शक तो अधिकतर मोहब्बत में कॉम्प्लीमेंट्री होता है। तो ये बात मुझे साफ झूठी नजर आई।'
'ये मोहब्बत पैदा कैसे होती है।'
इस तरह के कई सवालों और उनके जवाबों में उलझी यह कहानी पाठकों को भी इस मसले पर विचार-विमर्श करने के लिए बाधित करेगी।
एक कहानी 'नींद' शीर्षक से भी है जो यह बताती है कि कई बार हमें नींद का इतना नशा हो जाता है कि हमें कुछ भी दिखाई नहीं देता और हम कहीं भी सो जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके अलावा 'समाज के ठेकेदार' कहानी भी यथार्थ के नजदीक नजर आती है। हमारे समाज में ऐसे कई जाने-अनजाने सामाजिक ठेकेदारों से हमारा सामना हो जाता है। और ये सामाजिक ठेकेदार भी कई बार असमाजिक सा व्यवहार करने लगते हैं। इस कहानी में भी कुछ ऐसा ही है। रघुवंश अंकल जो अपने आस-पास के बच्चों पर पूरी नजर रखते हैं कौन क्या करता है? कौन सा लड़का कौन सी लड़की के साथ बैठा गप्पे हांक रहा है या कौन सी लड़की कौन से लड़के के साथ इश्कबाजियाँ कर रही है इस बात की उन्हें सब जानकारी रहती है। सोशल मीडिया का जमाना आते ही वे भी फेसबुक पर आ जाते हैं। और यहां भी वे उनपर नजर रखते हैं। एक दिन उन्हीं की लड़की तीन बच्चों के बाप के साथ भाग जाती है। अब देखिए उनकी मानसिक स्थिति कैसी होगी। और कहानी किस ओर रुख करेगी? यह तो कहानी पढ़ने के बाद ही आपको पता चलेगा।
इसके अलावा 'नन्हा क्रांतिकारी' कहानी भी बच्चों की मानसिक स्थिति पर विचार करती है। अधिकांश बच्चों को पढ़ाई से खास नफरत और कोफ्त सी होती है। उसी पर आधारित है यह कहानी जो उनके मनोवैज्ञानिक तथ्यों की जांच-पड़ताल करती है।
एक कहानी 'दौलत' नाम से भी है। जिसमें प्रेमी जोड़ा घर से भाग जाता है और उधर प्रधानमंत्री नोटबन्दी कर देते हैं। अब उनका क्या हाल होगा, आप जानते हैं। उनके पास घर से लाई जमा-पूंजी भी खत्म हो जाती है। और रोजगार की तलाश में वे भटकते रहते हैं। इस कहानी में उनकी नियति उन्हें किस ओर लेकर जाएगी यह तो कहानी पढ़ने के बाद ही आपको पता चलेगा।
'अंग्रेजी सपना' कहानी भी अपने कथ्य और शिल्प के अनुसार विशेष बन पड़ी है। 'गिनती' कहानी आपको भीतर तक झकझोर देती है। लेकिन इस कहानी को लिखने का उद्देश्य और मन्तव्य स्पष्ट नहीं हो पाया है। एक-एक रुपए के नोट इकट्ठा करने का शौक पात्र को किस मोड़ पर ले जाता है वह वाकई कल्पनाओं से ही सम्भव है। लेकिन यह कहानी कई प्रश्न भी छोड़कर जाती है।
अब अगर बात करूं उन कहानियों की जिन्होंने मुझे निराश किया तो उनमें 'उल्टा सीधा' , 'दिमाग की दही' , 'पेशाबघर' , 'भूख' , 'पाउडर' कहानियां हैं।
कुलमिलाकर इस कहानी संग्रह को पढ़कर यदि मैं कहूँ कि आपने समय जाया किया है तो यह कहना गलत होगा।
यह संग्रह आपको पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं कर पाता तो पूर्ण रूप से निराश भी नहीं करता। इस संग्रह को अमेजन से खरीदा जा सकता है।
समीक्षक - तेजस पूनियां
पुस्तक - लापता पैर
प्रकाशक - हिंदी युग्म
लेखक - सुमीत कुमार
मूल्य - 120 रुपए
रचनाकार परिचय :-
प्रकाशन- जनकृति अंतरराष्ट्रीय बहुभाषी ई पत्रिका, अक्षरवार्ता अंतरराष्ट्रीय मासिक रिफर्ड प्रिंट पत्रिका, परिवर्तन: साहित्य एवं समाज की त्रैमासिक ई पत्रिका, हस्ताक्षर मासिक ई पत्रिका, सहचर त्रैमासिक ई पत्रिका, कनाडा में प्रकाशित होने वाली प्रयास ई पत्रिका, हस्तक्षेप- सामाजिक, राजनीतिक, सूचना, चेतना व संवाद की मासिक पत्रिका, आखर हिंदी डॉट कॉम, सर्वहारा ब्लॉग, ट्रू मीडिया न्यूज डॉट कॉम, स्टोरी मिरर डॉट कॉम सृजन समय- दृश्यकला एवं प्रदर्शनकारी कलाओं पर केन्द्रित बहुभाषी अंतरराष्ट्रीय द्वैमासिक ई- पत्रिका तथा अन्य दो दशक से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में पत्र वाचन एवं उनका ISBN नंबर के साथ प्रकाशन तथा कुछ अन्य फ़िल्म समीक्षाएं, कविताएँ तथा लेख-आलेख प्रकाशनाधीन।