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careful! If the lockdown is removed without preparation, its results will be terrible.
3 मई के बाद लॉकडाउन हटाने की स्थिति बनती है या नहीं, इस पर केंद्र और राज्य सरकारें चिंतन मंथन कर रही हैं। प्रधानमंत्री मुख्यमंत्रियों से बात करके कोई फैसला करेंगे।
जैसे बिना तैयारी के लॉकडाउन के ऐलान से आम जनता और खास तौर पर मेहनतकश लोगों को पूरे महीने भर भारी मुसीबत उठानी पड़ी, देश भर में करोड़ों लोग बेरोजगार और भुखमरी के शिकंजे में फंस गये, इस अनुभव से हुक्मरान सबक लें तो बेहतर।
बिना तैयारी के लॉकडाउन हटा तो उसके नतीजे भयानक होंगे।
पूरी योजना के साथ चरणबद्ध ढंग से लॉकडाउन से जनता को आज़ाद करना अब केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है।
इसी बीच देश को रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन में बांट दिया गया है।
जाहिर है कि रेड जोन, यानी ज्यादातर बड़े महानगरों और नगरों की जनता और खास तौर पर मुंबई, दिल्ली और गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान हरियाणा, मध्य प्रदेश के रेड जोन में फंसे लाखों दिहाड़ी मजदूर रेड जोन से ग्रीन जोन की तरफ भागेंगे। समर्थ लोग कार लेकर पहाड़ों की ओर दौड़ लगाएंगे।
138 करोड़ जनसँख्या में अभी 5 लाख लोगों की भी जांच की व्यवस्था नहीं हुई हैं।
जिनकी जांच हुई, उनमें 22 हजार लोग संक्रमित पाए गए। बाकी 137 करोड़ से ज्यादा लोगों में कितने संक्रमित होंगे, कोई नहीं कह सकता।
अब तो ऐसे लोग भी मिल रहे हैं, जिनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं दिखे, लेकिन वे संक्रमित हैं।
हम और आप में कौन संक्रमित हैं, कौन नहीं कोई नहीं जानता।
मेरा गांव बसन्तीपुर तराई के इने गिने गांवों में हैं, जहां किसानों के पास कुछ न कुछ जमीन है। फिर भी खस्ताहाल खेती किसानी के चलते इस गांव में भी ज्यादातर लोग मजदूर बन गए हैं। खेतिहर मजदूर और भूमिहीन भी काफी हैं। पढ़े लिखे स्त्री पुरुष सिडकुल की कम्पनियों में काम करते थे। लॉकडाउन के बाद वे सारे लोग घर बैठे हैं।
30 तारीख के बाद कुछ कम्पनियां खुली हैं, लेकिन मेरे गांव से कोई काम पर लौट नहीं सका।
लॉक डाउन की वजह से मैं दिनेशपुर जा नहीं पा रहा महीने भर से। इस दौरान पोती शिवन्ना के साथ रोज़ घर-घर जा रहा हूँ।
लोग बहुत दिक्कत में हैं।
काफी लोग दिल्ली, हरियाणा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में फंसे हैं। बंगाल में रिश्तेदारी में जाकर भी लोग फंसे हैं। पारिवारिक संकट, किसी की मृत्यु की स्थिति में भी लोग घर नहीं लौट सकते।
हमारा गांव दो गांव सभाओं में पड़ता है।
आंदखेड़ा और अमर पुर।
अमरपुर ग्रामसभा का प्रधान हमारा भतीजा संजीत है।
कल शाम जब खेतों में खड़ी गेंहू की फसल मशीन काट रही थी, तो मैं शिवन्ना के साथ संजीत के घर गया।
संजीत सिडकुल में काम करता रहा है और मजदूर यूनियन का नेता भी है
संजीत एक्सीडेंट में बुरी तरह जख्मी हो जाने की वजह से चलने फिरने में असमर्थ मुकुलजी के साथी हैं। मुकुलजी घर से ही सिडकुल और पूरे इलाके में मजदूरों के आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं और एक पत्रिका भी मज़दूर आंदोलन पर चला रहे हैं।
संजीत ने कहा कि सिडकुल में ठेका मज़दूरों का न ईएसआई और न पीएफ कटता है। दरअसल वे पे रोल पर ही नहीं हैं और वे ज्यादा हैं संख्या में। दुर्घटना की स्थिति में इनका कोई क्लेम नहीं बनता। हर साल ब्रेक देकर बरसों से वे कम्पनियों में काम पर रखे जाते हैं, और कभी भी निकल दिए जाते हैं।
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जन्म 18 मई 1958
एम ए अंग्रेजी साहित्य, डीएसबी कालेज नैनीताल, कुमाऊं विश्वविद्यालय
दैनिक आवाज, प्रभात खबर, अमर उजाला, जागरण के बाद जनसत्ता में 1991 से 2016 तक सम्पादकीय में सेवारत रहने के उपरांत रिटायर होकर उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर में अपने गांव में बस गए और फिलहाल मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रेरणा अंशु के कार्यकारी संपादक।
उपन्यास अमेरिका से सावधान
कहानी संग्रह- अंडे सेंते लोग, ईश्वर की गलती।
सम्पादन- अनसुनी आवाज - मास्टर प्रताप सिंह
चाहे तो परिचय में यह भी जोड़ सकते हैं-
फीचर फिल्मों वसीयत और इमेजिनरी लाइन के लिए संवाद लेखन
मणिपुर डायरी और लालगढ़ डायरी
हिन्दी के अलावा अंग्रेजी औऱ बंगला में भी नियमित लेखन
अंग्रेजी में विश्वभर के अखबारों में लेख प्रकाशित।
2003 से तीनों भाषाओं में ब्लॉग
बदले हुए श्रम कानून की वजह से उनकी कही सुनवाई नहीं होती। काम की स्थितियां भी अमानवीय हैं।
संजीत ने बताया कि 30 तारीख के बाद जो थोड़ी कम्पनियां खुली हैं, उन में स्थानीय लोगों को दुबारा काम पर बुलाया नहीं जा रहा।
बाहर के फंसे हुए मजदूरों को काम पर बुलाया गया है। उनके काम की जगह पहुंचने का इंतज़ाम नहीं है।
इस पर उन्हें कहा गया है कि काम पर नहीं पहुंचे तो एब्सेंट लगेगा।
हमारी बातचीत के बीच ही पंजाब के किसी ग्राम सभा के सभापति का फोन आया। वहां अमरपुर गांव की बीस औरतें फंसी हुई हैं।
संजीत ने कहा कि लॉक डाउन में हम उन्हें निकालकर ला नहीं सकते। आप प्रधान हैं तो आप अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए उनके ठहरने खाने का इंतज़ाम भी करें।
दिनेशपुर, शक्तिफार्म और तराई भर के गांवों में हालात बसंतीपुर से बुरे हैं। हजारों लोग बाहर फंसे हैं।
इनमें अनेक गांव, गांव के लोगों ने ही सील कर दिए हैं।
बाहर के लोग उन गांवों में आ जा नहीं सकते।
लॉक डाउन हटने पर बाहर से घर लौटने वाले लोगों का अपने ही गांव में कैसे स्वागत होगा, कहना मुश्किल है।
पलाश विश्वास+
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