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राजनीतिक षड़यंत्र का हिस्सा बुल्ली बाई ऐप!

जानिए कांग्रेस के ऊपर हमला क्यों भारत के आधुनिक राष्ट्र राज्य की हौसियत पर हमला है

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नफरत की आग हमारे भविष्य को खाक कर दे, इससे पहले हमारे समाज को जाग जाना चाहिए

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Bully Bai App Part Of Political Conspiracy!

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नया वर्ष राजनीतिक तौर पर कई अशुभ और घृणात्मक अभियानों की सूचना के साथ शुरू हुआ। एक ओर तथाकथित धर्म संसद से एक धर्म विशेष के अनुयायियों के नरसंहार के आव्हान (calls for massacre of followers of a particular religion) का शोर सुनाई दिया तो दूसरी तरफ डिजिटल संसार में मुस्लिम महिलाओं की नीलामी का ऐप बनाने के षड़यंत्र का भंडाफोड़ हुआ। पूरे घटनाक्रम की विवेचना करते हुए देशबन्धु की संपादक सर्वमित्रा सुरजन का लेख आज प्रकाशित हुआ है। उक्त संपादकीय का किंचित् संपादित रूप साभार

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नारी को पूजा के योग्य मानने का दंभ भरने वाला भारत, डिजिटल भारत (Digital India) बनने की ओर भी तेजी से अग्रसर है। 2जी से होते हुए अब देश में 5जी की बातें होने लगी हैं। लेकिन मानसिक तौर पर हम उस मध्ययुग के नागरिक बन चुके हैं, जहां गुलामों की खरीद-फरोख्त (slave trading) समाज में आम बात थी। जब स्त्रियों को उपभोक्ता वस्तुओं की तरह खरीदा और बेचा जाता था। तब न नागरिक अधिकारों को लेकर इतनी चेतना थी, न इस खरीद-फरोख्त में धर्मांधता हावी थी, उस काल में युद्ध में जीत या हार स्त्रियों का, गुलामों का भविष्य तय करती थी। अपने पुरखों के इन कार्यों पर हम शर्मिंदा हो सकते हैं, उनके व्यवहार से सबक लेकर आज में सुधार ला सकते हैं। मध्ययुग के बाद की पीढ़ियों ने ऐसा ही किया और इसलिए दुनिया में मानवाधिकारों, स्त्री अधिकारों को लेकर विमर्श (discussion on human rights, women's rights) का दौर चला, और धीरे-धीरे हर तरह से बराबरी का हक देने का रास्ता खुला। मगर 21वीं सदी में आकर हम डिजीटल भारत को अतीत की दलदल में फिर से क्यों फंसा रहे हैं, क्यों अपनी महिलाओं को बिक्री की वस्तु की तरह पेश कर रहे हैं, क्यों अपने बच्चों के मन में धर्म के नाम पर इतना जहर घोल रहे हैं कि वे अपना भविष्य संवारने की उम्र में अक्षम्य अपराधों की ओर बढ़ रहे हैं।

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अधर्म संसद से बुल्ली बाई ऐप के बीच महिला सुरक्षा के भाजपा के दावे

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 नए साल की शुरुआत के साथ ही देश में एक ओर धर्म संसद के मंच से नरसंहार जैसी बातों का शोर सुनाई दिया, दूसरी ओर डिजीटल प्लेटफार्म पर मुस्लिम महिलाओं की बोली (Muslim women's bidding on digital platform) लगाने का घृणात्मक काम हुआ। 31 दिसम्बर 2021 को बुल्ली बाई नाम का ऐप बनाया गया और इस पर सैकड़ों मुस्लिम महिलाओं की डॉक्टर्ड तस्वीरें डाली गई हैं, यानी मूल तस्वीरों में छेड़खानी कर ऐप पर अपलोड की गईं। इस तस्वीरों को 'नीलामी' के लिए रखा गया है। हालांकि, ऐसी किसी नीलामी की जानकारी नहीं है, फिर भी इस पूरी मुहिम का मकसद मुस्लिम महिलाओं को नीचा दिखाना, उन्हें अपमानित करना था।

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खास बात ये है कि जिन महिलाओं की तस्वीरें डाली गईं, उनमें कई स्वतंत्र विचारक, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, सोशल मीडिया पर मुखर होकर अपनी बात रखने वाली और भाजपा के विरोधी दलों की नेता थीं। मतलब धर्म के साथ-साथ राजनैतिक विचारधारा के आधार पर महिलाओं को इस घृणित तरीके से अपमानित किया गया।

गौरतलब है कि इससे पहले जुलाई में इसी तरह सुल्ली डील ऐप (Sully Deals App) भी बनाया गया था, इसमें भी इसी तरह महिलाओं की बोली लगाने का घिनौना काम हुआ था। दिल्ली और उत्तरप्रदेश में इस ऐप के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज हुई, लेकिन अब तक कोई ऐसी कार्रवाई नहीं हुई है, जिससे पता चले कि सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। ये और बात है कि इस बीच महिलाओं को लेकर बड़ी-बड़ी बातें, महिला सुरक्षा के बड़े दावे मोदी और योगी सरकार ने किए हैं।

महाराष्ट्र पुलिस ने की तत्परता से कार्रवाई

बुल्ली ऐप पर भी केंद्र सरकार ने जुबानी जमाखर्च तो किया, लेकिन इस बीच महाराष्ट्र पुलिस ने जिस तत्परता से कार्रवाई की, उसकी दिल खोलकर प्रशंसा की जाना चाहिए।

दो जनवरी को यह मामला पुलिस में दर्ज हुआ और चार जनवरी को मुंबई पुलिस की साइबर सेल (Cyber Cell of Mumbai Police) ने उत्तराखंड और कर्नाटक से मामले में दो लोगों को गिरफ्तार किया, इसके बाद बुधवार सुबह एक और आरोपी की गिरफ्तारी हुई। मुंबई पुलिस की यह सफलता इस बात की भी परिचायक है कि सरकार की इच्छाशक्ति से कठिन से कठिन काम भी पूरे हो सकते हैं। महाराष्ट्र सरकार ने महिलाओं को अपमानित करने वालों के खिलाफ जो सख्त रवैया अपनाया, वह सख्ती केंद्र की मोदी सरकार या उत्तरप्रदेश की योगी सरकार ने क्यों नहीं दिखाई, यह सवाल उनसे किया जाना चाहिए।

मुंबई पुलिस की इस सफलता के बाद अब दिल्ली पुलिस का सोशल मीडिया पर मजाक भी बन रहा है कि जेएनयू में तोड़-फोड़ करने वाले और लाठियां चलाने वाले नकाबपोश आरोपियों को पकड़ने का काम भी मुंबई पुलिस को दे देना चाहिए।

बहरहाल, बुल्ली ऐप बना कर मुस्लिम महिलाओं को बेइज्जत करने का इरादा रखने वाले लोग सलाखों के पीछे हैं। एक अच्छी बात यह भी रही कि इस बार जिन लोगों को अपराधियों ने निशाने पर लिया, उन महिलाओं ने बेखौफ होकर अपने उत्पीड़न का विरोध किया, उसके खिलाफ आवाज़ उठाई। सोशल मीडिया पर भी एक बड़े तबके ने इन महिलाओं के साथ हो रही इस नीच हरकत की निंदा की। लेकिन ये देखकर आश्चर्य होता है कि किस तरह सत्ता की चाटुकारिता में लगे कुछ लोग इस मामले में भी इस तरह चुप रहे, मानो मुस्लिम महिलाओं के समर्थन में वे आवाज़ उठाएंगे तो देश विरोधी कहलाएंगे।

Women should be respected in the society at all cost.

मुस्लिम महिलाओं के साथ अगर कुछ गलत हुआ तो क्या दूसरे धर्म के लोगों को इसका विरोध नहीं करना चाहिए था? क्या आज जो हरकत मुस्लिम महिलाओं के साथ हुई, वो कल को हिंदू, जैन, सिख, ईसाई या पारसी महिलाओं के साथ नहीं हो सकती? महिलाओं की इज्जत तो समाज में हर हाल में होनी चाहिए, चाहे वो किसी भी धर्म की हों।

जब समाज इस इज्जत का महत्व समझेगा तो सभ्यता के पायदान पर एक कदम और बढ़ जाएगा। मगर धर्मांधता की जहर भरी घुट्टी पी चुका हमारा समाज आगे बढ़ने की जगह नीचे ही गिरता जा रहा है। हमारा पतन इस कदर हो चुका है कि हम अपनी नयी पीढ़ी को भी धर्म की बेड़ियों में जकड़ रहे हैं।

गौर करने वाली बात है कि मुंबई पुलिस ने इस मामले में जिन तीन लोगों को गिरफ्तार किया है, उनमें एक की उम्र 19 और दो की 18 है। इन में दो लड़के हैं, एक लड़की है।

सोचिए, इस उम्र के युवा उच्च शिक्षा, नौकरी, स्वरोजगार के साथ-साथ देश बदलने के सपने देखते हैं। लेकिन इन तीन लोगों ने अपनी पढ़ाई और तकनीकी ज्ञान का इस्तेमाल मुस्लिम महिलाओं के अपमान के लिए इस्तेमाल किया। इस उम्र में इतनी नफरत उनके भीतर कहां से आई, ये सोचने वाली बात है।

विचारणीय सवाल ये भी है कि इस तरह की साजिश क्या केवल इन लोगों के दिमाग की उपज हो सकती है, या इसके पीछे कोई बड़ी राजनैतिक शक्ति काम कर रही है।

खबर ये भी है कि इस मामले में आरोपी युवती ने जटखालसा 7 नाम से एकाउंट बनाया था। वहीं एक दूसरे आरोपी ने खालसा सुप्रीमेसिस्ट नाम से एकाउंट खोला था। ये साफ-साफ किसी बड़ी साजिश का इशारा करती है, जिसमें शक की सुई जानबूझ कर सिखों की ओर करने की कोशिश की गई है।

किसान आंदोलन के वक्त भी इसी तरह सिखों को बदनाम करने की कोशिश की गई थी। किसानों को तब खालिस्तानी कह कर देश विरोधी बताया गया था। अगर इस मामले में यह खुलासा नहीं होता कि मुस्लिम महिलाओं को बदनाम करने का षड्यंत्र हिंदुओं ने रचा है, तो फिर बड़ी आसानी से इसका ठीकरा सिखों पर फोड़कर धार्मिक वैमनस्य बढ़ाने का काम हो सकता था। जाहिर है यह सब किसी बड़े खेल का हिस्सा हैं, जिसमें युवाओं को ढाल बनाया गया। और अभी इस खेल के केवल एक हिस्से का पर्दाफाश हुआ है।

सुल्ली डील ऐप और बुल्ली बाई ऐप ऊपरी तौर पर साइबर अपराध (Cyber crimes) की तरह लगते हैं, लेकिन इसके पीछे समाज को बांटने वाला, सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाला घिनौना षड्यंत्र (Dreadful conspiracy to increase communal tension) नजर आ रहा है, जिसका समय रहते खुलासा होना जरूरी है। अन्यथा आगे इस तरह के और अपराधों की गुंजाइश बनती जाएगी। इस मामले में समाज को ही जागरुक होना पड़ेगा, सरकार से उम्मीद रखना बेमानी है। आपको याद दिला दूं कि पिछले साल के राष्ट्रीय युवा दिवस के मौके पर स्वामी विवेकानंद को उद्धृत करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि निडर, बेबाक, साफ दिल वाले, साहसी और आकांक्षी युवा ही वो नींव है, जिस पर राष्ट्र के भविष्य का निर्माण होता है।

लेकिन इन निडर, साफ दिल वाले युवाओं की पीढ़ी तैयार करने के लिए सरकार खुद क्या कर रही है, किस तरह की शिक्षा और संस्कार उन्हें दे रही है, इसकी समीक्षा भी होना चाहिए।

अभी 12 जनवरी को फिर से युवा शक्ति, युवा भारत को लेकर बड़ी-बड़ी बातें होंगी। इन भाषणों को देने वाले क्या इस सवाल पर गौर करेंगे कि क्यों कुछ युवाओं के मन में ये ख्याल आया कि वे दूसरे धर्म की महिलाओं को लेकर इतना नीच काम करें। जाहिर है सरकार इतनी जहमत नहीं उठाएगी। उसे युवाओं के वोट चाहिए, रैलियों में उनकी भीड़ चाहिए, उनका उन्माद चाहिए, पर युवा शक्ति को सही दिशा देकर देशहित के लिए लगाने की नीयत अभी नहीं दिख रही है। इससे पहले कि नफरत की ये आग हमारे भविष्य को खाक कर दे, समाज को जाग जाना चाहिए।

सर्वमित्रा सुरजन

लेखिका देशबन्धु की संपादिका हैं।

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