“श्रीमान हम आपको इस आलेख के कोई पैसे नहीं दे सकते। सहयोग के लिए सम्पादक के धन्यवाद सहित सादर।“ किसी स्वतंत्र पत्रकार के लिए उसके किसी आलेख पर यह जवाब अब आम हो चुका है। स्वतंत्र पत्रकार ही नहीं किसी न किसी संस्थान से जुड़े बहुत से पत्रकार भी कोरोना के दौरान अपनी नौकरी खोने के बाद अब उस दिन …
Read More »चौथा खंभा
सीरियल संस्कृति, राजनीति और विचारधारा : टेलीविजन की खतरनाक राजनीति
Jagadishwar Chaturvedi was live on 6th April 2020 टीवी एक माध्यम के रूप में जहां भी TV गया, स्वभावतः वह कंजर्वेटिव है। टीवी ने समाज में तरह तरह के घेटो तैयार किए। अमेरिका के समाज में हजारों घेटो मिलेंगे टीवी की अंतर्वस्तु महत्वपूर्ण नहीं है। सोवियत संघ में टीवी का सबसे बड़ा नेटवर्क था। सोवियत संघ पहला राष्ट्र था जिसने …
Read More »बढ़ता दायरा फेक न्यूज़ का
फेक न्यूज की तरह सरकार भी बेलगाम आप सबने एक कहावत सुनी होगी – “लम्हों ने खता की, सदियों ने सज़ा पाई।” मानव सभ्यता के इतिहास में जब कोई शासक कोई बड़ी भूल कर देता है तो लंबे समय तक समाज उसके परिणाम भुगतता रह जाता है। नेता का काम समाज को बांटना नहीं, समाज को जोड़ना होता है, लेकिन …
Read More »उत्तराखंड की उठापटक का संदेश और जनता की जनमीडिया के प्रति जिम्मेदारी
After Trivendra Singh Rawat’s resignation, Uttarakhand political developments वर्ष 2017 में हुए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Elections) में भाजपा ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 70 विधानसभा सीटों में से 56 सीटों में जीत हासिल की थी। इसी उपलब्धि के चार साल पूरे होने के जश्न में उत्तराखंड सरकार 18 मार्च को ‘बातें कम काम ज्यादा’ कार्यक्रम मनाने की तैयारी …
Read More »अमित शाह ने भक्त संपादक सुमित अवस्थी को धो डाला, वीडियो हुआ वायरल, आपने देखा ?
Amit Shah insults Sumit Awasthi टीवी एंकरों में एक बड़ा समुदाय भक्त प्रजाति का है। ये बक्त एंकर संपादक 24*7 देश में द्वेष ही फैलाते रहते हैं और पत्रकारिता न करके सत्ता की चारण वंदना ही करते रहते हैं। लेकिन गृह मंत्री अमित शाह इन भक्तों को उनकी सही जगह पर ही रखते हैं। अब एक वीडियो एबीपी न्यूज के …
Read More »पत्रकारों को कानूनी सुरक्षा देने के लिए जेजेए का संघर्ष
रांची से शाहनवाज हसन. झारखंड में पत्रकारों की सुरक्षा (Security of journalists in Jharkhand) हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है। रघुवर दास के कार्यकाल में झारखण्ड के विभिन्न जिलों में बड़ी संख्या में पत्रकारों की हत्यायें एवं झूठे मुकदमों के बाद जेल भेजने की घटनाओं को तब विपक्षी दलों चुनावी मुद्दा बनाते हुए इसे अपने घोषणापत्र में शामिल करने …
Read More »अधिक खतरनाक होता है कम वेतन पाने वाला पत्रकार
Low paid journalist is more dangerous : Vijay Shankar Singh पत्रकारों को कम वेतन नहीं देना चाहिए। कम वेतन पाने वाला पत्रकार अधिक खतरनाक हो सकता है। कभी यह रोचक निष्कर्ष निकाला था, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने। कार्ल मार्क्स पर उनकी यह एक रोचक टिप्पणी है। यह कथन जॉन एफ केनेडी के ओवरसीज प्रेस क्लब न्यूयॉर्क में …
Read More »Attack on Newsclick: पत्रकारिता और लोकतंत्र के लिए जरूरी है न्यूज़क्लिक पर हमले का विरोध
MEDIA FREEDOM: The attack on Newsclick must be resisted by those who care about journalism – and democracy in India मैं पत्रकारों पर हमले, कार्यकर्ताओं और लेखकों की गिरफ़्तारी (Attack on Newsclick) के बारे में पढ़ती रही हूँ और देख रही हूँ कि असहमति के सभी लोकतांत्रिक जगहों को कैसे समाप्त किया जा रहा है। 2010 से 2020 के बीच …
Read More »दूबधान : समय और समाज का हलफनामा
उषा किरण खान का कथा संग्रह ‘‘दूबधान’’ : पुस्तक समीक्षा उषा किरण खान अपनी कहानियों के लिए जानी जाती हैं। गांँव की हसीन भंगिमाएं, इनकी कहानी की पहचान है। ‘‘दूबधान’’की 24 कहानियाँ समय और समाज की सच्चाई का हलफ़नामा हैं, तो दूसरी ओर कहानियाँ, नई जमाने को हैरान भी करती हैं। क्यों कि, कहानी की सभी महिलाएं गाँव की पुरानी …
Read More »पूछता है भारत : राष्ट्रवाद के स्वांग से खोखला होता गणतंत्र
Poochta Hai Bharat : Republic becomes hollow due to nationalism drama रिपब्लिक टीवी के मुख्य कर्ताधर्ता और मोदी सरकार का विशेष संरक्षणप्राप्त समाचार टीवी संपादक/ एंकर, Arnab Goswami (अर्णव गोस्वामी) और टीवी रेटिंग एजेंसी, ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (Broadcast Audience Research Council -बीएआरसी या बार्क) के मुखिया, पार्थो दासगुप्त की व्हाट्सएप के जरिए बातचीत का, भारत के बहत्तरवें गणतंत्र दिवस …
Read More »जब बहुत से कांग्रेसी खुलकर या दबे-छिपे भाजपा के मददगार बन गए थे
देशबन्धु : चौथा खंभा बनने से इंकार – 31 अविभाजित मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ ने प्रदेश को चार मुख्यमंत्री दिए- प्रथम मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल, राजा नरेशचंद्र सिंह, श्यामाचरण शुक्ल और मोतीलाल वोरा। इस लिस्ट में रिकॉर्ड के लिए चाहें तो क्रमश: कसडोल व खरसिया से पद ग्रहण के बाद उपचुनाव जीते द्वारकाप्रसाद मिश्र तथा अर्जुन सिंह के नाम भी जोड़ लें। …
Read More »क्या सरकार द्वारा पत्रकारों को पुरस्कृत करना उचित है?
Is it fair for the government to reward journalists? अभी हाल में मध्यप्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रति प्रतिबद्ध रहे प्रतिष्ठित पत्रकार स्वर्गीय माणिक चंद वाजपेयी (Eminent journalist late Manik Chand Vajpayee who was committed to the Rashtriya Swayamsevak Sangh) के नाम व स्मृति में पत्रकारों के लिए पुरस्कार की पुर्नस्थापना की है। यह पुरस्कार पूर्व में …
Read More »अजीत जोगी : एक ऐसा राजनेता श्वेत और श्याम के बीच जो स्लेटी रंग को नहीं मानता था… ललित सुरजन की कलम से
Ajit Jogi (अजीत जोगी) | अजीत जोगी का जीवन परिचय | अजीत जोगी बायोग्राफी | Ajit Jogi Biography देशबन्धु : चौथा खंभा बनने से इंकार – 27 छत्तीसगढ़ का एक पृथक राज्य के रूप में उदय हुआ तो स्वाभावत: प्रदेश में सभी ओर उल्लास का वातावरण निर्मित हुआ। जनता के मन में विश्वास जागा कि उसकी आशाएं- आकांक्षाएं पूरी होने …
Read More »व्यक्ति नहीं संस्था थे ललित सुरजन
Lalit Surjan was an institution, not a person ललित सुरजन व्यक्ति नहीं संस्था थे. उनकी जितनी प्रतिबद्धता थी उतनी किसी असाधारण इंसान की ही हो सकती है. उनकी शिक्षा, समाज सेवा, साहित्य, सांप्रदायिक सद्भाव, विश्वशांति, पाकिस्तान समेत विभिन्न देशों के साथ मैत्री, अफ्रीकी और एशियाई देशों की एकता एवं संविधान में निहित मूल्यों में अगाध आस्था थी. उनकी यह प्रतिबद्धता …
Read More »आख़िर कुणाल कामरा ने किया क्या है ?
कहते हैं कि स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा (Standup comedian Kunal Kamra) पर अदालत की अवमानना (contempt of court) के लिए सुप्रीम कोर्ट में मुक़दमा चलाया जाएगा – उस कोर्ट में जिसने चार दिन पहले अर्णब गोस्वामी के स्तर के बदमिजाज एंकर की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए यह फ़ैसला दिया था कि जिसे वह बुरा लगता है, वह उसे देखता …
Read More »मीडिया संस्थानों के नाम खुला पत्र, आपदा में अवसर न तलाशें, पत्रकारों की सेलरी न मारें
भोपाल, 06 अक्तूबर 2020. इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य लज्जाशंकर हरदेनिया, एवं इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन सदस्य राजु कुमार, ने मीडिया संस्थानों के नाम खुला पत्र लिखकर आपदा में अवसर न तलाशने को कहा है। पत्र का मजमून निम्न है मीडिया संस्थानों के नाम खुला पत्र दिनांक: 06 अक्टूबर, 2020 प्रिय, 24 मार्च 2020 के बाद अपने देश के …
Read More »डिजिटल मीडिया से घबराई सरकार अब कसना चाहती है नकेल !
अब सोशल मीडिया और वेब पोर्टलों पर नियंत्रण की तैयारी Now preparing to control social media and web portals विगत दिनों सुदर्शन न्यूज चैनल पर ‘यूपीएससी जिहाद‘ कार्यक्रम के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई (Hearing in the Supreme Court on a petition filed against the ‘UPSC Jihad’ program on Sudarshan News Channel) से मीडिया की आजादी (Media …
Read More »रवीश कुमार युनिवर्सिटी के छात्र “मीडिया बिकाऊ है”, यह चालू धारणा दिमाग से निकाल दें!
मीडिया के विषय में आम धारणा (General perception about media) है कि यह बिकी हुई. अब तो लोग मेन स्ट्रीम मीडिया (Main stream media) को गोदी मीडिया भी कहने लगे हैं. लेकिन ऐसा आरोप लगाना क्या उचित है? काबिले गौर है कि विचारों का निर्माण करने वाली मीडिया में सक्रिय लोग काफी पढ़े – लिखे लोग होते हैं, जो देश …
Read More »समयांतर का जून अंक और पंकज बिष्ट का लेख इसका बच्चस, उसका बच्चा?
June issue of Samayantar and article by Pankaj Bisht साहित्य और पत्रकारिता की क्या भूमिका होनी चाहिये (What should be the role of literature and journalism), इसे समझने के लिए युवाजनों को यह अंक जरूर पढ़ना चाहिए। 2000 से मैं लगातार लिखता रहा हूँ समयांतर में। माननीय प्रभाष जोशी और ओम थानवी की परवाह न करते हुए जनसत्ता की नौकरी …
Read More »पत्रकारिता की गिरती साख और गरिमा को अगर कोई बचा सकता है तो वे हैं आंचलिक पत्रकार
आंचलिक पत्रकार और पत्रकारिता की गिरती साख Declining credibility of journalism AND regional journalist आंचलिक पत्रकारों के बिना आप समाचार पत्र एवं न्यूज़ चैनलों की कल्पना नहीं कर सकते। अखबार एवं चैनल में 70 प्रतिशत आंचलिक पत्रकारों की बदौलत ही सुर्खियां बनती हैं। आंचलिक पत्रकार पत्रकारिता की रीढ़ होते हैं जिसके बिना कोई भी समाचार पत्र एवं न्यूज़ चैनल दो …
Read More »चरित्र हनन, समाज में वैमनस्य व कटुता उत्पन्न करना ट्रोल आर्मी का प्रारंभिक “युगधर्म” है
देशबन्धु : चौथा खंभा बनने से इनकार अखबार अथवा प्रेस और सत्तातंत्र के जटिल संबंधों (Complex relations of press and power) को समझने की मेरी शुरुआत 1961 में हुई, जब मैं हायर सेकंडरी की परीक्षा देकर ग्वालियर से लौटा और जबलपुर में कॉलेज के प्रथम वर्ष में प्रवेश लेने के साथ-साथ बाबूजी के संचालन-संपादन में प्रकाशित नई दुनिया, जबलपुर (बाद …
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