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सीएए : नागरिकता का पता नहीं पर बढ़े पत्रकारों पर हमले, अकेले दिल्ली में 2.5 माह में 3 दर्जन पत्रकारों पर हमला, पुलिस भी हमलावरों में शामिल

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hastakshep
09 Mar 2020
सीएए : नागरिकता का पता नहीं पर बढ़े पत्रकारों पर हमले, अकेले दिल्ली में 2.5 माह में 3 दर्जन पत्रकारों पर हमला, पुलिस भी हमलावरों में शामिल

CAA: Attacks on journalists increased, 3 dozen journalists attacked in 2.5 months in Delhi alone, police also included in attackers

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नई दिल्ली, 09 मार्च इन दिनों देश में प्रेस की आजादी गंभीर खतरे में आ गई है। पूरे देश में पिछले कुछ दिनों में पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं (Attacks on journalists have increased)। अकेले राजधानी दिल्ली में पिछले ढाई महीने में करीब तीन दर्जन पत्रकारों पर हमले हुए हैं। इनमें ज्यादातर पत्रकार राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों के हैं, जो दिल्ली-एनसीआर में कार्यरत हैं। इन हमलों में गिरफ्तारी और हिरासत से लेकर गोली मारने, मारपीट करने, काम करने से रोकने, शर्मिंदा करने, वाहन जलाए जाने से लेकर धमकाने और जबरन धार्मिक नारे लगवाए जाने जैसे उत्पीड़न शामिल हैं। और सबसे चिंताजनक बात ये है कि इन हमलों के हमलावरों में उन्मादी भीड़ के साथ पुलिस तक बराबर शामिल है।

ये तथ्य ‘पत्रकारों पर हमले के खिलाफ समिति’ - Committee Against Assault on Journalists (CAAJ) (सीएएजे) द्वारा सोमवार को जारी एक अहम रिपोर्ट से सामने आए हैं।

“रिपब्लिक इन पेरिल” शीर्षक से जारी यह रिपोर्ट दिल्ली के प्रेस क्लब आफ इंडिया में जारी की गई।

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वरिष्ठ पत्रकार और कमेटी के संरक्षक आनंदस्वरूप वर्मा, अंग्रेजी पत्रिका कारवां के राजनीतिक संपादक हरतोश सिंह बल और आँल इंडिया विमेंस प्रेस कॉर्प्स की अध्यक्ष टीके राजलक्ष्मी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में इस रिपोर्ट को जारी किया।

रिपोर्ट में दिसंबर से लेकर फरवरी के दौरान पत्रकारों पर हुए हमले के तीन चरण गिनाए गए हैं।

Police were also involved with the mob in the attackers.

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रिपोर्ट में बताया गया है कि पत्रकारों पर हमले का पहला चरण नागरिकता संशोधन कानून- Citizenship Amendment Act (सीएए) के संसद से पारित होने के बाद से शुरू विरोध के साथ ही शुरू हुआ। इस दौरान पत्रकारों पर गंभीर हमले की शुरुआत जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा शुरू किए गए प्रदर्शन पर पुलिस कार्रवाई के दौरान हुई।

जामिया प्रोटेस्ट को कवर करने गए कुल 7 पत्रकारों पर शारीरिक हमला किया गया। इनमें प्रमुख न्यूज चैनल, न्यूज एजेंसी, इंटरनेशनल मीडिया बीबीसी और डिजीटल प्लेटफॉर्म के पत्रकार शामिल हैं। हमलावरों में भीड़ के साथ पुलिस भी शामिल रही।

पहले चरण में 15 दिसंबर से 20 दिसंबर के बीच प्रेस पर सबसे ज्यादा हमले हुए। इन हमलों में भीड़ और पुलिस दोनों की बराबर भूमिका रही।

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इसके बाद हमले का दूसरा चरण जनवरी में शुरू हुआ, जो पूरे महीने चलता रहा। इसकी शुरुआत 5 जनवरी को जेएनयू परिसर में नकाबपोशों के हमले के दौरान ही हुई, जब जेएनयू गेट के बाहर घटना की कवरेज करने गए पत्रकारों को भीड़ द्वारा डराया-धमकाया गया, धक्कामुक्की की गई, नारे लगाने को बाध्य किया गया। प्रताड़ित पत्रकारों की गवाहियों से सामने आया कि इस पूरी घटना के दौरान पुलिस मूकदर्शक बनकर खड़ी रही। इस दौरान कम से कम आधा दर्जन हमले के मामले सामने आए।

हमले का यह चरण जनवरी, 2020 के अंतिम दिन अपने चरम पर पहुंच गया, जब पत्रकारों को आईटीओ और राजघाट पर धमकाया गया, पीटा गया और हिरासत में लिया गया। कई वरिष्ठ पत्रकारों सहित करीब 10 पत्रकार उस दौरान हमले का शिकार हुए, जब वे सत्याग्रह मार्च की रिपोर्टिंग करने और महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए आए थे।

एक स्थानीय स्टेडियम में देर रात तक आधा दर्जन से ज्यादा पत्रकारों को हिरासत में रखा गया। इस हमले के लिए पूरी तरह से दिल्ली पुलिस जिम्मेदार थी। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने इस घटना को लेकर उसी दिन बयान जारी कर इसकी निंदा की थी।

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The darkest and creepiest chapter in the history of press freedom

रिपोर्ट के अनुसार इसके बाद शुरू हुआ हमले का तीसरा चरण दिल्ली में प्रेस की आजादी के इतिहास का सबसे काला और खौफनाक चैप्टर है।

रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर और जनवरी के दौरान हुईं ये घटनाएं ही मिलकर फरवरी में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई व्यापक हिंसा में तब्दील हो गयीं, जब खुलेआम पत्रकारों को उनकी धार्मिक पहचान साबित करने तक को बाध्य किया गया। दो दिनों 24 और 25 फरवरी के बीच ही कम से कम डेढ़ दर्जन पत्रकरों को कवरेज के दौरान हमलों का सामना करना पड़ा, इस दौरान उन्हें रिपोर्टिंग से रोका गया, हिंदू-मुस्लिम की पहचान की गई और सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया गया। इसी दौरान जेके न्यूज़24 के आकाश नापा को तो सीधे गोली ही मार दी गयी।

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जहां पहला चरण लगभग एक सप्ताह तक चला और कम से कम 7 पत्रकारों पर हमला हुआ, वहीं दूसरा चरण पूरे महीने भर तक चलता रहा, लेकिन इस दौरान पत्रकरों पर हमले की संख्या 10 तक ही रही थी, जबकि हमलों का अंतिम चरण भयावहता और असर के मामले में न केवल भयानक रहा, बल्कि कहीं अधिक चिंताजनक भी। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के दो दिनों के भीतर लगभग 18 पत्रकरों पर हमले हमले हुए, जो प्रति दिन औसतन 10 हमला होता है। इस दौरान लगभग मुख्यधारा के हर मीडिया समूह के पत्रकारों पर हमले हुए। तीसरे चरण के हमले के दौरान धार्मिक पहचान सबसे प्रमुख थी।

दिल्ली की इस हिंसा के दौरान हमलों और प्रताड़ना का शिकार हुए राष्ट्रीय मीडिया के पत्रकारों ने अपनी आपबीती अलग-अलग मंचों और सोशल मीडिया पर सुनायी है।

समिति की यह रिपोर्ट इन्हीं आपबीतियों और रिपोर्टों पर आधारित है। पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति जल्द ही 2019 में पत्रकारों पर हुए हमलों की एक समग्र सालाना रिपोर्ट प्रकाशित करने जा रही है। इससे पहले दिसंबर 2020 के अंत में सीएए विरोधी आंदोलन में प्रताडित पत्रकारों की एक संक्षिप्त सूची समिति ने प्रकाशित की थी।

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