मगर, बाकी दुनिया बुलडोजर बर्दाश्त नहीं करेगी

मगर, बाकी दुनिया बुलडोजर बर्दाश्त नहीं करेगी

बुलडोजर वाली कार्रवाई किसके दिमाग की उपज है? और इजराइल का कमिनित्ज कानून कैसे बुलडोजर संस्कृति का जन्मदाता है ? क्या बाकी दुनिया बुलडोजर बर्दाश्त करेगी?

But the rest of the world will not tolerate bulldozers

हमने इन्हें राजनीतिक रूप से शून्य, और मृतप्राय: मान लिया था। फिर अचानक एक चेहरा देखा बुलडोजर के सामने। निडर, निर्भीक। ऐसी भंगिमा, जैसे महिषासुर मर्दिनी किसी दमनकारी दानव के आगे खड़ी हो। जहांगीरपुरी की वह तस्वीर इतनी वायरल हुई कि दुनिया के कोने-कोने में समकालीन राजसत्ता के सितम की दास्तां जेरे बहस हो गई।

बिना अनुमति शोभा यात्रा को दिल्ली पुलिस सुरक्षा क्यों दे रही थी?

सितम नहीं होता, तो देश के सुप्रीम कोर्ट को दखल देने की जरूरत नहीं पड़ती। रामनवमी का जुलूस पुलिस सुरक्षा में निकले। पथराव, फायरिंग, हाकी स्टिक से लेकर तलवारें तक भांजी जाएं, और दूसरे दिन पता चलता है कि उस शोभा यात्रा को शासन की ओर से अनुमति ही नहीं थी। दिल्ली पुलिस फिर सुरक्षा क्यों दे रही थी उस शोभा यात्रा को? गृह मंत्रालय में वो कौन लोग हैं, जो बड़े अफसरों व वर्दीधारियों को निलंबन से बचा रहे हैं?

सात लोक कल्याण मार्ग की सहमति से नये कि़स्म का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम

पहले इंदौर, भोपाल, उज्जैन, खरगोन में बुलडोजर की कार्रवाई, फिर दिल्ली में उसकी प्रशासनिक पुनरावृत्ति। अर्थात, जिस इलाके में पथराव हो, गुंडा तत्व कोई कांड करे, उस इलाके को अतिक्रमण हटाने के नाम पर बुलडोजर से रौंद दो। इस देश में एक नये किस्म का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (New type of criminal justice system) दरपेश है, जो सात लोक कल्याण मार्ग की सहमति से आयद हुआ है।

सत्ताधारी इन बातों के आदी हो चुके हैं कि अधिक से अधिक सोशल मीडिया पर लोग मजम्मत करेंगे। राहुल गांधी कड़ी निंदा करेंगे, कांग्रेस, सपा व टीएमसी फैक्ट फाइंडिंग टीम भेजेगी। ये सब हुआ भी।

असदुद्दीन ओवैसी ने तुर्कमान गेट से जहांगीरपुरी की तुलना कर यह बताना चाहा कि हम मुद्दा घुमा देने में माहिर हैं। मुसलमानों को लगना चाहिए कि कोई उनकी ओर से बोला तो। मगर, किसी ने कल्पना नहीं की थी कि इन बयानबाजियों के बरक्स वृंदा करात जैसी जीवट महिला अकेली बुलडोजर के आगे यकायक खड़ी हो जाएगी।

क्या वामपंथ को इस देश की राजनीति में मृत हो गया है ?

जेएनयू के दिनों में जब भी हम थिएटर में हिस्सा लेते, शैलेन्द्र का एक गीत जरूर गाते थे- 'तू जिंदा है, तू जिन्दगी की जीत में यक़ीन कर/ अगर कहीं है स्वर्ग तो, उतार ला जमीन पर।' दशकों बाद आज उस गीत की याद इसलिए आ रही है, क्योंकि हमने इस देश की राजनीति में वामपंथ को लगभग मृत सा मान लिया था। इस सोच को केरल में थोड़ी-बहुत सांस लेते देखना भी बहुतों को बर्दाश्त नहीं। जहांगीरपुरी में प्रतिरोघ के बाद क्या वामपंथी राजनीति के फFर से प्रस्फुटित होने की संभावना बनने लगी है? इस सवाल को मैं यहीं छोड़े जा रहा हूं।

सवाल प्रतिपक्ष के उन नेताओं से भी है, जो ट्विटर-फेसबुक को ही प्रतिरोध का माध्यम मान बैठे हैं, जिन्होंने सड़क पर उतरना लगभग छोड़ दिया है। जो जहांगीरपुरी में जांच टीम का हिस्सा बनना चाहते हैं, मगर जो सौ के लगभग परिवार उजाड़ दिये गये, उनके आबोदाना-आशियाना के उपाय नहीं ढूंढ रहे। अरे, आपके सरकार विरोधी बयानों का फोटो फ्रेम बनाकर रखें क्या? जो उजड़ चुके, उनके लिए कुछ पैसे का इंतजाम करो, ताकि वो दो जून रोटी खा सकें।

क्या बोरिस जॉनसन भारत की घटनाओं से अनभिज्ञ हैं ?

ऐसा नहीं है कि जो कुछ भारत में हो रहा है, उससे ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन अनभिज्ञ हों। इसे संयोग भी न मानें कि गुरूवार को गुजरात के पंचमहल स्थित जेसीबी फैक्ट्री में एक बुलडोजर पर चढ़कर बोरिस जॉनसन फोटोऑप करा रहे थे। पश्चिम की जेसीबी व बुलडोजर निर्माता कंपनियां (West's JCB and Bulldozer Manufacturers) तेजी से भारतीय बाजार में पसरी हैं। इनमें ब्रिटिश कंपनी जेसीबी का भारतीय अधोसंरचना के क्षेत्र में दबदबा है। जेबीसी व बुलडोजर आज की तारीख़ में न सिर्फ निर्माण के काम आ रही हैं, विध्वंस के रूप में इन मशीनी दैत्यों की पहचान भारत में बनने लगी है।

विध्वंसकारी सत्ता भी व्यापार का अवसर देती है, अहमदाबाद एयरपोर्ट पर उतरे बोरिस जॉनसन ने अच्छे से महसूस किया होगा।

यूपी चुनाव के बाद सत्ता पक्ष ने मान लिया है विपक्ष के मनोबल को तोड़ने और त्वरित कार्रवाई के लिए बुलडोजर का अधिकाधिक इस्तेमाल किया जा सकता है। बुलडोजर से दहशत, दबदबा का सृजन होता है, इस मनोविज्ञान को 'बाबा बुलडोजर नाथ' ने पकड़ लिया है। यूपी चुनाव के दौरान सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर वो इसी नाम से प्रसिद्ध हुए थे। लेकिन क्या यह नकारात्मक नहीं है? होता, तो मानवाधिकार के लिए लड़ने वाले बोरिस जॉनसन कैमरे के सामने बुलडोजर पर फांदकर चढ़ने से परहेज करते।

कोई पूछ सकता है कि पत्थरबाजी या दंगा-फसाद के अभियुक्तों के मकान तुरंत-फुरत ढहा देने का प्रावधान भारतीय दंड संहिता में है क्या?

सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच के जस्टिस एलएन राव व बीआर गवई ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से यही प्रश्न किया था। उत्तरी दिल्ली नगर निगम की ओर से उपस्थित सॉलिसिटर जनरल से पूछा गया कि यदि जहांगीरपुरी में फुटपाथ व सड़क का अतिक्रमण हो रखा था, तो उसे ख़ाली कराने के वास्ते क्या कोई नोटिस पहले से जारी की गई थी? सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के पास इस प्रश्न का जवाब नहीं था। मगर कोर्ट को सॉलिसिटर जनरल ने दूसरी दलील दी। उन्होंने मध्य प्रदेश के खरगोन में रामनवमी के दिन हिंसा के बाद पुलिस कार्रवाई का उदाहरण दिया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अनुसार, 'खरगोन में मध्यप्रदेश शासन ने 88 हिन्दुओं और 26 मुसलमानों के घर बुलडोजर से ढहा दिये थे। मगर, जहांगीरपुरी में बुलडोजर से मकान गिरा देने की कार्रवाई को कम्युनलाइज किया जा रहा है।' सवाल कुछ, और जवाब उससे बिल्कुल अलग।

राजनीति में बुलडोजर को जब बढ़ाये रखना है, तो संभव है आने वाले दिनों में हमें-आपको भारतीय दंड संहिता में बदलाव दिखे। यह सवाल प्रतिपक्ष संसद में पूछ सकता है कि दंगा-फसाद वाले इलाकों में सरकार ने 2014 के बाद कितने घरों को बुलडोजर से ढहा दिये? इन आंकड़ों से ही तय हो जाएगा कि डबल इंजन की सरकार जहां-जहां है, वहां अब तक आईपीसी का कितना पालन, और दुरूपयोग किया गया है।

मध्यप्रदेश के बडवानी और खरगोन में 11 अप्रैल को रामनवमी के जुलूस निकालने को लेकर हुए बवाल में दो बसों को आग लगा दी गई, जमकर पथराव हुए। तब प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा था कि जिस-जिस घर से पत्थर आये, उन घरों को पत्थर के ढेर में बदल दिया जाएगा। अगले दिन अक्षरश: वैसा ही हुआ।

बुलडोजर वाली कार्रवाई किसके दिमाग की उपज है?

सवाल यह है कि अपने देश में कुछ महीनों से तेज हुई बुलडोजर वाली कार्रवाई किसके दिमाग की उपज है? ऐसी कार्रवाई का जन्मदाता है-इजराइल। 1945 में 'इम्युनिटी डिफेंस रेगुलेशंस' पास कर उसे इजराइली संविधान के अनुच्छेद 119 का हिस्सा बना लिया गया। इसके अनुसार, 'कोई भी शख्स तोड़-फोड़, हिंसा करता हुआ पाया जाए, अथवा उसके हिंसक कार्रवाई में शामिल होने का शक भर हो, उसके मकान को ढहा देने का अधिकार शासन को है।' इससे अलग, इजराइली सेना को यह अधिकार संविधान ने दे रखा है कि जरूरत पड़ने पर वह किसी बिल्डिंग को धराशायी कर सकती है। इजराइल में 'प्लानिंग एंड बिल्डिंग लॉ-1965' भी आयद है, जो इजराइली शासन को यह अधिकार देता है कि कोई व्यक्ति बिना अनुमति निर्माण करता है, उसे स्थानीय पालिका या शहर के मेयर के आदेश से ढहाया जा सकता है। बिना अनुमति ऐसे निर्माण दो वर्षों के लिए जब्त किये जा सकते हैं।

इजराइल ने फिलस्तीनियों के विरूद्ध गाजा पट्टी, रमाला, वेस्ट बैंक के सीमाई इलाकों और जेरूसलम में इस कानून का मनमाने ढंग से दुरूपयोग किया है, यह सर्वविदित है।

इजराइल का कमिनित्ज कानून (israel's kaminitz law)

अप्रैल 2017 में नेतन्याहू सरकार ने 'कमिनित्ज लॉ' जैसे कुख्यात कानून को इजराइली संसद 'क्नेसेट' में पास कराया था। जुलाई 2019 में भी पूर्वी जेरूसलम में फिलस्तीनी आबादी को हटाने के वास्ते संविधान संशोधन 116 पास कराया गया। सरकार का आकलन था कि इजराइल में बसी अरब मूल की आबादी के 50 हजार से अधिक घर बिना अनुमति वाले हैं, जिन्हें 'कमिनित्ज लॉ' आयद कर त्वरित कार्रवाई करनी है।

कमिनित्ज कानून का सबसे कठोर पहलू यह है कि जिसका भी घर शासन ढहाएगा, प्रभावित को बतौर एक लाख डॉलर का ज़ुर्माना भी भरना होगा।

इजराइल का एक मरूस्थलीय इलाका है निकाब, जहां 'अरब बेदों' मूल के लोग अधिक बसे हुए हैं। ख़िरबत-अल वतन, अल बकाया, अल गरीबी, रस अल-जरबा, ओम बेदों जैसे 45 गांवों में दो लाख 40 हजार आबादी की सांसें 'कमिनित्ज लॉ' की वजह से अटकी हुई हैं। इनमें से 76 हजार फिलिस्तीनी बेदों हैं, बाकी इजराइली। 2019 में केवल निकाब के 2 हजार 241 मकानों को इजराइली शासन ने ढहा दिया था। 2020 में पूर्वी जेरूसलम के 170 मकानों को मलबे में बदल दिया गया, जिससे 400 फिलिस्तीनी परिवार बेघर हो गये। पूर्वी जेरूसलम के 50 हजार मकानों के बाशिंदे, हर समय उजाड़े जाने की आशंका में जी रहे हैं। ये वो सामान्य शहरी लोग हैं, जिनका हिंसा से कोई लेना देना नहीं। मगर, शासन को जब अतिक्रमण हटाओ अभियान छेड़ना होता है, जाने कहां से पत्थरबाजी शुरू हो जाती है।

इजराइली शासन की मनमजीर् कार्रवाई दशकों से अमेरिकी संरक्षण में चलती रही, मगर एक समय ऐसा आया, जब जो बाइडेन स्वयं इजराइल के विरूद्ध बोल बैठे। ज़्यादा नहीं, नौ महीने पहले की बात है। 27 अगस्त 2021 को वाशिंगटन में पहली बार प्रधानमंत्री नेफ्ताली बेनेट, जो बाइडेन से मिले। उभयपक्षीय औपचारिकताओं के बाद बाइडेन ने एक अमेरिकी अतिवादी मुतासिर शालाबी का मुद्दा उठा दिया। शालाबी ने यहूदा गुलेटा नामक एक इजराइली बालक की हत्या 23 जून 2021 को की थी। जवाबी कार्रवाई में वेस्ट बैंक के तुरमुस आइया के पास मुतासिर शालाबी के घर को इजराइली सैनिकों ने बुलडोजर से ढहा दिया। दूतावास के रोकने के बावज़ूद एक अमेरिकी नागरिक के घर को इजराइली सैनिकों ने धूल में मिला दिया था, जो बाइडेन इस हिमाकत को लेकर तपे हुए थे। यह घटना कुछ अजीब सी है। दुनिया चाहे उजड़ जाए, जो बाइडेन को फिक्र नहीं, कोई अमेरिकी नागरिक नहीं उजड़ना चाहिए!

पुष्परंजन

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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